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बसना : शासन को चुना लगाने धान के दलाल सक्रीय, किसानों से कर रहे संपर्क

छत्तीसगढ़ में सरकार किसानों से 3100 प्रति क्विंटल की दर से खरीद रही है. मानसून अर्थात खरीब की फसल के खरीदी की शुरुआत सरकार द्वारा नवंबर या दिसम्बर माह से की जाती है. जिसमे किसानों को धान के बदले 3100 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से दिए जाए हैं.

छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा धान के लिए दिए जाने वाली यह राशि केंद्र सरकार के समर्थन मूल्य से अधिक है, केंद्र का समर्थन मूल्य 2369 हैं. जबकि छत्तीसगढ़ के बाद ओड़िशा में भी 3100 रुपये प्रति क्विंटल में धान के खरीदी की बात कही जा रही है.

धान की बढ़ी हुई कीमत का लाभ लेने के लिए अब दलाल भी सक्रिय हो गये हैं. जानकारी के अनुसार, किसानों से रबी की फसल को खरीदने के लिए अब उनसे संपर्क किया जा रहा है, धान के दलालों द्वारा किसानों के घरों तक गाड़ी पहुंचाकर हेमाल के माध्यम से उन्हें लोड कराकर अपने मिल मालिकों गोदाम में रखा जा रहा है, धान बड़ी मात्रा में एकत्रित किया जा रहा है ताकि मुनाफा भी ज्यादा मिल पाए.

धान के दलाल और मिल मालिक मुनाफा कमाने के लिए सबसे पहले कम दर पर किसानों से उनके रबी की फसल को खरीद लेते हैं, और बड़ी मात्रा में धान अपने गोदामों में जमा कर लेते हैं. इसके बाद जैसे ही सरकार द्वारा समर्थन मूल्य में धान खरीदी का समय आ जाता है तो ये दलाल किसानों के साथ मिलकर सैकड़ों क्विंटल धान स्थानीय किसानों के जरिये बेचते हैं. दलाल और मिल मालिक प्रति क्विंटल के हिसाब से कमीशन देकर किसानों से टोकन ले लेते हैं, ताकि वे उस टोकन का उपयोग कर सकें. अक्सर धान का टोकन उस किसान के नाम का लिया जाता है, जिसके पास खेत है, पट्टा है लेकिन उसने फसल ना लगाईं हो या फिर अपने भूमि के अनुसार कम फसल लगाईं हो, इससे इन दलालों को खरीदी केंद्र में धान बेचकर सीधे मुनाफा मिल जाता है. और प्रति क्विंटल 800 से 1000 रुपये तक बचा लेते हैं.


बताया जाता है कि इन दल्लों का मुनाफा कमाने के लिए पूरी रात जागना पड़ता है, रात के अँधेरे में मिल मालिकों के धान गोदाम से ट्रक में धान लोड करवाकर बाकायदा पायलेटिंग कर रातों-रात किसानों के यहाँ धान गिरवाया जाता है, या सीधे किसान के टोकन के माध्यम से मंडी में ही गिरवा दिया जाता है.

तस्करी का यह खेल धान खरीदी के पहले दिन से लेकर अंतिम दिन तक चलता है, धान बेचे जाने के बाद किसानों के खाते में यह पैसे आते हैं, जिन्हें कुछ कमीशन देकर ये दलाल बाकी की पूरी रकम रख लेते हैं. हलाकि की इस बीच इन्हें कई जगह अधिकारी अथवा जाँच चौकी के कर्मचारी से सांठगाँठ करनी पड़ती है, लेकिन पत्रकारिता पेशे से जुड़े कुछ लोग इस काम में माहिर हो चुके हैं, और बड़ी आसानी से शासन की आँख में धुल झोंककर उन्हें चुना लगा देते हैं.

देखा जाए तो जब से छत्तीसगढ़ में 2500 से अधिक दर पर धान की खरीदी की जा रही है, तब से यह काला कारनामा को अंजाम दिया जा रहा है, लेकिन इस पर अब तक पूर्ण तरह से अंकुश नहीं लग पाया है. इस बाद भी ये दलाल इसी फिराक में हैं और किसानों से संपर्क कर उनसे धान खरीदी की जा रही है. ऐसे में आने वाले समय में यह देखना होगा कि वर्षों से चली आ रही अनियमितता को सरकार कितना रोक पायेगी, या फिर  क्या अब इसे रोकने के लिए अधिक उड़नदस्ता टीम की जरुरत होगी, जिनका चयन अन्य जिले से किया जाना उचित होगा..


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