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बसना : फुलझर अंचल में कृषि संस्कृति और ऋषि संस्कृति पर आधारित नवाखाई का पर्व धूमधाम से मनाया गया

फुलझर अंचल में नवाखाई का पर्व नई फसल आने पर, देव पीतरों को अर्पित कर प्रकृति एवं ईश्वर के प्रति कृतज्ञता अर्पित करते हुए बड़ी धूमधाम से मनाया गया। इस दौरान बसना, गढ़फुलझर, देवरी, पिरदा सहित भंवरपुर की ज्यादातर दुकानें बंद रही। नवान्ह ग्रहण की परम्परा वैदिक काल से चली आ रही है। पंजाब में बैसाखी, केरल में ओणम, असम में बिहू और छत्तीसगढ़ में नवाखाई। पश्चिम ओड़िशा से लगे हुए फुलझर अंचल के सरहदी इलाकों में भी हर साल भाद्र शुक्ल चतुर्थी, पंचमी और छठवीं के दिन नुआखाई का उत्साह देखते ही बनता है। 

हर वर्ष नुआखाई का त्यौहार परम्परगत तरीके से उत्साह के साथ मनाया जाता है। वर्षा ऋतु के दौरान भाद्र महीने के शुक्ल पक्ष में खेतों में धान की नई फसल, विशेष रूप से जल्दी पकने वाले धान में बालियां आने लगती हैं। तब नई फसल के स्वागत में नुआखाई का आयोजन होता है। यह हमारी कृषि संस्कृति और ऋषि संस्कृति पर आधारित त्यौहार है। इस दिन फसलों की देवी अन्नपूर्णा सहित सभी देवी-देवताओं की पूजा अर्चना की जाती है। नये धान के चावल को पकाकर तरह-तरह के पारम्परिक व्यंजनों के साथ घरों में और सामूहिक रूप से भी नये अन्न का ग्रहण बड़े चाव से किया जाता है। सबसे पहले आराध्य देवी-देवताओं को भोग लगाया जाता है। प्रसाद ग्रहण करने के बाद नुआखाई का सह-भोज होता है। 

इस दिन के लिए अरसा पीठा व्यंजन विशेष रूप से तैयार किया जाता है। नुआखाई त्यौहार के आगमन के पहले लोग अपने अपने घरों की साफ-सफाई और लिपाई-पुताई करके नई फसल के रूप में देवी अन्नपूर्णा के स्वागत की तैयारी करते हैं। परिवार के सदस्यों के लिए नये कपड़े खरीदे जाते हैं।लोग एक-दूसरे के परिवारों को नवान्ह ग्रहण के आयोजन में स्नेहपूर्वक आमंत्रित करते हैं। इस विशेष अवसर के लिए लोग नये वस्त्रों में सज धजकर एक -दूसरे को नुआखाई जुहार करने आते-जाते हैं। गांवों से लेकर शहरों तक खूब चहल-पहल और खूब रौनक रहती है।

34 गांवों के पोर्ते परिवार ने एक साथ मनाया नवाखाई पर्व

फुलझर अंचल के बसना विकासखंड के ग्राम गुढ़ियारी में नवाखाई का पर्व श्री बुढादेव देवगुड़ी में छत्तीसगढ़, ओड़िसा, सारंगढ़ सहित पिथौरा अंचल के ग्राम गुढ़ियारी, सोनामुंदी, पौसरा, चिमरकेल और ओडिशा के भैसादरहा, टेटंगपाली कोलिहाबांदा भालेश्वर, नावाडीह, गरहाभाटा आदि ऐसे 34 गांव के गोड़ जाति के पोर्ते समुदाय के लोग सम्मिलित होकर अपनी वर्षों पुरानी परंपरा और आदिवासी संस्कृति के साथ बड़ी धूमधाम के साथ नवाखाई त्यौहार मनाया। 

देवगुड़ी के देहा सुशील कुमार दीवान ने बताया कि गोड़ जाति के पोर्ते समुदाय के लोग सोमवंशी सूर्यवंशी के वंशज हैं। जो अपने देवगुड़ी गुढ़ियारी में 34 गांव के पोर्ते समुदाय के लोग उपस्थित होकर देवगुड़ी ने अपनी परंपरा और आदिवासी संस्कृति के साथ श्री बुढ़ादेव की पूजा अर्चना बड़ी श्रद्धा भाव के साथ करते है। श्री बुढ़ादेव को नये फसल के कोड़हा चिवड़ा जो धान की बालियों को कूटकर बनाया जाता है। 

जवरी खीर और धान की बालियों को विशेष रूप से कोरिया वृक्ष की पत्ती में भोग चढ़ाते हैं। वहां उपस्थित पोर्तेसमुदाय के लोग एक साथ बैठकर नवा भक्षण करते है। नवा भक्षण के पश्चात पोर्ते समुदाय के लोग में नए फसल की आगमन की खुशियां मनाते हुए एक दूसरे को नवाखाई की बधाई गले लगा कर देते है। इस अवसर पर देवगुड़ी प्रमुख देहा सुशील कुमार दीवान समुदाय लोगों संबोधित करते हुए कहा कि जो परंपरा और संस्कृति हमारे पूर्वज छोड़कर गये है। ऐसे ही बनाए रखे और सदा एक साथ मिलकर एक दूसरे के सुख दुख में सहभागी बने। 

इस दौरान सुशील कुमार दीवान, बद्रीनाथ दीवान, प्रकाश जगत, उपेंद्र कुमार दाऊ, गोपाल सिंह, लक्ष्मीनाथ दीवान, रामसिंह दाऊ, रवि दाऊ, जयंत दीवान, देवेंद्र दिवान, अशोक कुमार दीवान, ताराचंद पोर्ते, राजू पोर्ते, लाल सिंह दाऊ, कमल सिंह पोर्ते, जहरसिंह पोर्ते, रवि, निर्मल करुण कुमार दाऊ, छतर सिंह आदि बड़ी संख्या में समुदाय के लोग उपस्थित थे।




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