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कृषि विभाग ने किसानों को खेती में दलहन, तिलहन, मक्का आदि को अपनाने की अपील किसान खेतां में फसल अवशेष ना जलाएं

महासमुन्द 21 नवम्बर 2019/ कृषि विभाग के उपसंचालक श्री एस.आर. डांगरे ने जिले के किसानों से अपील की है, कि अधिक से अधिक दलहन एवं तिलहन फसलों को अपने खेतों में लगाए। प्रदेश में लगभग आवश्यकता 38.00 लाख मीट्रिक टन खाद्यान्न के विरूद्ध 90.37 लाख मीट्रिक टन का धान विगत वर्ष उत्पादित हुआ है। जो प्रदेश की लगभग तीन वर्षों तक की पूर्ति के लिए पर्याप्त है। प्रदेश में उपयोग होने वाले दलहन का लगभग 25 प्रतिशत दलहन अन्य राज्यों से क्रय करना होता है, वही कुल आवश्यक तिलहन की पूर्ति के लिए हमारी 78 प्रतिशत आवश्यकता अन्य राज्यों से पूर्ति होती है।

उप संचालक ने बताया कि केन्द्रीय भू-जल बोर्ड, रायपुर द्वारा बताया गया है, कि महासमुंद जिले का अधिकांश भूमिगत जल अर्धक्रिटिकल स्थिति में है। हम जितना पानी भूमिगत जल के तौर पर सिंचित कर पाते है उससे कई गुना ज्यादा जिले के कृषक बंधु ग्रीष्मकालीन धान लगाते समय नलकूप से भूमिगत जल का दोहन कर रहे है जो चिंता का विषय है। भूमिगत जल दोहन के मामले में महासमुंद जिला प्रदेश के दूसरे स्थान पर है।

जिले में धान के अत्यधिक उत्पादन से दलहन एवं तिलहन के खेती में कमी आई है वही भूमिगत जल के दोहन से जल का स्तर अधिक नीचे जा रहा है। जिन कृषकों के पास सिंचाई का स्थिर स्त्रोत नलकूप है वे ग्रीष्मकालीन धान को त्यागें एवं उसके बदले कम पानी वाली फसलों जैसे दलहन, तिलहन, मक्का आदि को अपनाए। जिससे महासमुन्द जिला दलहन व तिलहन में आत्मनिर्भर हो सके एवं भूमिगत जल का दोहन भी अपेक्षाकृत कम होगा। उन्होंनें स्थानीय जन प्रतिनिधियों, सरपंचो से आग्रह किया है कि ग्रामों में बैठक कर रबी सीजन में धान के बदले दलहन, तिलहन और मक्कों को प्रोत्साहन करने का प्रयास करेंगे। उन्होंने बताया कि उपलब्ध संसाधनों के अनुसार ग्रीष्मकाल में दलहन, तिलहन, मक्का व गेहूं आदि की फसल उगाए किसानों को आवश्यतानुसार अनुदान भी दिया जाएगा। इसके लिए सभी विकासखण्ड के कार्यालय वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी में बीज उपलब्ध कराया जा रहा है।

उन्होंनें किसानां को कहा है खरीफ धान की कटाई उपरांत खेंतो में आग ना लगाए आग लगाने से मिट्टी में उपलब्ध नमी नष्ट होती है एवं मृदा की उर्वरा शक्ति कम होती है। वहीं नरई को ऐसी ही छोड़ देने पर खेत में पर्याप्त नमी काफी दिनांं तक बनी रहती है तथा भूमि की जल धारण क्षमता भी बढ़ती है। किसान भाई नरई कतई नहीं जलाए और उसका प्रबंधन करें। राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण न्यायालय के आदेशानुसार फसल अवशेष जलाने पर दण्ड का प्रावधान है। इसमें दो एकड़ तक दो हजार पांच सौ रूपए, दो से पांच एकड़ तक के कृषकों को पांच हजार रूपए एवं पांच एकड़ से अधिक जमीन वाले कृषकों के प्रति घटना 15 हजार रूपए का जुर्माना किया जा सकता है। किसान ग्रीष्मकालीन धान के बदले दलहन, तिलहन, गेहूं, मक्का आदि फसल लगाए। कृषि से संबंधित अधिक जानकारी के लिए विकासखंड के वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी से संपर्क किया जा सकता है।




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