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पाले से बचाव हेतु कृषक ये करें उपाय

रात्रि में आसमान साफ, सूर्यास्त के समय अधिक नमी के साथ बहुत धीमा अथवा शांत वायु एवं जमीन पर गैर संवाहक परत की उपस्थिति के कारण रात्री में सतही तापमान के 0 डिग्री सेल्सियस से नीचे गिरने से पाला पड़ती है । सतही तापमान के 0 डि.सें. से नीचे गिर जाने से पौधे की कोशिकाओं में उपस्थित कोशिका द्रव्य भी बर्फ रूप में परिवर्तित हो जाती है जिससे पौधों में विभिन्न प्रकार के लक्षण जैसे ( पत्तियों का मुरझाना, झुलसना, पीली पड़ना, पुष्प कलिकाओं का सुखकर गिर जाना इत्यादि) दिखाई देते है । श्री एस.के. भुआर्य (कृ.मौ.विशेषज्ञ) बताते है कि कुछ सुरक्षात्मक उपाय अपनाकर पाले से फसलों में होने वाली छति को कम किया जा सकता है ।

•    फसलों को पाले से बचाने के लिए पाले का पूर्वानुमान होने पर बारबार हल्की सिंचाई/स्प्रिंकलर सिंचाई शाम के समय करना चाहिए ।

•    केले के गुच्छे को छिद्रयुक्त पालीथीन से ढंकना चाहिए ।

•   सतही मृदा ढीली होने से रात्री में उष्मा का संचालन सतही मृदा तक नहीं हो पाता जिस कारण रात में सतही मृदा का तापमान कम हो जाता है और पाले की संभावना बढ़ जाती है इसलिए पाले का पूर्वानुमान होने पर निराई-गुड़ाई नहीं करना चाहिए ।

•     पाले के प्रति संवेदनशील फसलों जैसे सरसों, राजमा, आलू, टमाटर और चना की पाले से सुरक्षा हेतु जल मिश्रित सल्फ्यूरिक अम्ल का 0.1 प्रतिशत (1 लीटर सल्फ्यूरिक अम्ल को 1000 लीटर पानी में मिलाकर) या थायोयूरिया 500 ग्राम प्रति 1000 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए, यदि पाला की संभावना बनी हुई है तो पुनः 15 दिन के अन्तराल पर छिड़काव किया जा सकता है ।

•  नर्सरी पौध तथा पौधों की कतारों को साफ अथवा काले प्लास्टिक शीट से ढंकने से मृदा ताप गिरावट को कम किया जा सकता है । साफ प्लास्टिक से ढंकने से पहले हल्की सिंचाई कर मृदा को नम बना लेना चाहिए ।

•    पालीथिन अथवा पैरा से मल्चिंग कर मृदा ताप गिरावट को कम किया जा सकता है।

•     स्थायी उपायों हेतु खेतों के उत्तरपश्चिमी दिशा के मेढ़ों में वायु अवरोधक पौधे अथवा बड़े पैमाने पर सुरक्षा हेतु रक्षिवितान (Shelterbelts) लगाया जा सकता है तथा आकस्मिक बचाव हेतु वायु अवरोधक के रूप में घास अथवा बांस से बनी टाट का उपयोग किया जा सकता है एवं छोटे पौधों में पलवार कर पौधे को ग्रीन नेट से ढंक दें प्लास्टिक या फ्रास्ट प्रोटेक्शन फ्लीस से ढंकने पर सुबह पौधे को खेुला करने की आवश्यकता होती है।

•   इसके अलावा जिन क्षेत्रों में बड़े स्तर पर क्षति की आशंका रहती है वहॉं हिटर, बडे़ पंखे का भी उपयोग किया जाता है ।




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