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भूपेश बघेल की कमजोर होती पकड़: भ्रष्टाचार, जनस्वास्थ्य संकट और समर्थन का पतन

छत्तीसगढ़ की राजनीति में भूपेश बघेल का प्रभाव तेजी से घटता जा रहा है। उनके बेटे चैतन्य बघेल की ₹3,200 करोड़ के शराब घोटाले में गिरफ्तारी ने न केवल कांग्रेस पार्टी को असहज किया है, बल्कि राज्य की जनता को भी झकझोर कर रख दिया है ।

प्रवर्तन निदेशालय (ED) की कार्रवाई के बाद बघेल को पार्टी के भीतर अपेक्षित समर्थन नहीं मिल रहा। रायपुर में हुई कांग्रेस की बैठक में उन्हें तीखी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा और दिल्ली जाकर आलाकमान से समर्थन की गुहार लगानी पड़ी ।

लेकिन यह संकट केवल एक गिरफ्तारी तक सीमित नहीं है। बघेल सरकार के कार्यकाल (2018–2023) में कई घोटाले सामने आए—शराब, रेत खनन, ट्रांसफर-पोस्टिंग, और सरकारी योजनाओं में कमीशनखोरी। इन सबने राज्य की आर्थिक प्रगति को बाधित किया और निवेशकों का विश्वास डगमगाया।

सबसे चिंताजनक पहलू है जनस्वास्थ्य पर हुआ समझौता। शराब घोटाले में नकली और मिलावटी शराब की बिक्री ने सैकड़ों लोगों की जान जोखिम में डाली। रिपोर्टों के अनुसार, इस घोटाले में कई अधिकारी और राजनेता शामिल थे, और यह संगठित अपराध की तरह संचालित हुआ।



राज्य में निवेश की स्थिति भी दयनीय रही। बघेल सरकार के दौरान कोई बड़ा औद्योगिक निवेश नहीं आया, जिससे रोजगार के अवसर सीमित रहे और युवाओं में निराशा फैली। इसके विपरीत, अब जब भाजपा सरकार ने खदानों और ऊर्जा परियोजनाओं को गति दी है, बघेल विरोध का झंडा उठाए खड़े हैं—जबकि उन्हीं परियोजनाओं को उन्होंने सत्ता में रहते हुए स्वीकृति दी थी।

अब कांग्रेस पार्टी ने 22 जुलाई को आर्थिक नाकेबंदी का ऐलान किया है, जो व्यापार, परिवहन, आपात सेवाओं और छात्रों के हितों के विरुद्ध है। यह कदम न केवल जनजीवन को बाधित करेगा, बल्कि कांग्रेस की विश्वसनीयता को भी नुकसान पहुंचाएगा।

अब सवाल यह है:

क्या भूपेश बघेल दिल्ली जाकर कांग्रेस का समर्थन हासिल कर पाएंगे?

क्या पार्टी नेतृत्व इस मुद्दे पर चुप्पी साधे रहेगा या बघेल परिवार के बचाव में आगे आएगा?

क्या जनता एक बार फिर राजनीतिक नाटक का शिकार बनेगी या विकास की ओर ठोस कदम उठाए जाएंगे?


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