बदहाल व्यवस्था : तेजाब से हमले की 799 पीड़िताओं को नहीं मिला मुआवजा, सिर्फ अखबारों में बेहतर दिखती कानून
हांथी के दांत दिखाने के कुछ और खाने के कुछ और ठीक यही हालात को बयां कर रही है भारत की कानून व्यवस्था, महिला आयोग की मानें तो देश भर में तेजाब से हमले के 1273 मामलों में 799 में पीडि़ताओं को अब तक मुआवजा नहीं मिला है। ऐसी घटनाओं पर चिंता जताते हुए महिला आयोग ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को ऐसे मामलों में संज्ञान लेने को कहा है।
राष्ट्रीय महिला आयोग (National Commission for Women, NCW) का कहना है कि देश भर में तेजाब से हमले के 1273 मामलों में से कुल 799 मामलों में पीडि़ताओं को अब तक मुआवजा नहीं मिला है। महिला आयोग ने 24 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के साथ हुई ऑनलाइन बैठक में इन मामलों में तत्काल संज्ञान लिए जाने की मांग की है। इन राज्यों के प्रतिनिधियों के साथ हुई बैठक में आयोग की प्रबंधन सूचना प्रणाली (एमआइएस) की वेबसाइट पर दर्ज तेजाब के हमलों के मामलों पर चर्चा और समीक्षा हुई।
राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा ने तेजाब के हमले में जीवित
बची पीडि़ताओं की मुआवजा राशि की अदायगी नहीं किए जाने के मामलों पर चिंता
जाहिर की है। 20 अक्टूबर तक के प्राप्त आंकड़ों के अनुसार देश में एसिड
अटैक के 1273 मामलों में से कुल 474 मामलों में ही पीडि़ताओं को मुआवजा
दिया गया है। आयोग के मासिक न्यूज लेटर के अनुसार पीडि़ताओं को पहुंची चोट
के आधार पर मुआवजा राशि तीन लाख रुपये से आठ लाख रुपये के बीच दी जाती है।
शर्मा ने यह भी कहा कि एमआइएस का डाटा पूरी तरह से अपडेट नहीं है। उन्होंने वर्चुअल माध्यम के जरिए हुई बैठक में यह मामला राज्यों के मुख्य सचिवों के समक्ष उठाया है। चर्चा के दौरान ऐसी लापरवाही पर चिंता जाहिर की गई और कहा गया कि आयोग के पास महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा के लिए कानूनों का जनादेश है जिसमें तेजाब हमले अपराधों जैसे अत्याचारों से महिलाओं की सुरक्षा भी शामिल है।
यही नहीं आयोग की प्रबंधन सूचना प्रणाली (एमआइएस) की वेबसाइट पर दर्ज तेजाब के हमलों के मामलों की समीक्षा में चार्जशीट दाखिल करने में देरी का पता चला है। आयोग ने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के मुख्य सचिव के सामने इस मामले को उठाते हुए कहा कि एमआइएस पर एसिड अटैक डेटा के लिए नोडल अधिकारी तक नियुक्त नहीं किए गए हैं।
चर्चा के दौरान आयोग ने कहा कि यह बेहद चिंताजनक है कि कुछ राज्यों और
केंद्र शासित प्रदेशों में कई मामलों में पीड़िताओं को नियमित रूप से
इलाज तक की सुविधा मुहैया नहीं कराई जाती.