छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक एवं हरियाली का प्रतीक भोजली पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया गया
आज लोरमी वार्ड नंबर 12 में छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक एवं हरियाली का प्रतीक भोजली पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया गया भारत के अनेक प्रांतों में सावन महीने की सप्तमी को छोटी॑-छोटी टोकरियों में मिट्टी डालकर उनमें अन्न के दाने बोए जाते हैं। ये दाने धान, गेहूँ, जौ के हो सकते हैं। ब्रज और उसके निकटवर्ती प्रान्तों में इसे 'भुजरियाँ` कहते हैं। इन्हें अलग-अलग प्रदेशों में इन्हें 'फुलरिया`, 'धुधिया`, 'धैंगा` और 'जवारा`(मालवा) या भोजली भी कहते हैं। तीज या रक्षाबंधन के अवसर पर फसल की प्राण प्रतिष्ठा के रूप में इन्हें छोटी टोकरी या गमले में उगाया जाता हैं। जिस टोकरी या गमले में ये दाने बोए जाते हैं उसे घर के किसी पवित्र स्थान में छायादार जगह में स्थापित किया जाता है। उनमें रोज़ पानी दिया जाता है और देखभाल की जाती है। दाने धीरे-धीरे पौधे बनकर बढ़ते हैं, महिलायें उसकी पूजा करती हैं एवं जिस प्रकार देवी के सम्मान में देवी-गीतों को गाकर जवांरा– जस – सेवा गीत गाया जाता है वैसे ही भोजली दाई (देवी) के सम्मान में भोजली सेवा गीत गाये जाते हैं। सामूहिक स्वर में गाये जाने वाले भोजली गीत छत्तीसगढ की शान हैं।
खेतों में इस समय धान की बुआई व प्रारंभिक निराई गुडाई का काम समापन की ओर होता है। किसानों की लड़कियाँ अच्छी वर्षा एवं भरपूर भंडार देने वाली फसल की कामना करते हुए फसल के प्रतीकात्मक रूप से भोजली का आयोजन करती हैं। सावन की पूर्णिमा तक इनमें ४ से ६ इंच तक के पौधे निकल आते हैं। रक्षाबंधन की पूजा में इसको भी पूजा जाता है और धान के कुछ हरे पौधे भाई को दिए जाते हैं या उसके कान में लगाए जाते हैं। भोजली नई फ़सल की प्रतीक होती है। और इसे रक्षाबंधन के दूसरे दिन विसर्जित कर दिया जाता है। नदी, तालाब और सागर में भोजली को विसर्जित करते हुए अच्छी फ़सल की कामना की जाती है। यह त्यौहार बड़ी धूमधाम से वार्ड नंबर 12 में प्रत्येक वर्ष मनाया जाता है इसमें मुख्य रूप से सम्लित हुए गणेश निषाद, धनंजय दुबे,विनय साहू, संजय राजपूत, नीलेश राजपूत, रूपेश राजपूत,कोमल, छोटू, राहुल,रमेश दसरथ, शैलेष, सहदेव, आदि लोग शामिल हुए.