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इस जिले में आदिवासियों की अलग परंपरा, अग्नि की जगह पानी को साक्षी मानकर रचाई जाती है शादी

छत्तीसगढ़ का आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र बस्तर अपने प्राकृतिक खूबसूरती के लिए और यहां के आदिवासी रीति रिवाज परंपराओं के लिए पूरे देश में जाना जाता है. यहां रहने वाले आदिवासी सदियों से प्रकृति की पूजा करते आ रहे हैं. 

पीढ़ी दर पीढ़ी उनकी परंपरा अनवरत चलती आ रही है. वहीं इस परंपरा को आगे बढ़ाते हुए बस्तर के आदिवासी धुरवा समाज ने अपने समाज के युवक-युवतियों की अनोखी शादी रचाई. दरअसल 17 नव दंपतियों ने अग्नि नहीं बल्कि पानी को साक्षी मानकर विवाह संपन्न कराया.

प्रकृति की करते हैं पूजा

बस्तर अपनी कला, आदिवासी संस्कृति, वेशभूषा, प्राकृतिक सौंदर्य और लोकगीत की वजह से देश में विख्यात है. यहां के आदिवासियों के रीति रिवाज सबसे अलग हैं. वहीं इन आदिवासी समाजों में धुरवा समाज बस्तर के मूल निवासी हैं.

यह समाज हजारों सालों से पानी को अपनी माता मानते आ रहे हैं और सभी शुभ कार्यों में पानी को महत्व देते हैं. इसी पानी को साक्षी मानकर 17 जोड़ों की शादी संपन्न कराई गई. यह शादी बस्तर के दरभा ब्लॉक में धुरवा समाज के लोगों ने संपन्न कराई है.

समाज के प्रमुखों ने बताया कि हर साल धुरवा समाज मई में स्थापना दिवस भव्य रूप से मनाता है. इस वर्ष भी यह स्थापना दिवस संभागीय स्तर पर भव्य रूप से मनाया गया. जिसके बाद 17 जोड़ों का विवाह दूसरे दिन संपन्न कराया गया. 

संभाग अध्यक्ष पप्पूराम नाग ने बताया कि धुरवा समाज की पुरानी पीढ़ी कांकेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान के पास निवास करती थी और लगातार कांकेर नाला के पानी को साक्षी मानकर शुभ कार्य करती थी. आज भी कांकेर नाला से पानी लाया गया था और सभी दंपतियों के ऊपर पानी छिड़ककर रस्म को पूरा किया गया.

आगे भी ऐसे ही होगा विवाह

इसके अलावा यह भी बताया गया कि इससे पूर्व भी समाज के लोगों ने 2 दंपति का विवाह दरभा ब्लॉक के छिंदवाड़ा में संपन्न कराया था. आने वाले दिनों में भी परम्पराओं को मानते हुए ही पानी को साक्षी मानकर लगभग बस्तर संभाग से 100 जोड़ों का सामूहिक विवाह कराया जायेगा. इससे बस्तर के अधिकतर आदिवासी ग्रामीण जो वनोपज पर आश्रित रहते हैं उन्हें फिजूल खर्चों से निजात मिलेगा.




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