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सारंगढ़ विधानसभा में भाजपा उतारेगी गैर सतनामी विधायक प्रत्याशी ?

सारंगढ़।छत्तीसगढ़ की सारंगढ़ विधानसभा 17 अनुसूचित जाति वर्ग के लिए सुरक्षित सीट में से एक है इस विधानसभा अंतर्गत सारंगढ़ विकास खण्ड के 125 पंचायत और 1 नगरपालिका परिषद व बरमकेला विकास खण्ड के 60 ग्राम पंचायत व 1 नगर पंचायत शामिल हैं जिनमें मतदान के लिए 341 बूथ केंद्र बनाये गये हैं इस विधानसभा में 119669 महिला एवं 119895 पुरूष सहित कुल 239566 मतदाता हैं। स्वतंत्रता के बाद से तत्कालीन मध्यप्रदेश शासन के समय से इस विधानसभा में सर्वाधिक समय तक कांग्रेस का कब्जा रहा है जिसमें निर्दलीय पुरीराम चौहान ने सबसे पहले कांग्रेस को सेंध लगाया जिसके बाद 1993 के विधानसभा चुनाव में शमशेर सिंह जीते और भाजपा का कुनबा तैयार किया लेकिन 1998 में भाजपा को बसपा के छबिलाल रात्रे ने करारी शिकश्त देते हुये चुनाव जीते लेकिन सन 2000 में जब छत्तीसगढ़ राज्य अस्तित्व में आया तब कथित खरीद फरोख्त के जाल में फंसकर बसपा का दामन छोड़ छबिलाल रात्रे कांग्रेस में शामिल हो गये वर्तमान में जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ जे में कोर कमेटी के सदस्य हैं जिनके दल बदल लेने से तत्कालीन समय मे बसपा कार्यकर्ताओं में भारी नाराजगी बढ़ गई. 

जब 2003 में छत्तीसगढ़ विधानसभा का प्रथम चुनाव हुआ जिसमें छबिलाल रात्रे को कांग्रेस से टिकट न देकर पूर्व सांसद परसराम भारद्वाज के बेटे रवि भारद्वाज को सारंगढ़ विधानसभा से चुनाव लड़ाया किन्तु भाजपा एवं कांग्रेस के कुछ स्थानीय कार्यकर्ताओं ने रवि भारद्वाज को बाहरी प्रत्याशी का तमगा पहना दिया जिसका फायदा बीएसपी को हुआ और कामदा जोल्हे चुनाव जीत गई इस प्रकार से बीएसपी ने लगातार दो बार विधानसभा का नेतृत्व किया लेकिन 2008 के चुनाव में कांग्रेस के पूर्व विधायक हुलसराम मनहर की बहू पद्मा घनश्याम मनहर को चुनाव मैदान में उतारा जिसने बसपा व भाजपा दोनों को पछाड़कर कांग्रेस ने 15 साल की वनवास का हिसाब पूराकर अपने गढ़ में पद्मा मनहर को जीत दिलाकर वापसी की किन्तु 2013 में चाऊर वाले बाबा की लहर के साथ भाजपा ने नए फ्रेस चेहरे प्रयोग के तौर पर केराबाई मनहर को आजमाया जिससे भाजपा को दोनो पूर्व विधायक के एंटी इनकम्बेंसी का फायदा मिला. 

जिसके परिणाम स्वरूप लगभग 15 हजार मतों से कांग्रेस के पद्मा मनहर को पराजय का स्वाद चखना पड़ा और भाजपा ने केराबाई मनहर के रूप में सारंगढ़ विधानसभा में दूसरी बार नेतृत्व का अवसर कांग्रेस से छीन लिया इस प्रकार से छत्तीसगढ़ बनने के बाद यह पहला अवसर रहा है जब सरकार और विधायक सत्ताधारी दल को मिला अब तक के चुनाव परिणाम पर ध्यान दिया जावे तो सारंगढ़ की जनता ने किसी भी प्रत्याशी को दोबारा मौका नही दिया है हर बार नये विधायक प्रत्याशी को ही चुनना यहाँ की परंपरा रही है 1993 से 2013 तक के विधानसभा चुनाव में भाजपा कांग्रेस व बसपा ने अपने पार्टी निर्वाचित विधायक को दोबारा प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में उतार चुकी है. 

