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मां के भक्तों की आस्था का एक ऐसा मंदिर, जहां मां के दर्शन मात्र से ही कष्टों का निवारण होता है

मां के भक्तों की आस्था का एक ऐसा मंदिर, जहां मां के दर्शन मात्र से ही कष्टों का निवारण हो जाता है. यहां भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. देश-विदेश के भक्तों सहित कई नेता और अभिनेता मंदिर में माथा टेकने आते हैं. नवरात्रि में भी यहां प्रतिवर्ष लाखों भक्तों का तांता लगा रहता है.

 कहा जाता है कि महाभारत काल में यहां से पांडवों को विजयश्री का वरदान प्राप्त हुआ था. उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर सौ किलोमीटर दूर ईशान कोण में आगर मालवा जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर नलखेड़ा में लखुंदर नदी के तट पर पूर्वी दिशा में मां बगलामुखी विराजमान हैं.

मां बगलामुखी की पावन मूर्ति विश्व में केवल तीन स्थानों पर विराजित है. एक नेपाल, दूसरी मध्य प्रदेश के दतिया और तीसरी नलखेड़ा में स्थित है. कहा जाता है कि नेपाल और दतिया में ‘श्रीश्री 1008 आद्य शंकराचार्य’ जी द्वारा मां की प्रतिमा स्थापित की गई है, जबकि नलखेड़ा में मां पीतांबर रूप में शाश्वत काल से विराजित है. प्राचीन काल में यहां बगावत नाम का गांव हुआ करता था. यह विश्व शक्ति पीठ के रूप में भी प्रसिद्ध है.

मां बगलामुखी की उपासना से माता वैष्णो देवी और मां हरसिद्धि के समान ही धन और विद्या की प्राप्ति होती है. सोने जैसे पीले रंग वाली, चांदी के जैसे सफेद फूलों की माला धारण करने वाली, चंद्रमा के समान संसार को प्रसन्न करने वाली, इस त्रिशक्ति का दिव्य स्वरूप अपनी ओर आकर्षित करता है. 

सूर्योदय से पहले ही सिंह मुखी द्वार से प्रवेश के साथ ही भक्तों का मां के दरबार में हाजिरी लगाना और मुराद मांगने का सिलसिला अनादी काल से चला आ रहा है. भक्ति और उपासना की अनोखी डोर भक्तों को मां के आशीर्वाद से बांधती है. मूर्ति की स्थापना के साथ जलने वाली अखंड ज्योत आस्था को प्रकाशमान किए हुए है.

पंडित मनोज कहते हैं कि मां बगलामुखी की इस विचित्र और चमत्कारी मूर्ति की स्थापना का कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं मिलता. किंवदंती है कि यह मूर्ति स्वयं सिद्ध स्थापित है.

 काल गणना के हिसाब से यह स्थान करीब पांच हजार साल से भी पहले से स्थापित है. कहा जाता है कि महाभारत काल में पांडव जब विपत्ति में थे, तब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें मां बगलामुखी के इस स्थान की उपासना करने के लिए कहा था. 

तब मां की मूर्ति एक चबूतरे पर विराजित थी. पांडवों ने इस त्रिगुण शक्ति स्वरूपा की आराधना कर विपत्तियों से मुक्ति पाई थी और अपना खोया हुआ राज्य वापस पा लिया. यह एक ऐसा शक्ति स्वरूप है, जहां कोई छोटा बड़ा नहीं. सभी के दुखों का निवारण करती है. यह शत्रु की वाणी और गति का नाश करती है. अपने भक्तों को अभयदान देती है.

बगलामुखी की यह प्रतिमा पीतांबर स्वरुप की है. पित्त यानी पीला, इसलिए यहां पीले रंग की सामग्री चढ़ाई जाती है. जिसमें पीला कपड़ा, पीली चुनरी, पीला प्रसाद शामिल है. इसके साथ ही संतान की प्राप्ति के लिए मंदिर की पिछली दीवार पर स्वास्तिक बनाने की परंपरा है.

मनोकामनाओं की पूर्ति होती है. नवरात्रि के दौरान हवन की क्रियाओं को संपन्न कराने का विशेष महत्व है. अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए किए जाने वाले इस हवन में तिल, जो, घी, नारियल, आदि का इस्तेमाल किया जाता है. कहते है कि माता के सामने हवन करने से सफलता के अवसर दोगुने हो जाते हैं.

पंडित योगेंद्र बताते हैं कि बगलामुखी के इस मंदिर के आस-पास की संरचना दैवीय शक्ति के साक्षात होने का प्रमाण करती है. मंदिर के उत्तर दिशा में भैरव महाराज का स्थान, पूर्व में हनुमान जी की प्रतिमा, दक्षिण भाग में राधा कृष्ण का प्राचीन मंदिर भक्ति का एक और खास मुकाम है. राधा कृष्ण मंदिर के पास ही शंकर, पार्वती और नंदी की स्थापना है. मंदिर परिसर में संत महात्माओं की सत्रह समाधियां और उनकी चरण पादुकाएं हैं.


जानकारों के मुताबिक, मां के इस मंदिर में पूरे साल भर भक्तों का तांता लगा रहता है. इस मंदिर में प्रधानमंत्री मोदी के परिवार समेत कई केंद्रीय मंत्री, कई दिग्गज नेताओं का आना हुआ है. कई अभिनेता व अभिनेत्री भी मां के दरबार में माथा टेक चुके हैं. मां के आशीर्वाद के लिए नेता मंदिर में माथा टेकते और हवन करते हैं.




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