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सिलगेर की पृष्ठभूमि : ब्राह्मणवादी साजिश के इर्दगिर्द घूमता सिलगेर आंदोलन...पेड मीडिया है खामोश.. पुलिस द्वाराकिया जा रहा है कार्यकर्ताओं की जासूसी

17 मई को सिलगेर, सुकमा में पिछले पांच दिनों से अचानक और रातों रात अस्तित्व में आये सुरक्षा कैंप के खिलाफ अपना विरोध और असहमति दर्ज करा रहे आंदोलनकारी आदिवासियों पर पुलिस द्वारा अंधाधुंध फायरिंग की सूचना संचार माध्यमों और और बस्तर में रह रहे साथियों से प्राप्त हुआ फायरिंग में तीन आदिवासी ग्रामीण कवासी वागा, उडक़ा पाण्डु, उरसा भीमा की मृत्यु हो गयी, इनमें उडक़ा पाण्डु का उम्र कुल 14 वर्ष था। कुछ दिन बाद सोमली, जो गर्भवती थी, उसकी लाठीचार्ज के दौरान चोट लगने के कारण बाद में उसकी मृत्यु हो गयी स्थानीय शासन प्रशासन ने अपनी त्वरित प्रतिक्रया में कहा कि मारे गए गांव वाले नक्सली थे जिसका गांव वालों ने खंडन किया है।

घटित घटना के संबंध में तथ्य और जानकारी इकट्ठा करना, वास्तविकता का पता लगाने पीयूसीएल के द्वारा एक जांच दल का गठन कर सिलगेर का दौरा किया गया। बस्तर पहुंचने पर हमें साथी आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता सोनी सोरी द्वारा बताया गया कि 27 जून को नीलावया गांव में संतोष मरकाम नामक एक आदिवासी ग्रामीण की तथाकथित फर्जी मुठभेड़ हुई है जिस पर टीम त्वरित निर्णय लेते हुए जांच के लिए घटना स्थल निलावाया पहुंचा।

नीलावया पहुंचने पर तीन महीने पहले एक और घटना कोसा मरकाम को सुरक्षा बल द्वारा अगवा और हत्या करने का मामला सामने आया। इसी गांव में कुछ साल पहले भीमा मंडावी की सुरक्षा बलों द्वारा हत्या की बात भी सामने आयी। अपनी पन्द्रह सदस्यीय जांच दल में छत्तीसगढ़ पीयूसीएल और अन्य संगठनों के कार्यकर्ता, महिला संगठन से जुड़े कार्यकर्ता और वकील शामिल रहे हैं।

घटना के तथ्य
नीलावाया गांव, दंतेवाड़ा में दो अलग अलग तथाकथित फर्जी मुठभेड़

दंतेवाड़ा जिले के कुआकोंडा तहसील में स्थित निलावाया गांव है। 2011 के जनगणना के मुताबिक निलावाया की आबादी 700 से थोड़ा अधिक है। निलावाया के 4 मोहल्ले हैं पटेलपारा, मल्लापारा, मिलकनपारा और गोरेपारा। गांव में एक आंगनबाड़ी व एक प्राथमिक शाला है। स्कूल के लिए बच्चों को अक्सर 20 किमी दूर बुरगुम के आश्रम शाला में पढऩे जाना पड़ता है। गांव के लोग बाजार करने 13 से 27 किमी दूर पोटाली या पालनार पैदल जाते हैं। आसपास के 20 किमी के दायरे के 9 गांवों में एक भी प्राथमिक स्वास्थ केंद्र नहीं है। लगभग सभी गांववाले खेती किसानी का काम करते हैं धान मुख्य फसल होता है। खेती के अलावा लोग अपने अजीविका के लिये जंगल में उपलब्ध लघु वनोपाज जैसे महुआ आदि पर निर्भर हैं।

वे तेंदूपत्ता तोडऩे का काम भी करते हैं और गर्मियों के दिनों में तेलंगाना के मिर्ची बगानों में प्रवासी खेत मजदूर के रूप में काम करते हैं। निलावाया से सबसे पास अस्पताल लगभग 15 किमी दूर, गांव समेली में हैं। समेली वही गांव है जहां सितंबर 2018 में सीआरपीएफ के जवानों ने एक नाबालिग युवती, नंदे का सामूहिक बलात्कार किया। नंदे ने न्याय के लिये अवाज उठाया मगर तमाम दबावों के चलते दिसंबर 2018 में उन्होंने आत्महत्या कर लिया। समेली में आज उनके शहादत के याद में एक स्मारक खड़ा है, जिस पर हाल में ही पुलिसवालों ने बिना परिवार या गांववालों के अनुमति के कुछ अपने ही मन के देवी देवताओं का चित्रण कर दिया है। मार्च 2020 में नंदे व कवासी पाण्डे के शहादत के याद में महिला दिवस के अवसर पर आदिवासी मानवधिकार रक्षक हिड़मे मरकाम को सैकड़ों की भीड़ के बीच, दंतेवाड़ा के एसडीएम के रहते हुए पुलिस ने घसीटते हुए गैर कानूनी गिरफ्तारी की।

गैर-कानूनी गिरफतारियां, पुलिस व सुरक्षाबल द्वारा यौन हिंसा व फर्जी मुठभेड़  दंतेवाड़ा के लोगों के लिये नयी बात नहीं है। निलावाया के निवासियों के लिये भी यह पहली बार नहीं है जहां पुलिस व सुरक्षाबलों ने निलावाया के किसी निहत्थे व निर्दोष निवासी को उठाकर उनकी हत्या कर दी। 6 अक्टूबर 2015 को, जब भीमा माडवी नीलावाया के मिलकनपारा में अपने बहन के घर से वापस पटेलपारा में अपने घर लौट रहे थे, तब गश्त पर निकले पुलिस व सुरक्षाबल के सदस्यों ने रास्ते के एक मैदान में उनको गोली से मार दिया। बंदूक के नोक पर पुलिस व सुरक्षाबलों ने भीमा के परिवार वालों का दस्तखत कोरा कागज पर लिया और शव को जबरदस्ती बिना पोस्ट मोर्टम के जलाने को मजबूर किया

यह कि पूरे बस्तर क्षेत्र में आदिवासियों की हत्या, बलात्कार, फर्जी मुठभेड़ों की मणगढ़ंत कहानियां, आम लोगों को नक्सली करार देते हुए फर्जी आत्मसमर्पण की अनगिनत घटनाओं की एक लंबी सूची है, जिसपर गहन जांच पड़ताल और शोध की बहुत ही आव्यश्यकता है जिस पर राष्ट्रीय स्तर पर पहल कदमी - एडवोकेसी, कैंपेनिंग, इन्डिपेन्डेन्ट पीपल्ज़ ट्रिब्युनल तथा राष्ट्रीय स्तर पर फैक्ट फाइंडिंग टीम का बस्तर के युद्धग्रस्त क्षेत्रों में निहायत ज़रूरी हैं।




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