news-details

चाणक्य नीति : इन लोगों से कभी नहीं करना चाहिए विवाद!

आचार्य चाणक्य के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन में कुछ बातों का पालन अवश्य करना चाहिए। जो व्यक्ति इन बातों का नही अपनाता उसे जीवन में न तो सफलता प्राप्त होती है न ही किसी से मान-सम्मान प्राप्त होता है। तो आइए आज जानते हैं आचार्य चाणक्य के नीति श्लोक के कुछ ऐसे ही श्लोक व उसके अर्थ जिससे मानव जीवन के बहुत अहम हिस्से जुड़े हैं।

चाणक्य नीति श्लोक- 

मतिमत्सु मूर्ख मित्र गुरुवल्लभेषु विवादो न कर्तव्य:।
अर्थ: बुद्धिमान व्यक्ति को मूर्ख, मित्र, गुरु और अपने प्रियजनों से विवाद नहीं करना चाहिए। जो व्यक्ति समझदार है, जिसे अच्छे-बुरे का ज्ञान है, जिसने उच्च शिक्षा प्राप्त की है और लोक व्यवहार को अच्छी तरह जानता है, ऐसा व्यक्ति यदि अपने परिजनों, मित्रों, गुरुओं और मूर्ख लोगों के साथ व्यर्थ के वाद-विवाद में उलझता है तो यह उचित नहीं है।

चाणक्य नीति श्लोक-

प्रलये भिन्नमर्यादा भवन्ति किल सागराः।
सागरा भेदमिच्छन्ति प्रलयेऽपि न साधवः॥
अर्थ: चाणक्य इस श्लोक में कहते हैं कि जो सागर देखने में इतना गम्भीर प्रतीत होता है, प्रलय आने पर वो भी अपनी मर्यादा भूल जाता है और किनारों को तोड़कर हर ओर जल-थल एक कर देता है। लेकिन साधु अथवा श्रेठ व्यक्ति अपने जीवन में संकटों का पहाड़ टूटने पर भी श्रेठ मर्यादाओं का उल्लंघन नहीं करते। चाणक्य नीति के अनुसार साधु पुरुष सागर से भी महान होता है।

चाणक्य नीति श्लोक-

एकेनापि सुवर्ण पुष्पितेन सुगन्धिता।
वसितं तद्वनं सर्वं सुपुत्रेण कुलं यथा॥
अर्थ: चाणक्य कहते हैं जिस प्रकार वन में सुंदर खिले हुए फूलों वाला एक ही वृक्ष अपनी सुगंध से सारे वन को सुगंधित कर देता है, ठीक उसी प्रकार एक ही सुपुत्र सारे कुल का नाम ऊंचा करने की क्षमता रखता है।




अन्य सम्बंधित खबरें