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भक्ति की शक्ति ! जानवर और इंसान

दरसल भालू का नाम सुनते ही इलाकों में दहसत का माहौल बन जाता है. भालू जिस पर हमला करता है उसका बचना बहुत ही कठिन होता है. महासमुन्द जिले के अलग-अलग ब्लाको में भालू द्वारा हमला कर घायल करने की खबर मिलती ही रही है. लेकिन छत्तीसगढ़ के महासमुंद में 2 ऐसे मंदिर है जहाँ भालू भी आकर हिंसक से भक्त बन जाते है और लोगो के साथ-साथ ढल जाते है.

कई बार इन भालुओ को लोगो के साथ प्रसाद खाते या कोल्ड्रिंक पिलाते देखा जा सकता है. महासमुन्द जिले के बागबाहरा के चण्डी मंदिर और N H 53 पर पटेवा से 6 कि.मी की दुरी पर बावनकेरा ग्राम के समीप मुगई माता का प्रसिद्ध मंदिर है. जो मुख्य मार्ग के बाजु में है. माता रानी का मंदिर ऊँची पहाडी के ऊपर स्थित है माता रानी छोटी गुफा के अंदर विराज मान है माता का मंदिर के चारो तरफ से घने जंगलो और ऊँचे पर्वत से घिरा हुआ है.

वहीं महासमुंद जिले के बागबहरा से करीब पांच किलोमीटर दूर जंगल के बीच माता चंडी का मंदिर स्थित है. इस मंदिर में नवरात्रि के दिनो से भक्तों की भीड़ उमड़ने लगती है. लेकिन इसी भीड़ के बीच भालुओं का एक झुण्ड आता है. जो मुखिया भालू होता है वह मंदिर के मुख्य दरवाजे पर खड़ा हो जाता है. बाकी परिवार मंदिर के भीतर जाकर देवी चंडी की मूर्ति का प्रकिमा कर प्रसाद लेती हैं उसके बाद लौट जाती है.

भालुओं के इस झुण्ड में एक नर एक मादा और बच्चे हैं. मंदिर के पुजारी की माने तो यह भालू का परिवार शांति से आते है और प्रसाद लेते है. कुछ भक्त इन्हें अपनी आस्था से खिलाते है उसे यह खा ने बाद उनके साथ आनंद लेते हैं. हैरान करने वाली बात यह है की इन भालुओं ने कभी किसी को नुकसान नही पहुँचाया है.

कहतें है इस मंदिर में देवी मां की मूर्ति खुद प्रकट हुई थी. उसके बाद यहां पर तांत्रिक अपनी योग साधना के लिए आया करते थे. तकरीबन डेढ़ सौ साल पुराना यह मंदिर आज भी लोगों में आस्था का एक प्रमुख केंद्र बना हुआ है और स्थानीय लोग मानते हैं इन भालुओं पर देवी माँ की कृपा है. जो आज भी इस तरह की घटना इंसान को जरूर सोचने पर मजबूर कर देती है.




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