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कॉरपोरेट को बैंक शुरू करने की मंजूरी देना Bad Idea - रघुराम राजन

दो पूर्व केंद्रीय बैंकरों ने भारतीय रिजर्व बैंक (Reserve Bank of India, RBI) के वर्किंग ग्रुप की हालिया सिफारिश पर सवाल उठाया है कि बड़े कॉर्पोरेट घरानों को बैंक चलाने की अनुमति दी जाए। RBI के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन (Raghuram Rajan) और RBI के पूर्व डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य (Viral Acharya) ने कहा है कि बैंकिंग में कॉरपोरेट की अनुमति देने के लिए केंद्रीय बैंक (Reserve Bank of India) के एक इंटरनल वर्किंग ग्रुप (internal working group, IWG) ने जो प्रस्ताव रखे हैं, वे एक बुरा विचार (Bad idea) है।

बीते हफ्ते शुक्रवार को भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के एक आंतरिक समूह ने निजी बैंकों के मालिकाना हक पर नए नियमों को लेकर कई सिफारिशें की। इन सिफारिशों में सबसे बड़ी बात यह है कि ऐसे गैर बैंकिंग वित्तीय संस्थानों (NBFC) को बैंकिंग लाइसेंस देने की वकालत की गई है,

जिनका असेट 50000 करोड़ रुपये से ज्यादा है और जिनका कम से कम 10 साल का ट्रैक रिकॉर्ड है और साथ ही बड़े औद्योगिक घरानों को भी बैंक चलाने की अनुमति दी जा सकती है। रिजर्व बैंक की समिति की सिफारिशें आने के साथ ही बहस भी शुरू हो गई है।

भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा गठित इंटरनल वर्किंग ग्रुप ने बैंकिंग नियमन कानून (Banking Regulation Act) में जरूरी संशोधन के बाद बड़ी कंपनियों को बैंकों का प्रमोटर बनने की अनुमति देने का प्रस्ताव किया है। साथ ही निजी क्षेत्र के बैंकों में प्रमोटरों की हिस्सेदारी की सीमा बढ़ाकर 26 प्रतिशत किए जाने की सिफारिश की है।

वर्किंग ग्रुप ने बड़ी गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFC) को बैंकों में तब्दील करने का भी प्रस्ताव दिया है। RBI इस रिपोर्ट के आधार पर अंतिम गाइडलाइंस जारी करेगा।

राजन और आचार्य ने अपने लेख में कहा है कि बैंकिंग क्षेत्र में कॉरपोरेट्स घरानों को अनुमति देने की सिफारिश एक बम जैसा है। उन्होंने कहा है कि उन कनेक्शनों को समझ पाना हमेशा मुश्किल हो जाता है जब ओ औद्योगिक घराने का हिस्सा बनते हैं। दोनों ने चेतावनी देते हुए कहा है कि भले ही RBI बैंकिंग लाइसेंस को निष्पक्ष रूप से आवंटित करता है, लेकिन यह उन बड़े व्यापारिक घरानों को अनुचित लाभ देगा जो पहले से ही शुरुआती पूंजी रखते हैं।

राजन और आचार्य ने आगे कहा है कि अत्यधिक कर्ज और राजनीतिक रूप से जुड़े व्यापारिक घरानों के पास लाइसेंस के लिए सबसे बड़ा प्रोत्साहन और क्षमता होगी जो हमारी राजनीति में धन शक्ति के महत्व को और अधिक बढ़ाएगा।


RBI ने भारतीय निजी क्षेत्र के बैंकों के लिए मौजूदा स्वामित्व दिशानिर्देश और कंपनी ढांचे की समीक्षा को लेकर आंतरिक कार्यकारी समूह का गठन 12 जून, 2020 को किया था। केंद्रीय बैंक ने समूह की रिपोर्ट हाल ही में जारी की और इस पर लोगों से 15 जनवरी, 2021 तक राय देने को कहा है।

प्रवर्तकों की पात्रता के बारे में समूह ने कहा कि प्रवर्तक कार्पोरेट समूह की वित्तीय तथा गैर-वित्तीय इकाइयो के साथ कर्ज के लेन-देन और निवेश संबंध के मामले से निपटने के लिये बैंकिंग नियमन कानून, 1949 में आवश्यक संशोधन के बाद बड़ी कंपनियां/औद्योगिक घरानों को बैंकों का प्रवर्तक बनने की अनुमति दी जा सकती है।

वर्किंग ग्रुप ने बड़े समूह के लिए निगरानी व्यवस्था मजबूत बनाने की भी सिफारिश की है। रिजर्व बैंक का बड़ी कंपनियों/औद्योगिक घरानों द्वारा बैंकों के स्वामित्व को लेकर रुख सतर्क रहा है। इसका कारण इससे जुड़ा जोखिम, संचालन को लेकर चिंता और हितों का टकराव है।

यह स्थिति उस समय उत्पन्न हो सकती है, जबकि बैंकों पर बड़ी कंपनियां या कार्पोरेट्स घरानों का स्वामित्व होगा। RBI ने पहली बार 2013 में निजी क्षेत्र में नए बैंक के लाइसेंस के लिए अपने दिशानिर्देश में नॉन-ऑपरेटवि फाइनेंशियल होल्डिंग कंपनी (एनओएफएचसी) के तहत बैंक के प्रवर्तन के लिए कई संरचनात्मक जरूरतों को निर्धारित किया था।





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