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महासमुंद : हमारी एकता और अखंडता ही हमारे देश की पहचान है, हिंदुस्तानी हैं हम और हिंदी हमारी जुबान है - डॉ अनुसुइया
प्राचार्य प्रो डॉ अनुसुइया अग्रवाल डी लिट के निर्देशन में स्वामी आत्मानंद शासकीय अंग्रेजी माध्यम आदर्श महाविद्यालय में मनाया गया विश्व हिंदी दिवस । प्राचार्य महोदय ने सरस्वती माता की प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं द्वीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया । स्वागत उदबोधन में सहायक प्राध्यापक हिंदी श्रीमती प्रतिमा चंद्राकर द्वारा बताया गया कि हर वर्ष 10 जनवरी को विश्व हिंदी दिवस मनाया जाता है, जो हिंदी भाषा की वैश्विक पहचान को बढ़ावा देने का एक महत्वपूर्ण दिन है। यह दिन हिंदी भाषा के सम्मान और प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित है।
भारत सरकार ने 2006 में इस दिन को विश्व हिंदी दिवस के रूप में मनाने की शुरुआत की थी, ताकि हिंदी को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अधिक प्रतिष्ठा मिल सके। इस दिन का आयोजन दुनिया भर में हिंदी प्रेमियों और भाषा के प्रवर्तकों द्वारा किया जाता है, जिससे यह एक महत्वपूर्ण अवसर बन जाता है हिंदी के महत्व को स्वीकार करने और प्रचारित करने का। हिंदी, जो अब केवल भारत ही नहीं बल्कि विश्व के अनेक देशों में बोली जाती है, आज अपने एक मजबूत स्थान पर है। विश्व हिंदी दिवस का मुख्य उद्देश्य हिंदी भाषा को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ावा देना, हिंदी के साहित्य, संस्कृति और समृद्धि को उजागर करना है। श्रीमती प्रतिमा चंद्राकर द्वारा विभिन्न कविताओं के माध्यम से हिंदी के महत्व को उजागर किया गया
प्राचार्य महोदय ने अपने वक्तव्य में बताया कि हर वर्ष विश्व हिंदी दिवस की एक थीम भी रखी जाती है। साल 2025 में विश्व हिंदी दिवस की थीम है - 'एकता और सांस्कृतिक गौरव की वैश्विक आवाज।' इस थीम का मकसद भाषाई और अंतर्राष्ट्रीय लेन देन के लिए हिंदी भाषा के इस्तेमाल को बढ़ावा देना है। यह न केवल हमारे देश की सांस्कृतिक धरोहर और गर्व का प्रतीक है, बल्कि दुनिया भर में इसे अपनाया जा रहा है। हिंदी भाषा एक ऐसी शक्ति है जो विभिन्न संस्कृतियों, देशों और लोगों के बीच सामूहिकता और गौरव का संदेश फैलाती है।
यह भाषा एक पुल का कार्य करती है जो विभिन्न समुदायों, धर्मों और संस्कृतियों को जोड़ती है। हिंदी ने भारतीय समाज को एकसूत्र में बांधने का काम किया है, और इसे हमारे समाज की विविधता में एकता के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। हिंदी हमारी पहचान है, यह हमें एकता और सामूहिकता का अहसास कराती है।
भाषा का सबसे बड़ा प्रभाव विचारों पर होता है, और हिंदी एक ऐसा माध्यम है जो हमारे विचारों को सशक्त बनाता है। हिंदी में संवाद करने से हम अपनी संस्कृति, परंपराओं और मूल्यों को आसानी से व्यक्त कर सकते हैं। हम सभी जानते हैं कि हिंदी भारतीय उपमहाद्वीप की एक प्रमुख भाषा है, लेकिन यह केवल भारत तक ही सीमित नहीं है, बल्कि अब यह पूरी दुनिया में एक सम्मानित भाषा के रूप में उभर रही है। हिंदी को हर स्थान पर एक पहचान मिल रही है और यह एक वैश्विक भाषा के रूप में उभर रही है। हिंदी भाषा की ताकत उसके साहित्य और कला में निहित है। हिंदी साहित्य का इतिहास सैकड़ों वर्षों पुराना है, जिसमें महान लेखकों, कवियों और शायरों ने हिंदी को समृद्ध किया है। महादेवी वर्मा, सुमित्रानंदन पंत, प्रेमचंद, सूरदास, रामधारी सिंह दिनकर, मैथिली शरण गुप्त, मीर और ग़ालिब जैसे महान साहित्यकारों ने हिंदी साहित्य को ऊंचाइयों तक पहुंचाया। इन लेखकों और कवियों के योगदान ने हिंदी को न केवल साहित्यिक दृष्टि से समृद्ध किया है, बल्कि इसे सामाजिक और सांस्कृतिक आंदोलन का एक माध्यम भी बनाया है।
प्राचार्य महोदय ने हिंदी को डिजिटल क्रांति से जोड़ने पर जोर देते हुए कहा कि अगर डिजिटल क्रांति के साथ हिंदी को जोड़ने के तरीके निकाल लिए जाएं, तो हिंदी का फैलाव खुद-ब-खुद होता चला जाएगा. एक बार पैटर्न सेट हो जाने के बाद बहुत ज्यादा मशक्कत करने की जरूरत शायद नहीं रह जाए. इसके लिए उन लोगों को आगे आना पड़ेगा, जो हिंदी को अपनी भाषा मानते हैं या जिनके मन में यह कसक है कि हिंदी अपनी प्रतिद्वंद्वी भाषाओं को मात देकर आगे क्यों नहीं बढ़ पाती। प्राचार्य महोदय द्वारा हिंदी के गुणगान में स्वरचित पंक्तियां सुनाई गई।
इस अवसर पर महाविद्यालय के प्राध्यापक संजय कुमार , आलोक त्रिलोक हिरवानी, हरि शंकर नाथ एवं विद्यार्थियों में से अनन्या अन्य यादव, मयंक पांडे, हेमलता निषाद एवं मनीष साहू ने अपने भाषण एवं कविता के माध्यम से सभी के मन को हर्षित किया।
कार्यक्रम का संचालन प्राध्यापक निलेश तिवारी एवं धन्यवाद ज्ञापन सहायक प्राध्यापक वाणिज्य तरुण बांधे द्वारा किया गया।
कार्यक्रम में मुकेश कुमार सिन्हा (व्याख्याता कंप्यूटर एप्लीकेशन), माधुरी दीवान (व्याख्याता -वाणिज्य), शिखा साहू , चित्रेश बरेठ ( व्याख्याता- रसायन विज्ञान), डॉ. ग्लैडिस मैथ्यू (व्याख्याता समाजशास्त्र), त्रिपेश कुमार साहू (क्रीड़ा अधिकारी) तथा शेषनारायण साहू (प्रयोगशाला तकनीशियन) एवं जगतारण बघेल ने भी कार्यक्रम को सफल बनाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।