
कृषि मशीनों की खरीद हेतु दी जाती है वित्तीय सहायता, खेती में बढ़ रहा मशीनीकरण का स्तर
भारत के विभिन्न राज्यों के किसानों द्वारा मशीनीकरण को अपनाना सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों, भौगोलिक परिस्थितियों, उगाई जाने वाली फसलों, सिंचाई सुविधाओं आदि जैसे विभिन्न कारकों पर निर्भर करता है।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के वर्ष 2020-21 के आकलनों के अनुसार, देश में विभिन्न फसलों और उनके कृषि संचालन में कृषि मशीनीकरण का स्तर अलग-अलग है। कुल मिलाकर, फसलों में संचालन-वार औसत मशीनीकरण का स्तर बीज की क्यारी तैयार करने के लिए 70%, बुवाई/रोपण/आरोपण के लिए 40%, निराई और अंतर-संवर्धन के लिए 33%, और कटाई और थ्रेसिंग के लिए 34% है, जिसके परिणामस्वरूप कुल औसत मशीनीकरण स्तर 45% है।
प्राथमिक (कृषि) क्षेत्र से द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रों में कार्यबल का स्थानांतरण दुनिया भर के देशों द्वारा अनुभूत विकास प्रक्रिया की एक सामान्य घटना है और भारत के लिए भी यही सच है।
हस्त चालित औज़ार और पशु-चालित औज़ार जैसे कृषि उपकरण जीएसटी मुक्त हैं, जबकि खेत तैयार करने और कटाई करने वाली मशीनों पर 12% कर लगता है। कृषि उपज की सफाई और छंटाई करने वाली मशीनों पर 18% कर लगता है।
कृषि राज्य का विषय है और भारत सरकार उचित नीतिगत उपायों, बजटीय आवंटन और विभिन्न योजनाओं/कार्यक्रमों के माध्यम से राज्यों के प्रयासों का समर्थन करती है। कृषि एवं किसान कल्याण विभाग द्वारा आधुनिक कृषि प्रथाओं और प्रोद्योगिकी को अपनाने, उत्पादकता में वृद्धि, ग्रामीण कृषि को बदलने के लिए विविध कृषि आधारित क्षेत्रों का विविधीकरण को प्रोत्साहन, बाजार पहुंच बढ़ाने तथा किसानों की आजीविका बढाने, किसानों के बीच उद्यमशीलता प्रोत्साहित करने, रोजगार के अवसर पैदा करने के लिए किसान उत्पाद संगठन (एफपीओ) और स्टार्टअप की विभिन्न स्कीमें कार्यान्वित की गई है।
कृषि यंत्रीकरण पर उप-मिशन (एसएमएएम) का क्रियान्वयन छोटे और सीमांत किसानों तथा उन क्षेत्रों में जहां फार्म पावर की उपलब्धता कम है, तक कृषि मशीनीकरण की पहुंच बढ़ाने और कृषि मशीनों के व्यक्तिगत स्वामित्व की उच्च लागत के कारण उत्पन्न होने वाली एकोनॉमी ऑफ स्केल की प्रतिकूलता को दूर करने के लिए 'कस्टम हायरिंग सेंटर' को बढ़ावा देना है।
एसएमएएम के अंतर्गत, किसानों के लिए कृषि मशीनरी को अधिक सुलभ और किफायती बनाने के लिए, किसानों की श्रेणी के आधार पर, कृषि मशीनों की खरीद हेतु मशीनरी की लागत के 40-50% की दर से वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। किसानों को किराये पर मशीनें और उपकरण उपलब्ध कराने के उद्देश्य से, 250 लाख रुपये तक की परियोजना लागत वाले कस्टम हाइरिंग केंद्रों (सीएचसी) की स्थापना के लिए परियोजना लागत के 40% की दर से वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है और 30 लाख रुपये तक की परियोजना लागत वाले कृषि मशीनरी बैंकों (एफएमबी) की स्थापना के लिए परियोजना लागत के 80% की दर से वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। पूर्वोत्तर राज्यों में एफएमबी की स्थापना के लिए वित्तीय सहायता की दर परियोजना लागत के 95% की दर से है।