news-details

महासमुंद : विकास में नाम पर सरकार भेजती है 100 रुपये तो 80 चला जाता है भ्रष्टाचार में ? बिना कार्य के ही पंचायतों में हो रहा आहरण !

वर्ष 2017 में प्रधानमंत्री मोदी कर्नाटक से एक सभी को संबोधित करते हुए कहते हैं कि पहले लोग कहते थे कि केंद्र से 1 रुपया चलता है तो केवल 15 पैसा ही पहुंचता है. आज 1 रुपया निकलता है तो 100 के 100 लाभार्थियों के खाते में जमा हो जाता है.

इसी बयान को प्रधानमंत्री मोदी कोरना काल में सरपंचों से कोरोना महामारी पर चर्चा के दौरान दुबारा दोहराते हैं, दरअसल प्रधानमंत्री मोदी वर्ष 1985 में भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के ओडिशा दौरे में दिए एक बयान पर घेरने की कोशिश करते हैं. जिसमे उन्होंने कहा था कि सरकार जब भी 1 रुपया खर्च करती है तो लोगों तक 15 पैसे ही पहुंच पाते हैं. यहां राजीव बीच के भ्रष्टाचार का जिक्र कर रहे थे. अपने उस भाषण में राजीव ने कहा था कि देश में बहुत भ्रष्टाचार है. राजीव गांधी कहते हैं कि भ्रष्टाचार ग्रासरूट लेवल पर है जिसे दिल्ली से बैठकर दूर नहीं किया जा सकता.

तो अब राजीव गांधी के इसी बयान पर हमारा सवाल आज मोदी जी है, जिसपर लोगों को आत्मचिन्तंन किया जाना चाहिए, लागातार 3 बार केंद्र की सत्ता सम्हाले हुए मोदी जी ने क्या दिल्ली से बैठकर भ्रष्टाचार को दूर कर लिया है ? क्या अब ग्रासरूट लेवल पर भ्रष्टाचार खत्म हो चूका है ? क्या अब ग्राम पंचायत में हर तरफ केंद्र से मिलने वाली राशि से केवल विकास ही विकास हो रहा है ? क्या भ्रष्टाचार पर जीरो टोलरेंस कहने वाली साय सरकार का भ्रष्टाचार पर नियंत्रण है ? हो सकता है कहीं और हो लेकिन महासमुंद जिले में तो ऐसा होता दिखाई नहीं देता. यहाँ तो भ्रष्टाचार का ही बोलबाला है.

महासमुंद जिले में अगर ग्राम पंचायतों की बात करें तो यहाँ केंद्र सरकार से मिलने वाली राशि से ग्राम पंचायतों का उतना विकास नहीं हो पा रहा जितना होना चाहिए, यही हाल बसना नगर पंचायत सहित सभी नगरीय निकायों का है.

ग्राम पंचायतों में अभी निर्वाचित सरपंचों को चुने हुए 1 वर्ष भी नहीं हुए लेकिन, भ्रष्टाचार की जो गति दिख रही उसे देखकर लगता है कि इस भ्रष्टाचार पर सरकार का किसी तरह से कोई नियंत्रण नहीं है. केन्र्द सरकार अगर 100 रुपये विकास के लिए भेज रही है तो उसका केवल 20 रुपये ही लगाया जा रहा है, बाकि पूरा गबन कर दिया जा रहा है, कुछ मामलों में तो पूरा का पूरा ही गबन कर दिया जा रहा है. ग्राम पंचायतों में जिन कार्यो के नाम पर राशि आहरण की जा रही है उसमे से तो कई कार्य होते भी नहीं. कई पंचायतों में केवल कागजों में ही बोर खनन, सफाई, जैसे अन्य कार्य कर दिए जा रहे हैं.  

वहीँ इस भ्रष्टाचार पर जब कोई आवाज उठाता है इसकी शिकायत अधिकारीयों से करता है तो इस पर कार्रवाई करने की बजाय ले देके मामला रफा दफा कर दिया जाता है, पहले महासमुंद के जिला पंचयत में एक अधिकारी हुआ करते थे जिन्हें एक लोकप्रिय चर्चित स्थानीय अखबार में उन्हें साहब की संज्ञा दी जाती रही, बताया जाता था कि भ्रष्टाचार की शिकायत पर कार्रवाई करने की बजाय वे खुद ही सेटिंग कर लिया करते थे. लगातार महीनो तक इनकी किरकिरी और खुले आम बदनामी होने के बाद इन्हें पद से स्थानांतरित कर दिया गया.  

लेकिन इनके स्थानांतरित होने के बाद भ्रष्टाचार का यह सिलसिला थमा नहीं, जिला पंचायत महासमुंद से अब एक सुपारी वाली मैडम चर्चा में हैं, बताते हैं कि अपने पद की गरिमा को ताक में रखकर वह सचिवों से सेटिंग कर लेती है. करीब दर्जनों सचिवों की शिकायत की फ़ाइल वह पिछले 5-6 माह से दबाकर बैठी है.

तो इस खबर का सार यही है कि अगर 1985 में सरकार जब भी 1 रुपया खर्च करती है तो लोगों तक 15 पैसे ही पहुंच पाते, लेकिन अब अगर सरकार 100 रुपये विकास के नाम पर देती है तो 80 रुपये भ्रष्टाचार के नाम पर खर्च हो जाते है, इसमें अधिकारीयों से लेकर जनप्रतिनिधियों के कमीशन भी शामिल है. कुल मिलाकर भ्रष्टाचार तब भी ग्रासरूट लेवल पर थी, अब भी ग्रासरूट लेवल पर है, बस इसमें अब हिस्सेदार बढ़ गए हैं और तरीका बदल गया है. क्या व्यापक रूप से हो रहा यह भ्रष्टाचार देश के प्रति गद्दारी नहीं ?


अन्य सम्बंधित खबरें