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अपनें ही गढ़ में पीस रहे आदिवासी - युमेन्द्र कश्यप

छत्तीसगढ़ में जीरो पॉवर कट को लेकर चाहे कितने ही अलग अलग तरह की दावें हों, लेकिन बिजली की उपलब्धता और गांव-गांव में विद्युतिकरण की जमीनी हकीकत कुछ और कहानी ही बया करती है। मगर इस सच्चाई से कतई इंकार नहीं किया जा सकता कि इन घोषणाओं का सच्चाई से कोई लेना देना नहीं है।
जीरो पावर कट वाले राज्य के गांवों में आज भी मिटटी के तेल वाली चिमनी लालटेन जलते हैं। अगर यकीन न आये तो गरियाबंद जिला के आदिवासी विकासखंड मैनपुर क्षेत्र के ग्रामीण इलाकों के गांवों में पहुंचकर वास्तु स्थिति से अवगत हुआ जा सकता है। जहां आजादी के सात दशक बाद भी बिजली नही पहुंची हैं,

बिजली के अभाव में गांवों का विकास कार्य थम गया है। रात के अंधेरे में गांवों के लोगों की जिदंगी नारकीय बन जाती है। रात के अंधेरे में जहरीले जीव जंतुओं का डर हमेशा सताता है, बच्चों की पढ़ाई प्रभावित होती हैं। चिमनी और लालटेन की रोशनी में यहां के बच्चे अपने भविष्य गढ़ रहे हैं। लगातार मांग करने के बावजूद इस ओर प्रशासन गंभीरता नहीं दिखती, जिसको लेकर ग्रामीणों में काफी आक्रोश हैं।

शासन द्वारा कुछ बिजली विहीन ग्रामों में वर्षों पूर्व सौर ऊर्जा प्लेट लगाकर गांवों में रोशनी देने की कोशिश की थी, लेकिन उनकी यह कोशिश भी सफल नहीं हो सकी। नतीजा सौर ऊर्जा की प्लेटें खराब हो गई, बैटरियां सड़ गईं। जहां सब ठीक है वहां के ग्रामीणों को महज एक-दो घंटे ही बिजली नसीब हो रही है। बाकी पूरी रात अंधेरे में गुजारना पड़ता है। कुल मिलाकर आज भी वे लालटेन युग में जीने के मजबूर हैं।

ब्लॉक मैनपुर के अंतिम छोर पर बसे ग्राम पंचायत भूतबेड़ा, कोचेंगा के आश्रित गांवों में आज तक बिजली नहीं लगने के कारण वैकल्पिक सौर ऊर्जा से व्यवस्था की गई है। बारिश के दिनों में सौर से 24 घंटे बिजली मिलना मुश्किल हो जाती है, जिसके कारण क्षेत्रवासियों को लालटेन के सहारे रात गुजारने पड़ती है। ओडिशा सीमा के गांव भी लगे हुए हैं, जहां उन ग्रामों में बिजली जलती रहती है। राज्य निर्माण के बाद 20 वर्षों में जितना विकास यहां होना चाहिए था, नहीं हो पाया है।क्षेत्र के मुखिया मया राम नेताम, दलशू राम मरकाम, मोतीराम नेताम, दुर्जन राम मरकाम, जय राम नेताम, फूल सिंह मरकाम, बुधराम नेताम ने अपने-अपने गांवों की समस्या बताते हुए कहते हैं कई सरकारें बदलीं, कई विधायक, सांसद बदले लेकिन गांव की हालत नहीं बदली। आखिर प्रशासन हमारी सुध कब लेगा। हमारे सांसद, विधायक कब यहां पहुंचकर हमारी समस्याओं को सुनेंगे। बिंद्रानवागढ़ विधानसभा क्षेत्र के ग्राम भूतबेड़ा, मोतीपानी, भाठापानी, मौहानाला भद्रीपारा, गाजीमुड़ा गरीबा अंतिम छोर पर बसने वाले गांव है। यहां स्वास्थ्य, शिक्षा, बिजली, सड़क, पेयजल जैसी बुनियादी सुविधाओं के लिए लोगों को तरसना पड़ रहा है। आलम यह है, कि यहां के लोगों को इलाज के लिए ओडिशा पर निर्भर रहना पड़ता है। अति संवेदनशील क्षेत्र होने के कारण जनप्रतिनिधि, सांसद और विधायक लंबे बरसों से नहीं पहुंच पाए हैं। इस वजह से वहां के आदिवासी बदहाल जीवन जीने को मजबूर हैं।

अपनें ही गढ़ में पीस रहे आदिवासी-युमेन्द्र कश्यप
युवा संघर्ष मोर्चा गरियाबंद जिलाध्यक्ष युमेन्द्र कश्यप नें कहा कि यह उड़ीसा सीमा से लगे ग्रामीण अंचलों के लोगों के लिए दुर्भाग्यजनक है। सांसद और विधायक इन सुदूर अंचलों के गांव में लोगों की सुध लेने नहीं आते। आदिवासी विकास खंड मैनपुर छत्तीसगढ़ उड़ीसा सीमा से लगे अति संवेदनशील क्षेत्रों में शासन की जनकल्याणकारी योजनाओं का सफल क्रियान्वयन अधर में पड़े गोते खा रहा है। एक ओर सरकार गांव में विकास की रोशनी पहुंचाने अनेक योजनाएं संचालित कर रही है और सरकार द्वारा गांव में विकास के बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं। लेकिन हकीकत में ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को शासन की योजनाओं का लाभ मिल पा रहा है या नहीं इसे देखने वाला कोई भी जिम्मेदार इस ओर झांकने तक नहीं आते।




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