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बसना : शीत ब्लास्ट में प्रति एकड़ दवा छिड़काव में 1100 रुपये तक खर्च, उपज में 10 से 15% गिरावट

बसना क्षेत्र के किसानों के लिए इस वर्ष खरीफ का मौसम मुश्किलों से भरा साबित हो रहा है। अब तक मात्र बसना तहसील में 932 मिलीमीटर बारिश हुई है। जबकि इस दौरान 1153 .5 मिलीमीटर दर्ज की गई थी। जो पिछले साल की अपेक्षा 221 मिनी कम बारिश दर्ज हुई है। अब तक औसत वर्षा का 80 प्रतिशत ही बारिश हुई है। गर्मी, उमस और रुक-रुककर हो रही बारिश के कारण इस बार धान की फसल में शीत ब्लास्ट बीमारी तेजी से फैल रही है। जिस खेत के धान फसल में शीत ब्लास्ट लगा था उसमें भूरा माहो का प्रकोप बढ़ गया है। खेतों में रोग का प्रकोप इतना बढ़ गया है कि किसानों को बार-बार दवाई का छिड़काव करना पड़ रहा है। एक बार शीत ब्लास्ट में दवा छिड़काव में ही प्रति एकड़ 800 से 1100 रुपये तक की लागत आ रही है, जबकि भूरा माहो बीमारी में एक बार दवा छिड़काव में 1000 से 1200 रुपए का खर्च हो रहा है। जिससे खेती की लागत में भारी वृद्धि हो गई है। समय पर दवाई का छिड़काव करने के बावजूद रोग पर पूरी तरह नियंत्रण नहीं हो पा रहा है जिससे फसल की बढ़वार पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है ।

किसानों ने बताया कि शीत ब्लास्ट से पहले धान के पत्ते पीले होकर सड़ने लगते हैं और धीरे-धीरे पौधा कमजोर पड़ जाता है। पत्तियों के सड़ने के बाद उनमें भूरा माहो लगना आम बात है, जिससे फसल की स्थिति और बिगड़ जाती है। शीत ब्लास्ट बीमारी के कारण नए पत्ते नहीं निकल पा रहे हैं और पौधे पूरी तरह विकसित नहीं हो रहे हैं। बसना क्षेत्र के खेतों में सरना किस्म का धान अधिक लगाया जाता है, और इसी किस्म में इस बार बीमारी का प्रकोप सबसे ज्यादा देखने को मिल रहा है। वहीं छोटे किस्म के वेराइटी सिल्की एवं 1010 धान में माईट (मकड़ी)की शिकायत आ रही है जिससे धान के दानों में दुध का भराव नहीं हो पाता फलस्वरूप दानों में बदरा की संख्या बढ़ जाती है किसानों के लिए बड़ी चुनौती है कि माईट की दवा रोग के लक्षण दिखाई देने से पहले छिड़काव करना पड़ता है जबकि लक्षण दिखाई देने के बाद कोई दवा कारगर साबित नहीं होता। क्षेत्र के किसानों के अनुसार शीत ब्लास्ट फफूंद जनित रोग है, जो पत्तों पर छोटे भूरे धब्बों से शुरू होकर धीरे-धीरे पूरे पौधे को सड़ा देता है। यदि समय रहते नियंत्रण न किया जाए तो फसल की उपज में 10 से 15 प्रतिशत तक की गिरावट आ सकती है। किसानों ने बताया कि वे एक से दो बार दवाई का छिड़काव कर चुके हैं, परंतु फिर भी रोग नियंत्रण में नहीं आ रहा है। कुछ किसान तो तीन बार तक छिड़काव कर चुके हैं, जिससे खेती की लागत मैं भारी इजाफा होते जा रहा है। वहीं उत्पादन में कमी आने से किसानों को आर्थिक परेशानी का सामना करना पड़ सकता है।

धान के पौधों में शीत ब्लास्ट के साथ-साथ भूरा माहू का प्रकोप भी बढ़ गया है। माहू के नियंत्रण के लिए भी किसानों को प्रति एकड़ 1000 से 1200 रुपये तक खर्च करने पड़ रहे हैं। इस अतिरिक्त खर्च से किसानों की कमर टूटती जा रही है। किसानों का कहना है कि इस वर्ष रुक-रुक कर बारिश, तापमान में उतार-चढ़ाव और अत्यधिक उमस के कारण फफूंदजनित रोगों के फैलने के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ बनी रहीं, जिससे शीत ब्लास्ट का प्रकोप पिछले वर्षों की तुलना में अधिक देखा जा रहा है। किसानों ने शासन से मांग की है कि क्षेत्र में बीमारी के बढ़ते प्रकोप को देखते हुए आवश्यक दवाइयों पर सब्सिडी दी जाए और राहत राशि उपलब्ध कराई जाए, ताकि किसानों को नुकसान की भरपाई हो सके।

कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि शीत ब्लास्ट की रोकथाम के लिए खेत में पानी का ठहराव न होने दें और नाइट्रोजन की मात्रा संतुलित रखें। रोग की स्थिति में ट्राइसाईक्लाजोल 75% डब्ल्यूपी की 120 ग्राम मात्रा प्रति एकड़ या कार्बेंडाजिम 50% डब्ल्यूपी की 250 ग्राम मात्रा प्रति एकड़ अथवा डाईफेनोफांस 50% ईसी की 400 मिली प्रति एकड़ दवा का छिड़काव करना चाहिए। वहीं भूरा माहू नियंत्रण हेतु इमिडाक्लोप्रिड 17.8% एसएल की 200 मिली या थाॅयमेक्साम 25% डब्ल्यूजी की 100 ग्राम प्रति एकड़ मात्रा का प्रयोग प्रभावी रहता है।

धान में मकड़ी (माइट) रोग का प्रकोप बढ़ा

धान की फसल में इन दिनों छोटी मकड़ी, जिसे वैज्ञानिक रूप से माइट कहा जाता है, इस समय धान में इसका का प्रकोप तेजी से बढ़ रहा है। यह सूक्ष्म कीट सामान्य आंखों से दिखाई नहीं देता, लेकिन दाने बनने की अवस्था में धान के दूध को चूस लेता है, जिससे बालियाँ हल्की रह जाती हैं और दाने “बदरा” बन जाते हैं। जब तक लक्षण दिखाई देते हैं, तब तक फसल को गंभीर नुकसान हो चुका होता है। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार यह रोग बाली मकड़ी (पैनिकल माइट) नामक कीट से होता है, जो गर्म और उमस भरे मौसम में तेजी से फैलता है। विशेषज्ञों का कहना है कि अग्रिम छिड़काव ही इस माइट रोग से बचाव का सबसे प्रभावी उपाय है। इसके रोकथाम के लिए दाना भरने के पहले प्रोपरगाइट द्रव 57 प्रतिशत की 300 मिली या डाइकॉफोल द्रव 18.5 प्रतिशत की 400 मिली , या ओरामाइट 250 एमएल मात्रा प्रति एकड़ पानी में घोलकर छिड़काव करें। किसान खेत में नमी बनाए रखें, सूखे के दौरान सिंचाई का अंतराल न बढ़ाएँ।


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