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गुफाएँ में प्राचीन मंदिर और अथाह सुरंगें, जहाँ पत्थरों को हाथ से रगड़ने पर आज भी मिलती है भभूत, चांदनी रात में किया जाता है पहाड़ के रोमांच का सफर.

ऋषियों की तपोभूमि कहे जाने वाले मामा भांचा के नाम से क्षेत्र में प्रसिद्ध पहाड़ी में शरद पूर्णिमा के दिन 24 घंटो का मेला आयोजित किया जाता है. इस पहाड़ी में जड़ी बूटियों का भंडार है इस पहाड़ी के नीचे आज भी ऋषि-मुनि रहते है.

यहाँ साल में एक दिन और एक रात के लिए यह मेला आयोजित किया जाता है. शरदपूर्णिमा के दिन इस ऐतिहासिक मेला का आयोजन किया जाता है. कल यह ऐतिहासिक मेला 12 तारीख को किया गया. यह स्थल महासमुन्द जिले के बसना ब्लाक के भँवरपुर क्षेत्र के मामा भांचा के नाम से विख्यात है.

कल इस मेले में जिले भर के कई हजार लोगों पहुंचे. भँवरपुर क्षेत्र का यह एक ऐसा मेला है जहां लोग प्राकृतिक और आस्था को देखने पूजने और महसूस करने रात भर पूरे परिवार के साथ पहुँचते है.  

भीड़ को देखते हुए पुलिस बल भी यहाँ तैनात रहती है, इस मेला में कई प्रकार के धार्मिक आयोजनों के साथ बहुत भारी संख्या में दुकान भी लगाया जाता है.


पहाड़ में ऋषि मुनियों के अवशेष है मौजूद !

गौरतलब है कि ये मेला केवल 24 घंटे ही लगता है जिसमें शामिल होने बहुत दूर दूर से लोग बड़ी संख्या में आते हैं जिस जगह ये मेला लगता है उस जगह को प्राचीन काल के ऋषियों की तपोभूमि कहते हैं जहाँ आज भी ऋषियों के कुछ अवशेष मौजूद हैं जैसे ऋषि सरोवर, ऋषि गुफा,  मुनि धुनि, वराह शीला, चूल्हा, बारस पीपल, भीम बाँध इत्यादि.

बड़े बुजुर्ग बताते हैं के यहाँ डोंगरी के अंदर में झरना है, झील के जैसा छोटा तालाब है, हरा भरा मैदान है जो हर समय ठण्ड और ताजगी से भरा रहता है.


पहाड़ी में शिवजी के प्राचीन मंदिर के साथ है दुर्लभ जड़ी बूटियों का भंडार.

यहाँ शिव का प्राचीन मंदिर है और लंबी लंबी अथाह सुरंगें हैं, जहाँ पत्थरों को हाथ से रगड़ने पर आज भी भभूत मिल जाती है. यही नहीं इस डोंगरी पर आयुर्वेदिक औषधियों का भी भंडार है. जहाँ आज भी वैद्यो को कई दुर्लभ प्रजाति की औषधियों तथा जड़ी बुटी के पौधे आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं.

डोगरी के बाहर विशाल जलाशय है जो बारह महीने पानी से भरा रहता है. जो कि नहाने वाले को ताजगी से भर देता है कहते हैं की इस जगह पर रात को जाने और डोंगर पर चढ़कर मामा भांचा मंदिर के दर्शन कर आशिर्वाद लेने वाले को बहुत ही आत्मिक शान्ति की अनुभूति होती है. चांदनी रात में बिना किसी लाइट के इस पहाड़ी की बड़ी-बड़ी चट्टानों को पार करते हुए इसकी चोटी पर चढ़ना किसी रोमांच से कम नहीं है.

इस चोटी पर चढ़कर वहां से आस पास के क्षेत्रो का नजारा तो रोंगटे खड़े करने के लिए काफी है. यहां सिर्फ दिन में ही नहीं अपितु चांदनी रात को भी पहाड़ों का शैर किया जाता है. ऊपर पहाड़ में मंदिर है जिसकी पूजा अर्चना की जाती है पर्वत के ऊपर वट पीपल का पेड़ है और वही लंबी लंबी सुरंगे है जिसे कम लोग ही पार करते है. सुरंग के अंदर पानी है जो कभी नहीं सूखता.


इसी दिन छोड़ कर पहाड़ी में भालू रहते जो आपको अन्यत्र दिन देखने को मिल जाता है

किसी और दिन भालुओं की डर से पहाड़ी में चढ़ने की कोई हिम्मत नहीं कर पाता सिर्फ साल में एक ही दिन इस पहाड़ी पर चढ़ा जा सकता है. प्रकृति से लोगो को जोड़ने का शुभ योग एक दिवसीय दिन रात लगने वाला मेला को देखने बहुत दूर -दूर से लोग यहाँ आते है.






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