news-details

बलौदाबाज़ार : ग्राम पंचायत मुंडा में पेयजल संकट, नल-जल योजना कागजों में, सरपंच मौन, प्रशासन अनजान

जनपद पंचायत बलौदाबाज़ार के अंतर्गत आने वाला ग्राम पंचायत मुंडा आज भी गंभीर पेयजल संकट से जूझ रहा है। गांव के लोगों को पीने का पानी दूर स्थित हैंडपंप से लाना पड़ता है। स्थिति इतनी भयावह है कि गांव के स्कूली बच्चे तक अपने छोटे-छोटे हाथों में बाल्टी और घड़ा उठाकर घरों तक पानी ढोने को मजबूर हैं। गर्मी की दोपहर हो या ठंड की सुबह, बच्चों की दिनचर्या का पहला काम अब पानी लाना बन चुका है। किताबें बस्ते में हैं, पर कंधों पर पानी के बर्तन लदे हैं। क्योंकि अधिकांश अभिभावक सुबह से खेतों में मजदूरी के लिए निकल जाते हैं, जिससे घर के लिए पानी भरने की जिम्मेदारी बच्चों पर ही आ गई है।

ग्रामवासी कटाक्ष करते हुए कहते हैं कि  शासन ने बच्चों को ‘पढ़ेगा इंडिया तो बढ़ेगा इंडिया’ सिखाया, पर मुंडा में बच्चे ‘भरेगा इंडिया’ की मिसाल बन गए हैं  पानी से बाल्टी भरने में।

ग्रामीणों का कहना है कि पानी की समस्या अब केवल असुविधा नहीं रही, बल्कि बच्चों के भविष्य से जुड़ा सवाल बन गई है। जहां बच्चों के हाथों में कलम होनी चाहिए, वहां अब हैंडपंप के हैंडल पकड़े नजर आते हैं  और प्रशासन आंख मूंदे बैठा है।

ग्रामवासियों ने ग्राम पंचायत मुंडा के सरपंच को लिखित आवेदन देकर पेयजल की स्थायी व्यवस्था कराने की मांग की थी, लेकिन सरपंच महोदया शायद उस आवेदन को भी किसी फाइल में पानी की तरह बहा चुके हैं। ग्रामीणों का कहना है कि आवेदन दिए महीनों बीत गए, पर सरपंच का जवाब आज तक नहीं आया  शायद गांव के साथ-साथ उनके दफ्तर में भी पानी की कमी है, इसलिए स्याही सूख गई है।

गांव के लोग व्यंग्य करते हुए कहते हैं कि “सरपंच के यहां पानी की बात करना ऐसा है जैसे रेगिस्तान में बादलों की उम्मीद करना — सब जानते हैं कि कुछ नहीं बरसने वाला।” ग्रामीणों का आरोप है कि शासन से 15वें वित्त आयोग की राशि गांव में पानी और स्वच्छता के लिए आई, पर सरपंच के कार्यालय तक आते-आते वह फाइलों में गुम हो गई। गांव में पानी नहीं पहुंचा, लेकिन योजनाओं के कागज़ जरूर ‘तर’ दिखाए जा रहे हैं।

गौरतलब है कि शासन द्वारा ग्राम पंचायतों को 15वें वित्त आयोग की 60 प्रतिशत राशि पानी और साफ-सफाई की व्यवस्था हेतु प्रदान की जाती है, फिर भी मुंडा पंचायत में पानी की समस्या जस की तस बनी हुई है। यह राशि आखिर कहां उपयोग हो रही है — यह अब ग्रामीणों के लिए पहेली बन गई है।

और सबसे बड़ी विडंबना यह है कि “हर घर नल-जल योजना” मुंडा में केवल कागज़ों पर ही चल रही है। गांव के अधिकांश घरों में नल का कनेक्शन तक नहीं लगाया गया है, और जहां नल लगे भी हैं, वहां पानी आना तो दूर, पाइपों में अब तक हवा तक नहीं चली। ग्रामवासियों ने बताया कि उन्होंने इस विषय पर ग्रामीणों ने बताया कि उन्होंने इस विषय पर सुषासन तिहार के दौरान कलेक्टर बलौदाबाज़ार को भी लिखित आवेदन सौंपा था, लेकिन शायद वह आवेदन भी ‘सुशासन’ के नाम पर कुशासन की फाइलों में कहीं गुम हो गया।

कलेक्टर कार्यालय ने शिकायत तो ले ली, पर उस पर कार्रवाई के नाम पर अब तक सन्नाटा पसरा है।

ग्रामवासी तंज कसते हुए कहते हैं —“सुशासन तिहार में आवेदन तो लिया गया, लेकिन समाधान शायद अगले तिहार तक ही आएगा।”

एक ग्रामीण ने हँसते हुए कहा — “कलेक्टर साहब की फाइलें इतनी मोटी हैं कि शायद हमारी शिकायत उनमें सांस भी नहीं ले पा रही है।” गांव के लोगों का कहना है कि कलेक्टर कार्यालय से केवल आश्वासन मिला, पानी नहीं। अब ग्रामीणों को उम्मीद है कि किसी दिन जब प्रशासन ‘सुशासन’ शब्द का अर्थ समझेगा, तभी शायद मुंडा के प्यासे होंठों तक पानी पहुंचेगा।


अन्य सम्बंधित खबरें