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सारंगढ़ अंचल में एकादशी उद्यापन यज्ञ हुवा पूर्ण...दर्जनों गाँव मे किया गया व्रत और पूजन..क्या है एकादशी के पीछे वैज्ञानिक तर्क जानिए....

एकादशी व्रत करने के पीछे जनमानस का उद्देश्य भगवत भक्ति और धर्म विश्वास है। हमारे पूर्वजों ने बिना तर्कसम्मत के कोई भी व्रत या अनुष्ठान बनाया ही नही है।ऋषियों ने एकादशी व्रत का विधान बनाने के पीछे भी लोगों के अन्दर उदारता, दान, सेवा के भावों को विकसित करना था। आज भौतिकवाद के विकास के कारण लोग भावना विहीन होते जा रहे हैं, इसीलिये व्रत- अनुष्ठानों की महती आवश्यकता है।एकादशी व्रत करने वाले व्यक्ति एकादशी को अन्न का परित्याग करते है और फल, शाक, दूध, कन्द का प्रसाद ग्रहण करते हैं। इसके पीछे देश के सामाजिक, आर्थिक विकास की दृष्टि है।अगर १० करोड़ लोगभी एकादशी व्रत करते हैं तो ५ करोड़ किलो अनाज की बचत होती है। 

और अन्न की बचत करना अन्न उपजाने जैसा ही है। यह राष्ट्रिय खाद्यान्न की कमी को पूरा करने में एक महत्त्वपूर्ण योगदान जैसा है।उदारता और त्याग का अनुपम उदाहरण यहाँ यह है कि व्रत करने वाले द्वादशी के दिन किसी लोकसेवी, धर्मसेवी जिसे ब्राह्मण भी कहा जाता है को दान करके भोजन ग्रहण करते हैं।इस व्यवस्था से लोक सेवी को अपनी आजीविका के उपार्जन की आवश्यकता नहीं रहती और पूरा समय समाज के नैतिक और आध्यात्मिक उत्थान में लगाते हैं। इसीलिये हमारे शास्त्रों मे एकादशी व्रत की महिमा गायी जाती है।

फर्सवानी, सिंगारपुर, कपिसदा, भेडवन समेत दर्जनों गाँव मे किया गया उद्यापन:-

सारंगढ़ अंचल के दर्जनों ग्राम में एकादशी व्रत का उद्यापन किया गया। जिसमें कलश यात्रा, रात्रि पूजन, भजन कीर्तन, यज्ञ, दान इत्यादि करके भगवान विष्णु, मा लक्ष्मी की पूजा की गयी।

आचार्य लक्ष्मी नारायण पाणिग्राही ने फर्सवानी में किया लोक शांति हेतु यज्ञ:-
एकादशी उद्यापन के साथ-साथ कोरोना सहित अन्य प्राकृतिक आपदा के निवारण हेतु शांति यज्ञ किया गया। जिसमें लोककल्याण हेतु महामृत्युंजय मंत्र सहित हवन सम्पन्न हुआ। उपरोक्त यज्ञ मुगलीपाली के आचार्य लक्ष्मीनारायण पाणिग्राही के तत्वावधान में सम्पन्न हुवा।




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