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'संस्कृत भाषा' मस्तिष्क को तीव्र करने में करती है मदद: रिसर्च

विश्व की प्राचीनतम भाषा 'संस्कृत' को लगभग हजारों वर्षों से परम्परागत रूप से वाचन और स्मरण के जरिये भारतीय ऋषिमुनियों ने सर्वदा संवर्धित और संपोषित किया है. यही कारण है कि वैदिक मन्त्रोच्चारण की इस परम्परा को यूनेस्को ने वर्ष 2003 में मानवता की 'अमूर्त सांस्कृतिक विरासत सूची' में स्थान दिया है.

जहां दुनिया की दूसरी संस्कृतियों ने अपने ज्ञान के भण्डारों को बड़े-बड़े पुस्तकालयों में संरक्षित किया है वहीं भारत ने सदियों से अपने अद्वितीय ज्ञानागार को पीढी दर पीढ़ी मनीषियों के मस्तिष्क में संरक्षित किया है और यही विलक्षण परम्परा सदियों से दुनिया के लिए कौतुक का विषय रही है. लेकिन आधुनिक वैज्ञानिक अनुसंधानों से अब यह गुत्थी सुलझती हुई नजर आई, जब संस्कृत इफ़ेक्ट (संस्कृत प्रभाव) नाम के एक शोध को अमेरिका के 'साइंटफिक अमेरिकन' जरनल में प्रकाशित किया गया. इस पूरे प्रयोग से यह सिद्ध हुआ कि 'संस्कृत भाषा' को निरंतर पढ़ने पर मस्तिष्क पर किस प्रकार के चमत्कारिक प्रभाव पड़ते हैं.

इस शोध को 'कोलंबिया विश्वविद्यालय' से पीएचडी कर चुके अमेरिकी संस्कृत विद्वान तथा स्पेन के 'बास्क सेंटर फॉर कॉग्निशन ब्रेन एंड लैंग्वेज' के अनुसंधाता डॉ जेम्स हार्टसेल ने जन्म दिया. डॉ जेम्स हार्टसेल ने यह शोध इटली के 'ट्रेन्टो विश्वविद्यालय' के 'सेंटर फोर ब्रेन साइंसेस' के सहयोगियों तथा भारत के 'नेशनल ब्रेन रिसर्च सेंटर' में न्यूरो साइंटिस्ट डॉ नंदनी सिंह के सहयोगी सदस्यों के साथ पूरा किया.





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