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कर्नाटक में छत्तीसगढ़ी भाषा सुनकर जगी आस, बिछड़ने के 22 साल बाद परिवार से मिलने गांव पहुंचा जमील मां और भाई के साथ.

1998 में गुजरात में आए समुद्री तूफान की चपेट में आने से चोट लगी और याददाश्त चली गई.

भटक कर मुंबई के पास एक गांव पहुंच गयाए वहां से मजदूरों के साथ कर्नाटक चला गया.

अब्दुल रिजवान जमील खान। उम्र लगभग 38 साल। 22 साल पहले गुजरात में आए साइक्लोन तूफान की चपेट में आया। महीनों तक याददाश्त नहीं थी। भटक कर मुंबई के पास एक गांव पहुंच गया। वहां से मजदूरों के साथ कर्नाटक चला गया। वर्षों बाद उसे कर्नाटक के बाजार में कुछ लोग मिले जो छत्तीसगढ़ी में बात कर रहे थे। वही मजदूर 22 साल बाद उसके घर पहुंचने का सहारा बने।

मुंगेली जिले के ग्राम आछी डोंगरी का जमील खान लगभग 16 साल की उम्र में वर्ष 1998 अपने पिता शेरू खान मां कुरैशा बानो व छोटे भाई.बहनों के साथ कमाने.खाने के लिए गांव के मजदूरों के साथ गुजरात के जामनगर गया था। वहां पिता के साथ राजमिस्त्री का काम करता था। पिता का स्वास्थ्य खराब हुआ ताे परिवार के लोग जमील को छोड़कर अपने गांव वापस आ गए। वहां पर ठेकेदार से पैसा लेना था। जमील खान ने दैनिक भास्कर से चर्चा करते हुए बताया उसी समय समुद्र पर साइक्लोन तूफान आया और सब कुछ तबाह हो गया। उनके साथ के 300 से अधिक मजदूर लापता हो गए। सिर्फ चार लोग बचे थे। तूफान और भागदौड़ में सिर पर चोट लगी और कुछ याद नहीं रहा।

वह बचे हुए लोगों के साथ मुंबई के पास किसी गांव में पहुंच गया। कुछ दिन बाद स्वास्थ्य ठीक हुआ लेकिन वहां पर कोई बोली नहीं समझता था इसलिए इशारे से काम मांगकर किया। होटलों में काम किया और फुटपाथ पर सोया। ऐसे ही दिन बीत रहा था। तीन चार साल बाद एक ठेकेदार मिला जो हिंदी में बात कर रहा था फिर उसके पास काम किया। वहां से मजदूरों के साथ कर्नाटक के ग्राम मुतांगी हुमानाबाद जिला बीदर कर्नाटक पहुंच गया। भाषा और बोली की वजह से बिलासपुर पहुंचने का सही रास्ता कोई नहीं बता सका।

बाजार में फरिश्तों की तरह मिले

जमील ने बताया 15 दिन पहले अपने गांव के बाजार में सामान खरीदने गया। वहां पर चार.पांच लोगों को छत्तीसगढ़ी में बात करते सुना तो वापस अपने घर पहुंचने की उम्मीद जागी। उनसे मिला और आप बीती सुनाई। बताया कि उसके गांव का नाम आछी डोंगरी है। वह बिलासपुर के पास है। उन ग्रामीणों ने बताया कि वह तो लोरमी के पास हैए वे लोग भी लोरमी के आसपास के ही थे। उन्होंने एक कागज में गाड़ी का नाम और कहां से कैसे जाना है यह लिखकर उसे दिया। वह अपने एक पुत्र को लेकर पहले सिकंदराबाद पहुंचा। वहां से ट्रेन से राजनांदगांव आया। वहां से बस से पंडरिया पहुंचा। जहां उसके मामा नबेरूद खान का गांव मंझौली हैए उसने आसपास पूछा तो लोगों ने उसे रास्ता बताया और वह मामा के घर पहुंचा। वह पांच किलोमीटर पैदल चलकर रात 10 बजे मामा के घर पहुंचा।

घर पर कोई बुजुर्ग नहीं थे। नए लोगों ने उसे नहीं पहचाना। जब उसने अपना नाम घर का पता और पूरी कहानी बताई तो फिर मामा के घर वालों ने बिलासपुर में रहने वाले उसके भाई को मोबाइल फोन पर जानकारी दी। जमील का कहना है कि उसका परिवार मिल गयाए अब वह कर्नाटक जाकर अपनी पत्नी व बच्चों के लेकर यहीं आ जाएगा।

सुबह लेने पहुंच गए भाई गांव में बाजे से स्वागत

मंगला धूरी पारा में रहने वाले उसके भाई व परिजन सुबह.सुबह ही पंडरिया पहुंच गए। घर पर मां का रो.रोकर बुरा हाल था। वह बिछड़े हुए बेटे से मिलने आतुर थी। उसके गांव आछी डोंगरी के लोगों को पता चला तो पूरा गांव बाजे.गाजे के साथ गांव की सरहद पर आ गए। सभी लोग नाचते गाते घर तक लेकर गए। परिवार से मिलकर जमील खूब रोया। परिजन भी खूब रोएए पूरा गांव भावुक हो गया।

खूब ढूंढा पर नहीं मिला पर उम्मीद नहीं खोए थे

मां कुरैशा बानो ने बताया जामनगर में तूफान आने की खबर मिली तो सभी लोग डर गए थे। बहुत दिन तक जब जमील की कोई खबर नहीं मिली तो उसके पिता उसे ढूंढने के लिए तीन बार जामनगर गए लेकिन इसका कहीं पता नहीं चला। बस इसके लौटने का इंतजार करते रहे। 7 साल पहले इसके पिता का भी निधन हो गया। उम्मीद थी एक न एक दिन लौट आएगा।





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