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देवी दर्शन के लिए यहाँ पुरुषों को करना पड़ता है महिलाओं की तरह 16 श्रृंगार, पूरी होती सारी मनोकामना

केरल के कोल्लम जिले में स्थित कोट्टंकुलंगार श्री देवी मंदिर में हर साल आयोजित होने वाला ‘चमयाविलक्कू उत्सव’ एक ऐसा उत्सव है जहां पुरुष पारंपरिक महिलाओं की पोशाक में तैयार होते हैं और पूजा-अर्चना करते हैं। 

कोरोना के कारण यहाँ दो वर्षों से मंदिर में दर्शन करने की मनाही थी। ‘चमयाविलक्कू उत्सव’ कोरोना की पाबंदियों के दो साल बाद फिर से आयोजित किया गया। हालांकि, इस बार देवी दर्शन के लिए आए पुरुषों की संख्या कम रही। इस उत्सव में हजारों की संख्या में पुरुष भाग लेते हैं।

इस उत्सव के अवसर पर पुरुष महिलाओं की तरह साड़ी और गहने पहनते हैं। मंदिर परिसर में ही परिवर के अन्य सदस्य या मेकअप आर्टिस्ट पुरुषों को तैयार करते हैं और 16 शृंगार करते हैं। इसके बाद यात्रा निकाली जाती है और सभी विधि-विधान से पूजा करते हैं। इस दौरान पुरुष अपने हाथ में पाँच बत्ती से जलाया गया दीपक अपने हाथ में रखते हैं। चमयाविलक्कु का शाब्दिक अर्थ है श्रृंगार प्रकाश यानी पांच बत्ती से जलाया गया दीप।

ऐसी मान्यता है कि महिलाओं का रूप धारण कर पूजा करने से पुरुषों को नौकरी, धन और अन्य जो भी मनोकामना होगी वो पूरी होती है। वैसे इस उत्सव के पीछे भी कई स्थानीय लोक कथाएं भी प्रचलित हैं। 

एक लोक कथा के अनुसार, एक बार कुछ चरवाहों जंगल में नारियल मिला था और इन लोगों ने इसे पत्थर पर मारकर तोड़ने की कोशिश की। इस कोशिश में पत्थर से खून की बूंदे टपकने लगी जिससे सभी डर गए और गांववालों को इस बारे में जानकारी दी।

इसके बाद स्थानीय लोगों ने ज्योतिषियों से परामर्श किया तो उन्होंने बताया कि पत्थर में वनदुर्गा की अलौकिक शक्तियां हैं । इसके बाद मंदिर के निर्माण हेतु पूजा शुरू कर दी गई। मंदिर निर्माण के बाद केवल लड़कियों व महिलाओं को ही यहाँ पूजा करने की अनुमति थी। लेकिन एक बार एक गाय चराने वाले पुरुष ने महिला का रूप धारण कर मंदिर में पूजा-अर्चना की। तभी से इस मंदिर में दर्शन के लिए लड़कियों के रूप में तैयार करने की परंपरा शुरू हुई थी।




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