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महासमुन्द : बच्चों के भावनात्मक विकास हेतु जिले के आंगनबाड़ी केन्द्रों में शुरू की जाएंगी संगीत पर आधारित गतिविधियाँ

संगीत का हमारी भावनाओं से गहरा सम्बन्ध होता है । अच्छा संगीत मन को सुकून देता है तो शोर या कर्कशता मन मे खीझ पैदा करती हैं । संगीत की अपनी एक भाषा है । जिस प्रकार क्रोध में बोले गए शब्द किसी व्यक्ति को पीड़ा देते हैं और प्रेम भरे शब्द सभी को भाते हैं वही बात संगीत के लिए भी सही है ।

संगीत का भावनाओं पर , दिलोदिमाग पर गहरा असर होता है । बाल्यावस्था में IQ (intelligent Quotient) Development (संज्ञानात्मक विकास) के साथ EQ (Emotional Quotient) (भावनात्मक विकास) भी आवश्यक है । इस बात के दृष्टिगत महासमुन्द जिले के आंगनबाड़ी केन्द्रों में भारतीय संगीत पर आधारित गतिविधियां प्रारम्भ की जा रही हैं ।

इसकी कार्ययोजना जिला महिला बाल विकास अधिकारी सुधाकर बोदले द्वारा तैयार की गई है । महासमुन्द जिले में इस कार्ययोजना के क्रियान्वयन की शुरुआत जिला स्तरीय 1 दिवसीय कार्यशाला से की गई । इस कार्यशाला के प्रतिभागी जिले के समस्त बाल विकास परियोजना अधिकारी एवं सेक्टर पर्यवेक्षक थे ।

इसकी कार्ययोजना के तहत आंगनबाड़ी केन्द्रों में बच्चों को भारतीय संगीत के प्रसिद्ध संगीतज्ञों यथा पंडित शिव कुमार शर्मा (संतूर) , पंडित हरि प्रसाद चौरसिया बांसुरी, पंडित रविशंकर (सितार) द्वारा विभिन्न वाद्ययंत्रों में बजाए गए संगीत को आंगनबाड़ी कार्यकर्ता द्वारा मोबाइल पर 5 से 7 मिनट के लिए सुनाया जाएगा । इसको सुनने के बाद बच्चों के मन में जो भी बातें आएंगी उनकी चर्चा कार्यकर्ता द्वारा मुक्त वार्तालाप की गतिविधि द्वारा की जाएगी , कागज़ पर रंगों के प्रयोग से अपनी भावनाओं को चित्र रूप में उतारने की गतिविधि करवाई जाएगी , मन मे आने वाली भावनाओं को कहानी का रूप देने बच्चों से कहा जाएगा (बच्चों द्वारा बनाई गई कहानी को लिखकर संरक्षित किया जाएगा ।

इसके साथ ही नवजात बच्चों से लेकर 3 वर्ष तक के बच्चों के पालकों की मीटिंग लेकर उन्हें भी इस कार्यक्रम से जोड़ा जाएगा । पालकों को बच्चों के भावनात्मक विकास में संगीत का महत्व बताकर उन्हें कहा जाएगा कि घर पर जब नवजात बच्चा सोने को हो तब लगभग 30 मिनट के लिए यह संगीत धीमी आवाज़ में शयनकक्ष में चलाएं । यह क्रम निरन्तर बच्चे की 3 साल की उम्र होते तक चले ताकि जब बच्चा आंगनबाड़ी में आए और उसे यह संगीत सुनाकर इससे संबंधित गतिविधियां करवाई जाएं तो बच्चा इसे सम्पूर्ण रूप से आत्मसात कर सके ।इस प्रकार जन्म से लेकर 6 साल तक ये गतिविधियां चरणबद्ध ढंग से बच्चे के भावनात्मक विकास में एक सकारात्मक योगदान देंगी ।

सुधाकर बोदले ने बताया कि बौद्धिक शारीरिक सृजनात्मक भाषायी विकास की गतिविधियों के साथ भावनात्मक विकास और सद्गुणों के विकास की गतिविधियां भी बच्चों को बचपन मे ही कराया जाना आवश्यक है । इससे ही बच्चे का सर्वांगीण विकास सम्भव होगा और हमारे बच्चे बड़े होकर अच्छे इंसान और अच्छे नागरिक के रूप में इस देश की अमूल्य धरोहर बनेंगे ।




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