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बस्तर के सिलेगर गांव में पुलिस के गोलीबारी से 3 आदिवासी समाज के व्यक्तियों की मौत के विरोध में छत्तीसगढ़िया समाज: अजय टंडन

छत्तीसगढ़िया समाज के अजय टंडन ने प्रेस विज्ञप्ति जारी करते हुए बताया कि विगत दिनों 17 मई 2021 को बस्तर के सिलेगर गांव में हुई तीन निर्दोष आदिवासियों की नरसंहार से शायद ही कोई अनजान हो और ऐसी घटना कोई पहली बार नहीं हुई है, स्वतंत्र भारत में बेड़ियों के जंजीर में बंधा व रक्त रंजित बस्तर आज भी आजादी पुकार रहा है। नक्सलियों के व फोर्स के एक एक गोली पर नाम लिखा है तो वह है आदिवासी,मरने वाला आदिवासी मारने वाला आदिवासी आज भी दोनों पाटो के बीच में पीस रहा है आदिवासी,नक्सली उन्मूलन के नाम पर ना जाने कितने बेगुनाहों की हत्या हो चुकी है ना जाने कितनों घर बेघर हो गए ना जाने कितने बच्चे अनाथ हो गए देश को आजादी तो मिल ही गया मगर आज भी बस्तर वास्तविक आजादी को तरस रहा है।

प्रकृति की गोद में बैठा बस्तर जहां शांत स्वर सुनाई ना देकर नक्सलियों और फोर्स के बंदूकों की आवाज से कहर उठता है बस्तर, क्या इस समस्या का समाधान नहीं हैं ? आदिवासियों के पास समाधान है जो आज तक किसी भी सरकार ने इस पर पहल नहीं किया। संविधान के पांचवी छठवीं अनुसूची व पेशा कानून को बस्तर में आज तक लागू नहीं किया गया है, आखिर क्यों ?? आज भी संविधान देश में पूर्ण रुप से लागू नहीं है। जितने भी सरकार आदिवासियों ने बनाएं है वह आज तक इस पर कोई भी पहल नहीं किया, बंदूक किसी भी समस्या का समाधान नहीं है। आदिवासियों से ही बातचीत कर आगे पहल किया जा सकता है, किंतु राजनीति करने वालों ने आदिवासियों को सिर्फ वोट बैंक बनाकर उपेक्षा कर रही है, गैर आदिवासी गैर सरकारी तंत्र व्यवस्था को आगे लाकर कार्य किया गया है। फर्जी ग्राम सभा करके आदिवासियों को हमेशा धोखे में रखा जाता रहा है।

ज्ञात हो कि दक्षिण बस्तर के सुकमा और बीजापुर जिले के सरहद में ग्रामसभा को सूचना दिये बिना पुलिस कैम्प खोले जाने का शांतिपूर्ण विरोध कर रहे ग्रामीणों की भीड़ पर पुलिस द्वारा आंसू गैस छोड़े गये तथा मारपीट किया गया, अंधाधुंध गोली चलाई गई जिसमें तीन निर्दोष आदिवासी की मौत हो गई , जबकि 50 से ज्यादा ग्रामीण महिला - पुरुष घायल हो गये हैं। मारे गए और घायल हुए लोगों को पुलिस द्वारा अपनी गलती छुपाने माओवादी बताया गया है, और ग्रामीणों के विरोध को भी माओवादी प्रायोजित बताया गया। जबकि प्रशासन के द्वारा तीन निर्दोष मृत के परिजनों को मुआवजा के रूप में 10- 10 हजार रुपया दिया गया।

यह पहली बार नहीं है कि जब बस्तर संभाग में नक्सली उन्मूलन के नाम पर निर्दोष आदिवासियों को परेशान किया गया हो, बार - बार ऐसी घटना देखने को मिलती है कोरोना काल में आदिवासियों की फर्जी मुठभेड़ फर्जी समर्पण व हत्या के अनेक मामले प्रकाश में आ चुके हैं। जैसे कि आप अवगत हैं कि छत्तीसगढ़ का यह क्षेत्र पांचवी अनुसूची अधिसूचित क्षेत्र है। उपरोक्त मामले की उच्चस्तरीय जांच कर दोषियों पर एफआईआर दर्ज कर कड़ी से कड़ी कार्यवाही किया जाय तथा मृतकों के परिजनों को 1 करोड़ रुपये और घायलों को 50 लाख रुपये की मुआवजा दिया जाय। सात सूत्रीय मांगों को लेकर आज सर्व आदिवासी समाज सहित पूरे छत्तीसगढ़ के सर्व छत्तीसागढ़िया समाज अपने अपने घर में बैठकर वर्चुवल धरना के माध्यम से सरकार के खिलाफ वीरोध प्रदर्शन किया। मानव रक्षा के लिए सर्व छत्तीसगढ़िया समाज के जागरूक लोगो ने ये कदम उठाया है। हमारी मांग है कि बस्तर में न नक्सली चाहिए न फोर्स चाहिए, बस्तर में मूलभूत सुविधा के साथ प्रकृति और आदिवासियों की सुरक्षा चाहिए। हमारी विनती है नक्सली और सरकार से विनती की है कि आदिवासियों को मौलिक अधिकार के साथ जीने दिया जाए।




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