लेकिन सफलता अब तक नही मिली है इस स्थिति को भाजपा भांप चुकी है और समयानुसार नये प्रयोग को आजमाकर सारंगढ़ की सीट में कब्जा बनाये रखने के प्रयास में जुटी है।जिसके लिए उपयुक्त प्रत्याशी का चयन करने का मंथन कोर कमेटी की निर्वाचन समिति ने प्रारंभ कर दी है छत्तीसगढ़ राज्य में भाजपा चौथी पारी की सरकार बनाने के लिए सारंगढ़ सीट को 65 प्लस के दायरे में रखकर किसी भी स्थिति में कब्जे की सीट को खोना नही चाहती है जिसके लिए सारंगढ़ विधायक केराबाई मनहर के सरकारी कामकाज के अलावा संगठन के कार्यों में रुचि के साथ ही कार्यकर्ताओं व जनता के बीच सर्वे एजेंसी के माध्यम से दूरभाष से संवाद कर प्रोफाईल तैयार कर रही है सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार इस बार सारंगढ़ विधानसभा में एससी एसटी एक्ट में संशोधन को लेकर 2 अप्रैल को हुये भारत बंद के दौरान हुये उपद्रव व नगर के व्यापारियों द्वारा तोड़ फोड़ के विरोध में संगठित होकर स्वस्फूर्त नगर बंद के असर के साथ ही भाजपा संगठन से जुड़े दावेदारों के एससी एसटी आंदोलन में शामिल न होने से सतनामी समाज के इन प्रत्यशियों पर समाज के विरोध का असर भी चिंतित कर रही है जिसका तोड़ निकालने सामान्य एवं पिछड़ा वर्ग सहित विधानसभा के गैर सतनामी समाज के वोट को बढ़ाने और निर्धारित बीस साल बाद मिलने वाली गैर सतनामी फेक्टर पर ध्यान केन्द्रित करने की मंशा भाजपा बना रही है।

निर्दलीय पुरीराम चौहान से शुरू हुआ गैर सतनामी का सफर 20 साल में आता है एक बार मौका

सारंगढ़ विधानसभा के पुराने पृष्ठभूमि भी चौहान समाज से शुरू हुई है जिसके पहले विधायक तत्कालीन मध्यप्रदेश के समय मे मूनुदाई चौहान कांग्रेस समर्थित विधायक बने इसके बाद सतनामी समाज के हुलसराम मनहर,भैयाराम खूंटे के बाद निर्दलीय प्रत्याशी पुरीराम चौहान ने विपक्षी कांग्रेस प्रत्याशी को करारी शिकस्त देते हुये जमानत भी जब्त करा दिया था जिसके ठीक बीस साल बाद भाजपा ने 1993 में गैर सतनामी समाज के प्रत्याशी शमशेर सिंह को पहले गैर सतनामी विधायक प्रत्याशी के रूप चुनाव मैदान में उतारकर भाजपा ने इस विधानसभा में सफलता हाशिल की हालाकि उस समय भाजपा का चुनाव चिन्ह कमल छाप न होकर शेर छाप थी किन्तु दोबारा प्रत्याशी बनाये जाने पर जनता ने इन्हें भी नकार दिया.  

वहीं बात करें कांग्रेस की तो इस विधानसभा में अब तक कांग्रेस ने गैर सतनामी का प्रयोग नही किया है और न ही कांग्रेस के पास गैर सतनामी में मजबूत प्रत्याशी नजर आ रहा है जिसको कांग्रेस की कमजोरी के तौर पर भाजपा इस बार गैर सतनामी का प्रयोग आजमाने के मूड में है यह तथ्य भाजपा के लिये सारंगढ़ विधानसभा में जनता की मानसिकता हर बार परिवर्तन करने की सोच के अनुरूप सीट जितने के लिए ज्यादा महत्वपूर्ण होता दिख रहा है क्योंकि इस विधानसभा का परिसीमन होने के बाद सबसे बड़ा ओबीसी क्षेत्र वाला बरमकेला विकास खण्ड जहाँ लगभग 70 हजार मतदाता हैं जिसमे सर्वाधिक ओबीसी वोटर हैं इसके अतिरिक्त सारंगढ़ विकास खण्ड में ओबीसी वर्ग से पटेल अघरिया समाज लगभग 25 हजार,साहू (तेली) समाज ,चन्द्रा समाज,यादव समाज की बड़ी वोट बैंक है साथ ही आदिवासी वर्ग में बिंझवार गोड़,संवरा जाति की अधिकता है। 

जबकि अनुसूचित जाति वर्ग में सतनामी समाज के बाद चौहान समाज की बहुलता है जिससे भाजपा पूर्व अनुसूचित जाति आयोग के सदस्य पुनितराम चौहान को गैर सतनामी चेहरा में प्राथमिकता दे सकती है राजनैतिक सूत्रों के आधार पर सरायपाली विधानसभा के वर्तमान विधायक रामलाल चौहान को भी दोबारा अवसर मिलने की संभावना बहुत कम दिखाई दे रहा है क्योंकि पिछले विधानसभा में भाजपा से दावेदारी करने वाली पूर्व राज्यसभा सांसद भूषणलाल जांगड़े की पुत्री सरला कोसरिया को टिकट फाइनल करने की जानकारी सूत्रों से मिल रही है यदि ऐसा हुआ तो सरायपाली विधानसभा और सारंगढ़ विधानसभा की अदलाबदली कर दोनों समाज के बीच सामंजस्य स्थापित करने के कयास लगा रही है यदि ऐसा हुआ तो सारंगढ़ विधानसभा की 20 वर्ष बाद मिलने वाली गैर सतनामी का फार्मूला भारतीय जनता पार्टी के लिए लाभदायक होने के साथ ही कांग्रेस के लिए बड़ी मुसीबत वाला प्लान साबित हो सकता है।




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