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पूरा विधानसभा तड़प रहा है पानी के लिए ! जल की जरुरत को कितना महसूस करते है हमारे जनप्रतिनिधि ?

महासमुंद जिले के दो विधानसभा बसना और सरायपाली पेयजल संबंधी समस्याओं से ग्रसित है कोई भी आंचलिक अखबार उठाइए हर गाँव से पानी के तड़प को लेकर उनकी आवाज़ सुनाई देगी. हमारा काम भी केवल लेख लिखने तक सीमित रह गया है. एक गाँव की समस्या बताओ तो कई गाँव के लोग बोलते है “भैया हमारे यहाँ भी पानी नहीं आ रहा है, आप कुछ करो ना..”. अख़बारों में समस्या लिख तो दी जाती है लेकिन उस समस्या का कोई समाधान निकलता नजर नहीं आता है.

कई गाँव में नल-जल से पाईप और पानी टंकी तो बना दिया गया है मगर उसमे से अब तक शायद हवा ही निकली होगी. कई गाँव में केवल पाईप लगाया गया मोटर नहीं लगाया गया. बिजली कट जाने के कारण भी कई गाँव में मोटर बंद हो जाता है, और पानी ख़त्म. जल स्तर घट जाने के कारण भी कई मोटर व्यर्थ हो गए है. कई बिगड़ गए है तो नए लगवाने के पैसे नहीं है. काम को देखकर लगता ऐसा है कि कई गाँव का मिलाकर करोड़ों का ग़बन किया गया है.          

गर्मियों में तालाब अब पूरी तरह सूखने लगे है, बरसात में पूरी तरह तालाब भरते भी नहीं है. जोंक नदी के माध्यम से जो भी पानी आता है वो हम छोड़ देते है. महानदी के पास हम बड़ा बांध बनाने में सक्षम नहीं है, जो बांध है वहाँ का पानी हम तक आता ही नहीं है. जनप्रतिनिधि ऐसे  मिलते है जो केवल सपने दिखाते है.

विधानसभा चुनाव के पूर्व सरायपाली के वर्त्तमान विधायक सरायपाली में कृषि विश्वविद्यालय और नहर निर्माण की बातों को लेकर चुनाव लड़ा था. प्रशासनिक अनुभव के तौर पर 5 वर्षों में अपने वादों को किस प्रकार पूर्ण कर पाते है यह तो समय ही बताएगा. मगर पानी की समस्या से कहीं बढ़कर इस क्षेत्र में सत्ताधारियों के लिए अब लोकसभा चुनाव में वापसी करना है.

जबकि विपक्ष तो केवल केन्द्र की योजना का गुणगान करते सत्ता में आना चाहता है, यहां की मुलभुत समस्या समझने को उनके पास पर्याप्त समय नहीं है. समय होता तो बीते 15 वर्षों में ऐसी बत्तर स्थिति ना हुई होती.                  

याद कीजिये बीते कई वर्षों से क्षेत्र अल्प वर्षा और सूखे की मार झेल रहा है. जिनके पानी है उनको दिक्कत नहीं जहाँ नहीं है उनकी सुनने वाला कोई नहीं.  जहाँ पड़ोस के ही राज्य में आजदी के बाद सन 1953 में बने एशिया की सबसे बड़ी मानवनिर्मित झील हीराकुद बांध पुरे राज्य की प्यास बुझाने के साथ किसानों की कृषि में भी सहायक बन रहा है तो वहीँ हमारे राज्य में सूखे और अप्ल्वर्षा को लेकर केवल कई वर्षों से केवल चिंता ही जताई जा रही है.

ओड़िशा के संबलपुर के पास बना यह हीराकुद बांध आजादी के मात्र 1 वर्ष बाद सन 1948 में बनना प्रारंभ हो गया और केवल 5 वर्षों में यह 4.8 किलीमीटर का यह बांध बना लिया गया. जबकि वही महानदी छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले से होकर गुजरती है लेकिन आरमखोरी की वजह से यहाँ के शासन प्रशासन इसमें ध्यान देना छोड़ केवल प्राकृतिक स्रोतों पर ही यहाँ के लोगों को निर्भर रखा.

नतीजतन आज नहर ना होने की वजह से जल स्तर तो घटा ही है इसके साथ कई सारे गाँव ऐसे है जहाँ तालाब भी पूरी तरह सुख चुके है ऐसी गर्मी में भी लोग 3 दिन में एक बार नहाने को मजबूर है. अगर इस विषय में गंभीर चर्चा नहीं की गई तो आने वाले समय में क्षेत्र के लोग निश्चित ही पानी का प्रलय ला खड़ा करेगा.






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