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डीआरआई को तस्करी नेटवर्कों से निपटने के लिए नये जमाने की प्रौद्योगिकी को अवश्य ही इस्तेमाल में लाना चाहिएः वित्त राज्य मंत्री

वित्त एवं कॉरपोरेट कार्य राज्य मंत्री श्री अनुराग ठाकुर ने कहा कि नये जमाने के तस्करी नेटवर्कों की कार्य प्रणाली से प्रभावकारी ढंग से निपटने के लिए सूचनाओं को साझा करने, डेटा विश्लेषण के उपयोग और आधुनिक प्रौद्योगिकियों के इस्तेमाल पर फोकस करना चाहिए। श्री ठाकुर ने यह बात आज नई दिल्ली में राजस्व खुफिया निदेशालय (डीआरआई) के 62वें स्थापना दिवस पर आयोजित विशेष कार्यक्रम के दौरान कही। 

श्री ठाकुर ने डीआरआई के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि यह निदेशालय अवैध अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की रोकथाम करता है और इसके साथ ही देश को आर्थिक एवं भौतिक सुरक्षा भी मुहैया कराता है। उन्होंने कहा कि सक्रिय नेटवर्किंग के जरिए रोकथाम संभव है। श्री ठाकुर ने कहा कि दरअसल यह नेटवर्किंग ही है जो आने वाले समय में नेट-वर्थ के रूप में उभर कर सामने आएगी।

श्री ठाकुर ने स्वास्थ्य, पर्यावरण, संस्कृति एवं अर्थव्यवस्था के मुद्दों के संदर्भ में हिफाजत सुनिश्चित कर देशवासियों के कल्याण एवं सुरक्षा के लिए बुनियादी ढांचागत सुविधाओं के सृजन पर फोकस किया। उन्होंने भारत का बेहतर भविष्य सुनिश्चित करने के लिए विशेषकर युवाओं को नशीली दवाओं की चपेट में आने से बचाने की जरूरत को रेखांकित किया।

इससे पहले वित्त मंत्रालय में राजस्व सचिव श्री अजय भूषण पांडेय ने उत्कृष्ट कामकाज के लिए डीआरआई की भूरि-भूरि प्रशंसा की। श्री पांडेय ने कहा कि उन्होंने राजस्व सचिव के रूप में डीआरआई के कामकाज को काफी करीब से अवलोकन किया है और इसके साथ ही उन्होंने डीआरआई कर्मियों द्वारा अपनी सामान्य ड्यूटी से परे जाकर पूरे समर्पण भाव के साथ काम करने को भी काफी करीब से देखा है।

सीबीआईसी के अध्यक्ष श्री पी.के. दास ने अपने संबोधन में कहा कि डीआरआई राष्ट्र निर्माण में उल्लेखनीय योगदान देता रहा है और उत्तर से लेकर दक्षिण तक तथा पूरब से लेकर पश्चिम तक डीआरआई द्वारा दर्ज की गई अपनी व्यापक मौजूदगी उसकी प्रतिबद्धता, प्रयासों और सामंजस्य के सटीक प्रमाण हैं।

डीआरआई के महानिदेशक श्री बालेश कुमार ने अपने स्वागत भाषण में कहा कि डीआरआई तकरीबन 60 वर्षों के अपने अस्तित्व के दौरान तस्करी की समस्या से निपटने में सबसे आगे रहा है और उसकी ओर से यह अथक प्रयास अब भी जारी हैं। विगत दशकों के दौरान डीआरआई की अनगिनत उपलब्धियों और उसके समक्ष मौजूद चुनौतियों का उल्लेख करते हुए श्री कुमार ने कहा कि डीआरआई के लिए वर्तमान चुनौती वाणिज्यिक धोखाधड़ियों की रोकथाम के लिए आधुनिक प्रौद्योगिकी को अपनाना एवं अपने अनुकूल बनाना है।

इस अवसर पर श्री एम. वेंकट सुरेश को राष्ट्र सेवा के लिए मरणोपरांत पुरस्कार प्रदान किया गया। उनकी पत्नी ने श्री ठाकुर से यह पुरस्कार ग्रहण किया।

      स्थापना दिवस पर आयोजित समारोह के दौरान दो दिवसीय छठी क्षेत्रीय सीमा शुल्क प्रवर्तन बैठक (आरसीईएम) का भी शुभारंभ किया गया, जिसमें मित्र देशों के प्रतिनिधियों और राजनयिकों ने बड़े उत्साह के साथ भाग लिया। आरसीईएम का आयोजन साझेदार कस्टम संगठनों के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों जैसे कि इंटरपोल के साथ प्रभावकारी ढंग से संवाद करने के लिए किया जाता है। इस दौरान विशेषकर प्रवर्तन से संबंधित मुद्दों पर चर्चाएं की जाती हैं।  

इस वर्ष एशिया-प्रशांत क्षेत्र में अवस्थित 21 कस्टम प्रशासनों के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय संगठनों जैसे कि इंटरपोल, दवा एवं अपराध के लिए संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (यूएनओडीसी) और क्षेत्रीय खुफिया संपर्क (लाइजिनिंग) कार्यालय - एशिया-प्रशांत (आरआईएलओ-एपी) को भी इस आयोजन में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया है। यह बैठक ऐसे समय में आयोजित की जा रही है, जब हिंद महासागर क्षेत्र में हेरोइन की व्यापक तस्करी की घटनाएं बढ़ गई हैं।

डीआरआई के बारे में

देश-विदेश में अपनी मौजूदगी दर्ज करा चुका डीआरआई पिछले छह दशकों से भी अधिक समय से प्रतिबंधित वस्तुओं जैसे कि हथियारों एवं विस्फोटक पदार्थों, मादक द्रव्यों व नशीले पदार्थों, सोना व हीरे, नकली करेंसी नोटों, वन्य जीव वस्तुओं, नुकसानदेह एवं पर्यावरणीय दृष्टि से संवेदनशील सामग्री और प्राचीन वस्तुओं की तस्करी में संलग्न संगठित आपराधिक समूहों से निपटने से जुड़े अपने अधिदेश को पूरा करने में निरंतर कार्यरत रहा है। डीआरआई को वाणिज्यिक धोखाधड़ियों का पर्दाफाश करने, सरकार के कर राजस्व के अन्यत्र उपयोग की रोकथाम करने और व्यापार आधारित मनी लॉन्ड्रिंग एवं काले धन की समस्या से निपटने में भी विशेषज्ञता प्राप्त है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सीमा शुल्क संबंधी गठबंधनों में भी डीआरआई सबसे आगे रहता आया है। डीआरआई ने 60 से भी अधिक अन्य देशों के साथ सीमा शुल्क संबंधी पारस्परिक सहायता समझौते किए हैं, जिनके तहत सूचनाओं के आदान-प्रदान के साथ-साथ अन्य कस्टम प्रशासनों की सर्वोत्तम प्रथाओं या तौर-तरीकों से सीखने पर विशेष जोर दिया जाता है।





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