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धान के बदले यह फसल किसानो को कर रहा आकर्षित

उत्तर बस्तर कांकेर : भानुप्रतापपुर विकासखण्ड के ग्राम जामपारा के किसान कोमल यादव का खेत इन दिनों आस पास के गांवो के किसानों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है, वजह है ग्रीष्मकालीन धान फसल के बदले रागी (मड़िया) की खेती से।

किसान कोमल यादव ने बताया कई वर्षों से खरीफ और रबी मौषम में केवल धान की ही खेती करते आ रहा था, धान के खेती में खर्चा, पानी और मेहनत अधिक लगता था और लाभ कम प्राप्त होता था, तो मैं धान के अलावा अन्य फसल लेने का विचार किया, कृषि विभाग के ग्रमीण कृषि विस्तार अधिकारी के सहयोग एवं मार्गदर्शन से रागी का उन्नत बीज मिला, जिसे पहली बार किसान ने अपने खेत मे लगाया, गर्मी मौषम में लगे रागी की लहलाती फसल और बाली को देख अच्छी पैदावार का अनुमान लगाया जा सकता है। किसान कोमल ने बताया रागी की फ़सल को देखने आस पास के गाँव के किसान रोजाना पहुंच कर फसल के बारे में पूछ रहे है।

धान के स्थान पर रागी अच्छा विकल्प -
कृषि विभाग के ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी प्रवीण कवाची ने धान के स्थान पर रागी फसल के फायदे बताते हुए जानकारी दिया,किसानो को फसल चक्र परिवर्तन अपनाते हुए धान के अलावा अन्य लाभकारी फसलो की खेती की सलाह कृषि विभाग की ओर से दी जा रही है,कांकेर जिले में रागी प्रोसेसिंग यूनिट कृषि विज्ञान केंद्र में स्थापित है,जहां महिला स्व सहायता समूह के माध्यम से रागी का प्रोसेसिंग एवं पैकेजिंग कर मार्केटिंग की जा रही है,इसके अलावा,लोकल मार्केट,वन विभाग,बीज निगम में भी किसान भाई पंजीयन करवा कर अच्छे दाम में रागी का बिक्री कर सकते है,रागी मे कैल्शियम,प्रोटीन,वसा,कार्बोहाइड्रेड खनिज तत्व प्रचुर मात्रा में पाया जाता है बच्चो के आहार बेबी फूड के लिए विशेष रूप से लाभदायक है,किसान भाई धान के तुलना में रागी फसल से दो गुना लाभ कमा सकते है,रागी में धान के आपेक्षा किट पतंगों रोग बीमारी का आक्रमण भी बहुत कम होता है,फसल को खरीफ एवं रबी मौषम में बोया जा सकता है,खरीफ में रागी की बोनी जून से जुलाई के मध्य की जाती है,वही रबी में जनवरी से फरवरी में बोनी की जाती है,एक एकड़ के लिए 2 से 3 किलो बीज प्रयाप्त है,नर्सरी से खेत मे 15 से 20 दिन के पौधे की रोपाई कर लेना चाहिए,पौधा 90 से 100 दिन में पक कर तैयार हो जाता है प्रति एकड़ 15 कुंटल तक उत्पादन होता है, इसे सभी प्रकार की हल्की मध्यम,एवं भारी मिट्टी,पड़त या अनुपयोगी भूमि में भी यह फसल ली जा सकती है।




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