बलौदाबाजार : भ्रष्टाचार का गढ़ बनता जा रहा है ग्राम पंचायत मुंडा, विकास कार्यों के नाम पर लाखों का हेरफेर
ग्राम पंचायत मुंडा में लगातार हो रहे भ्रष्टाचार ने शासन की योजनाओं की पारदर्शिता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। पंचायत के कई कार्यों में भारी अनियमितता के आरोप सामने आए हैं।
मुक्तिधाम समतलीकरण में धांधली — ₹9,600 के काम का ₹37,000 का बिल
ग्राम पंचायत की टेढ़ी तालाब मुक्तिधाम के लगभग 3,600 वर्गफीट जमीन को समतल करने के लिए पंचायत ने ₹37,000 का भुगतान किया है। जबकि स्थानीय लोगों के अनुसार JCB मशीन मात्र 6 से 8 घंटे ही चलाई गई थी। मार्केट में JCB मशीन का किराया प्रतिघंटा किराया ₹1,200 है जिसके हिसाब से 8 घंटे का बिल ₹9600 होना चाहिए लेकिन पंचायत के सरपंच द्वारा ₹37000 के बिल का भुगतान किया गया है।
एक पंच ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “मशीन 8 घंटे से ज़्यादा नहीं चली, फिर भी ₹37,000 का बिल बनाना समझ से परे है। 1 वर्गफीट को समतल करने में ₹1000 से अधिक खर्च दिखाना तो सीधा भ्रष्टाचार है।”
बजरीकरण में हर साल लाखों का खर्च — सड़कों की हालत फिर भी खराब
गाँव में हर वर्ष ₹1.5 लाख से अधिक का बिल “बजरीकरण” के नाम पर लगाया जा रहा है। पिछले पाँच वर्षों में लगभग ₹8 लाख का भुगतान सिर्फ इसी मद में हुआ है। ग्रामीणों का कहना है कि ₹8 लाख की राशि से पूरे गाँव की गलियाँ पक्की सड़क बन सकती थीं, लेकिन भ्रष्टाचार के चलते काम सिर्फ कागज़ों में ही सीमित है। ग्रामीणों ने बताया कि “बजरीकरण” के नाम पर 50 हज़ार रुपये की बजरी डलवाकर उसका बिल तीन गुना तक बढ़ाकर ₹1.5 लाख से ₹2 लाख तक दिखाया जा रहा है। यह सिलसिला लगातार जारी है।
गौरतलब है कि वित्तीय वर्ष 2025-26 में भी पंचायत द्वारा ₹80,000 का बिल बजरीकरण के नाम पर लगाया गया है। ग्रामीणों का कहना है कि उन्हें उम्मीद थी नई सरपंच के आने से इस प्रकार के भ्रष्टाचार में कमी आएगी, लेकिन स्थिति पहले जैसी ही बनी हुई है।
एक ग्रामीण ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि, “अगर पिछले पाँच सालों में बजरीकरण पर खर्च हुए आठ लाख रुपये का सही उपयोग होता, तो आज गाँव की सभी गलियाँ पक्की सड़क बन चुकी होती। लेकिन यहाँ तो हर साल बजरी डालने के नाम पर पैसा हज़म किया जा रहा है।”
बोर मरम्मत के नाम पर भ्रष्टाचार! — ₹58,000 का बिल, जबकि एक ही बोरवेल संचालित
पंचायत द्वारा वर्ष 2025–26 में ₹58,000 का बिल बोरवेल पंप मरम्मत के नाम पर भुगतान किया गया है, जबकि पूरे गाँव में केवल एक ही बोरवेल संचालित है। ग्रामीणों ने बताया कि बाजार में एक नया बोर पंप मात्र ₹10,000 से ₹12,000 में उपलब्ध है। ऐसे में एक ही बोर की मरम्मत पर ₹58,000 खर्च दिखाना समझ से परे है। ग्रामीणों का कहना है कि इस राशि में पाँच नए पंप खरीदे जा सकते थे, जिससे पूरे गाँव के लिए पानी की सुविधा बेहतर की जा सकती थी।
ग्रामीणों ने तंज कसते हुए कहा कि, “इतनी राशि में तो पाँच नए पंप खरीदे जा सकते थे, लेकिन यहाँ तो एक ही बोर की मरम्मत में ₹58,000 खर्च दिखाया गया है — यह साफ़ तौर पर गड़बड़ी है।”
ग्रामीणों में जानकारी का अभाव — ‘सरकार का नहीं, हमारा पैसा है ये’ गाँव के कई लोगों को यह जानकारी नहीं है कि पंचायत को मिलने वाला पैसा किसी अदृश्य सरकारी खज़ाने का नहीं, बल्कि हम सभी नागरिकों द्वारा भरे गए कर (Tax) से आता है।
जब कोई सरपंच या अधिकारी भ्रष्टाचार करता है, तो वह वास्तव में गाँव के हर परिवार के हिस्से का विकास छीन लेता है। “लोग सोचते हैं कि सरपंच सरकारी पैसे से भ्रष्टाचार कर रहा है, लेकिन हक़ीकत यह है कि वह जनता के टैक्स के पैसों का दुरुपयोग कर रहा है। यह पैसा स्कूल, सड़क, पानी और गाँव के विकास के लिए होता है — न कि निजी लाभ के लिए।”
यदि ऐसे ही अनियमितताएँ जारी रहीं, तो ‘विकसित भारत 2047’ का सपना गाँवों के लिए अधूरा रह जाएगा। जब तक ग्रामीण स्वयं जागरूक होकर पंचायत के खर्चों पर नज़र नहीं रखेंगे, तब तक गाँव की मूलभूत ज़रूरतें भी पूरी नहीं होंगी। “भ्रष्टाचार पर मौन रहना भी सहयोग है — जब हर नागरिक सवाल पूछेगा, तभी सच्चा विकास संभव होगा।”