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दुनिया का सबसे पुराना लोकतंत्र हुवा शर्मशार :- डॉ सुधीर सिंह गौर

24 अगस्त 1814 को अमेरिकी लोकतंत्र के लिए सबसे काला दिन था जब पहली बार अमेरिकी संसद में ब्रिटिशों के द्वारा हमला किया गया था ! करीब 200 साल बाद एक बार फिर अमेरिका शर्मशार हुआ है, जब 07 जनवरी 2021 को अमेरिकी संसद में घुसपैठ की गयी और हमला हुआ। 

यह हमला लोकतंत्र पर हमला है।यह हमला, चुनाव में अपनी हार से परेशान और धोखेबाजी का आरोप लगाने वाले रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रम्प के समर्थकों ने अमेरिकी संसद पर हमला कर दिया, संसद में गोलीबारी की, तोड़फोड़ की ! इस घटना से सिर्फ अमेरिका ही नहीं पूरा विश्व शर्मशार हुआ है ! पूरी दुनिया को नसीहत देने वाला, पूरी दुनिया को लोकतंत्र का पाठ पढ़ाने वाला अमेरिका आज किस दोहराहे पर खड़ा है यह उसके लिए चिंतनीय है !हार जीत जीवन का एक हिस्सा है ट्रम्प के इस रवैये को देखकर लगता है कि वो अपनी हार पचा नहीं पा रहे हैं ! यह वैसा ही है जैसे कोई बच्चा अपनी हार पचा नहीं पता और कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहता है ! 

उनका व्यवहार बच्चे जैसा लगता है लेकिन दुर्भाग्य से न तो वो एक बच्चे हैं और न ही एक आम आदमी ! ये महाशय अमेरिका के राष्ट्रपति रह चुके हैं, एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी संभल चुके हैं, विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र का नेतृत्व भी कर चुके हैं ! इनके समर्थकों के द्वारा ऐसी घटना करना निंदनीय है। अमेरिका में इस घटना के बाद बाइडेन जो की डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार और अमेरिका के होने वाले राष्ट्रपति हैं आज हीरो बन गए हैं और डोनाल्ड ट्रम्प विलेन। चुनाव में ट्रम्प ने जीत के लिए शुरू से ही कई दांव पेंच खेले हैं मगर अपने मकसद में सफल नही हो सके!

ऐसा इन्सान तब करता है जब उसे हार का डर रहता है, शायद वे पहले से ही हार भांप चुके थे लेकिन चुनाव हारने के बाद भी अपनी हार स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं। लेकिन इस घटना के बाद अब उन्होंने शांतिपूर्ण सत्ता हस्तांतरण के लिए हामी भर दी है।ट्रम्प जी अब ये समझ चुके हैं कि उनका कोई भी दाँव पेंच अब नही चलेगा लेकिन उनके उपर लांछन तो लग ही चुका है! अमेरिका के होने वाले राष्ट्रपति बाइडेन को जनता को यह विश्वास दिलाना होगा कि अमेरिका में दोबारा ऐसा काला दिन कभी नहीं आएगा, ट्रम्प के समय में अमेरिका में जो भी लोकतंत्र विरोधी घटनाएं घटित हुई हैं वो दोबारा नहीं होंगी अमेरिका लोकतंत्र का सम्मान करता है और करता रहेगा !

नोट:- लेखक डॉ. सुधीर सिंह गौर, (लॉ कॉलेज में सहायक प्राध्यापक और राजनीतिक विश्लेषक हैं)।




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