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पराली प्रबंधन की दिशा में सार्थक पहल की जरूरत पर बल

लोकसभा में सांसद चौधरी ने धान पराली को जलाने से होने वाली समस्याओं की ओर ध्यान आकृष्ट कर कहा : इससे पर्यावरण को नुकसान हो रहा है, भूमि की उर्वरता लगातार नष्ट हो रही है और दुर्घटना की आशंका भी बढ़ गई है

सांसद रूपकुमारी का सुझाव : कम्बाइन हार्वेस्टर मशीन के पीछे लगाए जाने वाले सोकर मैनेजमेंट सिस्टम मशीन को प्रत्येक कम्बाइन हार्वेस्टर मशीन के साथ अनिवार्य किया जाना चाहिए और आवश्यक हो उसमें छूट भी दी जाए

धमतरी। भारतीय जनता पार्टी की महासमुंद संसदीय क्षेत्र की सांसद रूपकुमारी चौधरी ने गुरुवार को संसद के निचले सदन लोकसभा में धान पराली को जलाने से होने वाली समस्याओं की और ध्यान आकृष्ट किया। श्रीमती चौधरी ने लोकसभा में प्रश्नकाल के दौरान गुरुवार को यह मुद्दा उठाते हुए इस दिशा में सार्थक पहल करने की जरूरत पर बल दिया।

भाजपा सांसद श्रीमती चौधरी ने कहा कि छत्तीसगढ़, जिसे धान का कटोरा कहा जाता है, में पिछले कुछ वर्षों से रबी और खरीफ सीजन में धान की खेती का रकबा कई गुना बढ़ गया है, जिससे तिलहन, दलहन, सब्जी, बागवानी की जगह धान की खेती ज्यादा की जाने लगी है। समस्या पर ध्यान आकर्षित कर श्रीमती चौधरी ने कहा कि धान कटाई के बाद खेत में जो धान जो पराली बच जाती है, उसको जलाने की विकराल समस्या देश के सामने खड़ी हुई है। इससे पर्यावरण को नुकसान हो रहा है, भूमि की उर्वरता लगातार नष्ट हो रही है और दुर्घटना की आशंका भी बढ़ गई है। श्रीमती चौधरी ने कहा कि आज पूरा विश्व जलवायु परिवर्तन के चलते भयावह स्थिति का सामना कर रहा है और विश्व में हालात ज्यादा भयावह हो सकते हैं।

भाजपा सांसद श्रीमती चौधरी ने इस समस्या के निदान और पराली प्रबंधन के लिए सुझाव दिया कि फसल कटाई के समय कम्बाइन हार्वेस्टर मशीन के पीछे लगाए जाने वाले सोकर मैनेजमेंट सिस्टम मशीन को प्रत्येक कम्बाइन हार्वेस्टर मशीन के साथ अनिवार्य किया जाना चाहिए। इससे आज हमारे पालतू मवेशियों गाय-बैल के लिए चारे की जरूरत को भी पूरा किया जा सकता है और जलाए जाने से होने वाले पर्यावरणीय नुकसान से भी बचा जा सकता है।

श्रीमती चौधरी ने कहा कि अगर कम्बाइन हार्वेस्टर मशीन के पीछे लगाए जाने वाले स्ट्रा मैनेजमेंट सिस्टम मशीन विशेष छूट प्रदान की जाए और बिना जलाए इकट्ठा कर वह पराली गौशाला में दी जाए। इसके बाद ही जमीन को खेती के लिए उपयोग करें। यह हमारे लिए आवश्यक होगा, क्योंकि बहुत जल्दी अक्टूबर-नवंबर में धान की फिर कटाई होगी और तब फिर पराली को लेकर समस्या हमारे सामने आएगी।




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