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अभूतपूर्व मुआवजे से जगी तस्करी के खिलाफ लड़ाई में उम्मीद

मुआवजा पाने वाली पीड़िता 13 साल की थी जब मानव तस्करों ने उसे ओडिशा से अगवा कर कोलकाता के सोनागाछी में बेच दिया. सोनागाछी भारत में वेश्यावृत्ति का सबसे बड़ा गढ़ है. पीड़िता के वकील ने बताया कि तस्करी की रोकथाम करने वाले अधिकारियों ने उसे 2016 में वहां से बचा लिया और एक आश्रय में रखवा दिया. आज वो 17 वर्ष की हो चुकी है और उसी आश्रय में रह कर पढ़ाई कर रही है.

पिछले सप्ताह पश्चिम बंगाल में एक अदालत ने उसे नौ लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश दिया. उसकी तस्करी के मामले में तीन संदिग्धों को गिरफ्तार किया गया था, जिनके खिलाफ गवाही वो पहले दे चुकी है. इस मामले में 2017 में एक नाबालिग को अदालत ने दोषी ठहराया था और उसके अलावा दो पुरुषों पर मुकदमा चल रहा है. पीड़िता के वकीलों में से एक सप्तर्षि बिस्वास ने बताया कि मुआवजा अभूतपूर्व है.

सप्तर्षि इंटरनेशनल जस्टिस मिशन संगठन में लीगल सोल्यूशन्स के प्रमुख भी हैं. उन्होंने बताया, "पीड़िता की उम्र, उसका भविष्य और अपना जीवन फिर से खड़ा करने के लिए उसे क्या क्या चाहिए होगा, मुआवजे की रकम तय करने में इन सब चीजों पर ध्यान दिया गया. इसके अलावा अदालत में उसकी गवाही ने भी अहम भूमिका निभाई." जनवरी में ही एक शोध में पता चला था कि एक प्रतिशत से कम तस्करी के शिकार लोग मुआवजा जीत पाते हैं.


उन मामलों में भी रकम एक लाख से 10 लाख के बीच कुछ भी हो सकती है. भारत में हर राज्य में मुआवजे की अलग योजना है. इन योजनाओं के बारे में जानकारी का काफी अभाव है और अपराध के बार में जल्द सूचना देने से लेकर पुलिस से सहयोग करने और अदालत में गवाही देने तक, हर तरह की जिम्मेदारी का बोझ पीड़ित के ही कन्धों पर ही होता है. इन वजहों से अधिकतर पीड़ित मुआवजे से वंचित रह जाते हैं.

तस्करी के खिलाफ लड़ने वाली संस्था तफ्तीश के साथ काम करने वाले वकील कौशिक गुप्ता ने भी इस फैसले का स्वागत किया और कहा कि मुआवजे की रकम आगे जा कर इस तरह के मामलों के लिए एक नजीर बन सकती है. लेकिन उन्होंने यह भी कहा, "सिर्फ वही पीड़ित जिन्हें एनजीओ वालों का समर्थन प्राप्त होता है मुआवजे के लिए आवेदन कर पाते हैं, क्योंकि अधिकतर पीड़ितों को पूरी कानूनी प्रक्रिया से गुजरना आता ही नहीं है."

देश में पिछले साल मानव तस्करी के करीब 2,260 मामले सामने आए थे. इनमें 10 में से नौ मामलों में यौन उत्पीड़न भी हो चुका था. तीन मामलों में 6,616 पीड़ित पाए गए थे, जिनमें से 44 प्रतिशत बच्चे थे. कोलकाता में जहां वो पीड़िता रहती है, उस आश्रय की निदेशिका बसाबी रोजारी ने बताया कि पीड़िता इस रकम का इस्तेमाल आगे की पढ़ाई करने और अपना घर बनाने के लिए करना चाहती है. उन्होंने यह भी बताया कि पीड़िता अपने परिवार से संपर्क में नहीं है और भविष्य में आत्मनिर्भर रहना चाहती है.

भारत में कहां कहां हैं मानव तस्करी के गढ़

पश्चिम बंगाल

2016 में मानव तस्करी के सबसे ज्यादा मामले पश्चिम बंगाल में दर्ज हुए. देश भर में एक साल में कुल 8,132 शिकायतों में से 3,576 केवल इसी राज्य से आईं.

पूर्वी राज्य

झारखंड में 109, पड़ोसी राज्य ओडीशा में 84 और बिहार में 43 मानव तस्करी के मामले सामने आए. उत्तर प्रदेश में 79 और मध्य प्रदेश में 51 मामले दर्ज हुए.

असम

पूर्वोत्तर के राज्यों में 91 मामलों के साथ असम का हाल सबसे खराब रहा. फिर भी 2014 के मुकाबले हालात बहुत बेहतर हुए हैं जब राज्य में 380 ऐसे मामले दर्ज किए गए थे.

आंध्र प्रदेश और तेलांगना

आंध्र प्रदेश में 239 और तेलांगना में 229 मामलों के साथ हालात एक से रहे. केरल में मात्र 21 शिकायतें दर्ज हुईं

तमिलनाडु और कर्नाटक

दक्षिण भारतीय राज्यों में सबसे बुरा हाल तमिलनाडु का रहा. वहां 2016 में मानव तस्करी के 434 मामले दर्ज हुए. इसके बाद कर्नाटक में 404 मामले सामने आए.

केंद्र शासित प्रदेश

केंद्र शासित (यूटी) प्रदेशों में दिल्ली मानव तस्करी की शियाकतों के मामले में सबसे ऊपर है. यूटी के कुल 75 मामलों में से 66 केवल दिल्ली में थे. हालांकि पिछले साल ये आंकड़ा इससे कहीं ज्यादा 87 था.

गुजरात और महाराष्ट्र

राजस्थान के बाद 548 मामलों के साथ गुजरात का नंबर आता है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 517 मामलों के साथ महाराष्ट्र में भी ऐसा ही हाल रहा.

राजस्थान

मानव तस्करी के कुल मामलों में से 60 फीसदी से ज्यादा मामले केवल पश्चिम बंगाल और राजस्थान से मिले. राजस्थान से 1,422 शिकायतें आयीं.

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