
बसना : बंसुला ग्रामीण साहू समाज में लिया गया निर्णय,दशगात्र -छट्ठी कार्यक्रमों में धोबी समाज से कपड़े धुलवाने का प्रचलन पर लगाई गईं पाबंदी
ग्रामीण साहू समाज बंसुला के तेलिक बन्धुओ ने अब से दशकर्म -छट्ठी इत्यादि कार्यकमो में धोबी समाज से कपड़े धुलवाने की प्रथा क़ो अब साहू समाज प्रचलन में नही लाया जायेगा, इसे सर्वसम्मति से बंद किया गया है,यह एक फिजूलखर्ची कुरीतियों में से एक प्रथा था, कुछ वर्षो से बलौदाबाजार -कसडोल क्षेत्र में यह नेंग़ अब समाज के पार परिहार द्वारा घाट में कपड़ो पर निरमा का घोल छिड़क कर रश्मे पूरा किया जा रहा है
बंसुला साहू समाज के बंधुओ द्वारा इसके पूर्व भी दो तीन पुराने रिवाज दाह संस्कार से लौटते ही छोटे काम क़ो उसी दिन निपटाने की पहल की है एवं दशकर्म पर पंगत में मीठा कलेवा परोसने जैसे फिजूलख़र्च पर पाबंदी लगाई गई है बंसुला साहू समाज में ज़ब किसी का स्वजातीय व्यक्ति का स्वर्गवास हो जाता था तो पुरानी प्रथा अनुसार उसे जमीन में दफनाये जाने का संस्कार होता था पर बदलते समय अनुसार अब उस प्रथा क़ो बंदकर 'दाह संस्कार' करने का नियम की शुरुआत हुई
ठीक उसी प्रकार अब बंसुला के ग्रामीण साहू समाज द्वारा दशकर्म - छट्टी आदि कार्यक्रमों में धोबी प्रथा क़ो बंद करने का निर्णय लिया गया है जिसे आज 24 अगस्त रविवार दिन से बंसुला गांव से शुरुआत किया गया है
सभा क़ो सम्बोधित करते हुए तहसील सरंक्षक जन्मजय साव ने कहा आज हमारे साहू समाज में एक भयानक सच ये है कि हमारे समाज में ज्यादातार लोग आर्थिकरूप से पिछड़े व्यक्ति को उसके सामर्थ्य से ज्यादा खर्च करवाकर उसे और कर्ज में डाल देते है। कुछ महीने बाद कर्ज से छुटकारा पाने के लिए जमीन जायदाद बेचना पड़ता है और इस कदर एक आर्थिकरूप से कमजोर परिवार और पिछड़ जाता है। इसका असर उसके अगले पीढ़ी पर भी पड़ता है। इसलिए समय बदलता है और लोगों की आर्थिक स्थिति भी बदलती रहती है। इस जीवन चक्र में हर स्वार्थी व्यक्ति का अगला पीढ़ी भी ऐसी कुरीति का शिकार होता है। हर रीति रिवाज समय के अनुसार अच्छा होता है, इसमें समय और स्थिति का अपना खास महत्व है,हर वो कुरीति बंद होना चाहिए जो मानव के सम्पूर्ण विकास में बाधक हो,शिक्षित वर्ग क़ो ऐसे कुरुतियों का पुरजोर विरोध करना चाहिए।
आपको बता दें कि वह सभी बातें जो हमारे धर्म-शास्त्रों, नियमावली में वर्णित नहीं है या धर्म शास्त्रों के अंकित नियम के विपरीत हम या हमारा समाज जो भी कार्य करता है वह कुरीति /कुप्रथा होती है ।हिंदुस्तान में बहुत से समाज में कुरीतियां एवं प्रथाएं हैं जिन्हें तत्काल बंद हो जानी चाहिए या लोगों को उसमें बिलकुल सहयोग नहीं करना चाहिए।
इसी प्रकार हमारे फूलझर राज सहित विभिन्न क्षेत्रों के तैलिक साहू समाज में ऐसी कई परमंपराएं एवं प्रथाएं प्रचलित है जिनका न तो कोई धार्मिक महत्व है न सामाजिक महत्व है साहू समाज में बहुत सारी कुरीतियाँ मध्यकाल से चली आ रही है उन्हें शिक्षित समाज सुधारकों ने समय समय पर विशेष संगोष्ठी बैठक कर सामाजिक बुराइयों क़ो समाप्त करने अथक प्रयास करते आ रहे हैँ
साहू भवन बंसुला के ईस बैठक में जन्मजय साव जी तहसील संरक्षक साहू संघ बसना, परशुराम साव तहसील उपाध्यक्ष साहू संघ बसना,चन्द्रमणी साव अध्यक्ष परिक्षेत्र साहू संघ बंसुला, रुपानंद साव उपाध्यक्ष परिक्षेत्र साहू संघ बंसुला,श्रवण साव सचिव परिक्षेत्र साहू संघ बंसुला, प्रहल्लाद साव अध्यक्ष बंसुला ग्रामीण साहू संघ,उपेंद्र साव बंसुला, जदुमणि साव बंसुला, उमेश साव बंसुला, दिनबधु साव , प्रताप साव , हेमप्रकाश साव सहित सैकड़ो साहू समाज के बंधुगण उपस्थित रहे.