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कुंभ मेला, चुनाव रैली, शवों को जमीन नही और दवाओं की कालाबाजारी... दुनिया बनी नर्क, कारण कोरोना ??

कोरोना की पहली लहर से हालत संभले ही नही थे की दूसरी लहर से दुनिया आधी नर्क की तरह दिखाई दे रही है, हर तरफ कोरोना को लेकर काफी भय का माहौल है, सरकार प्रशासन ने सख्ती व नियम जारी कर चुके है व लगातार अस्पताल संबंधित रेमेडेसीवीर वेक्सिन एवं अन्य जरूरी समान ओक्सीजन व किट की व्यवस्था कर रही है सोशल मीडिया पर भी जोरो से कोरोना व कोरोना की वजह से होती मृत्यु को लेकर लोग सजगता बरतने को कह रहे है वही दूसरी ओर ट्विट्टर और इंस्टाग्राम के जरिये कुछ लोग आक्रोश भी जाहिर करते नजर आरहे है, गत दिनों हुए कुंभ मेला को लेकर सिर्फ आमजन नही बल्कि टेलीविजन सेलेब्रिटी भी गुस्सा जाहिर करने मे पीछे नही वही महाराष्ट्र के कई दृश्य तो ऐसे है जिसे देख कर इंसानियत की रूह भी काँप जाए, लोगो को अस्पताल नही मिल रही और अस्पताल मे बेड के लिए लंबी लाईन लगी हुई है,कोविड-19 के उपचार में इन दोनों दवाओं के इस्तेमाल को लेकर हालांकि दुनिया भर में बहस है, लेकिन भारत समेत कुछ अन्य देशों ने आपातकालीन स्थिति में इन दोनों दवाओं के इस्तेमाल को मंज़ूरी दी हुई है.भारत में कोविड-19 के उपचार के रूप में अधिकांश डॉक्टर फ़िलहाल मरीज़ों को एंटी-वायरल दवा रेमडेसिवीर लेने की सलाह दे रहे हैं. इस वजह से रेमडेसिवीर की माँग इन दिनों बहुत ज़्यादा है.भारत ने इस दवा के निर्यात पर रोक लगा दी है, फिर भी भारतीय दवा निर्माता माँग के अनुसार इसकी आपूर्ति नहीं कर पा रहे हैं.पिछले दो दिनों से भारत में प्रतिदिन कोरोना के दो लाख से अधिक मामले सामने आये हैं. इससे पहले भी क़रीब एक सप्ताह से हर रोज़ कोरोना के औसतन एक-सवा लाख केस दर्ज किये जा रहे थे.हेटेरो फ़ार्मा भारत की उन सात कंपनियों में से एक है, जो रेमडेसिवीर का उत्पादन करती है. कंपनी का कहना है कि वो इस दवा का उत्पादन बढ़ाने की पूरी कोशिश कर रही है.

मौत के आकड़े डरावने होते जा रहे वही कुछ संवेदनशील व्यक्ति सरकार व लोगो की मदद भी कर रहे है, महाराष्ट्र ही नही बल्कि बीते दिनों छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले मे भी शमशान घाट से एक वीडियो शेयर की गयी थी जिसमे सभी तरफ बहुत से शव पड़े थे और जिन्हे जलाने के लिए जगह की कमी दिखाई गयी थी,कोरोना वायरस से बुरी तरह प्रभावित कई शहरों में श्मशानों में दिन-रात हर समय चिताएं जल रही हैं. लोगों को अपने मृत परिजन के अंतिम संस्कार के लिए घंटों इंतज़ार करना पड़ रहा है.हाल में ही एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें दिखाया गया है कि लखनऊ के एक श्मशान में रात के वक़्त कई चिताएं जल रही थीं.श्मशानों के कर्मचारी बिना आराम के लगातार काम कर रहे हैं. कई लोग ये सवाल भी पूछ रहे हैं कि क्या इस नौबत को आने से रोका जा सकता था.

महामारी विशेषज्ञ डॉक्टर ललित कांत कहते हैं, ''हमने कोरोना संक्रमण के पहले दौर से सबक़ नहीं सीखा. हमें पता था कि संक्रमण का दूसरा दौर भी आएगा. लेकिन हम दवाओं, अस्पतालों में जगह और ऑक्सीजन की कमी जैसी ख़ामियों को दूर नहीं कर सके. यहां तक कि हमने उन देशों से भी सबक़ नहीं सीखा जो बिल्कुल ऐसे हालात देख चुके थे.''

यही नही मामला अब और गमगीन होता चला जा रहा है, शवों को लेजाने जब कचरे ले जाने वाले वाहन की वयवस्था की गयी तो नेताओं ने विपक्ष पर टिप्पणी की बरसात करदी, हालं की बाद मे राज्य अनुवार जिलो मे शव ले जाने वाहन की वयस्था के लिए समीक्षा बैठक हुई भी व स्थिति को संभाला गया, कोरोना जांच कैंप, टिकाकरण अभी सबसे ज्यादा मूलभूत जरूरत की सूची मे रखा गया है,इन्ही सब के बीच यह भी खबर आई की अस्पताल मे कोरोना से मृत महिला के जेवर उनके शरीर से नदारद थे, और दवाओं की कलाबाजारी तो लोगो के संवेदना को ज़ाहिर कर ही रही है, राजनीतिक पार्टियां भी इनमे पीछे नही है, ऐसे कई कयास नेताओं मे भी लगे है चुनाव रैलियों को लेकर, लोगो मे अब कोरोना और चुनाव एक व्यंग्य की तरह पेश की जा रही, शहरी ग्रामीण क्षेत्रों मे अधिकारी और कर्मचारियों के सहयोग से वेक्सिनेशंन को सफल बनाने रणनीति बनाई साथ ही प्रभाव कम करने अनुचित प्रयास किये जा रहे, बाकी दुनिया को नर्क कहने का तर्क यह था की हाहाकार वाले इस परस्थितियों के बीच होने वाले अमानवीय और भ्रस्टाचार को लेकर भी क्या महामारी ही जिम्मेदार है?




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