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सुप्रीम कोर्ट ने उठाए केन्द्र की टीकाकरण नीति पर गंभीर सवाल ...मांगा टिको का हिसाब

जस्टिस धनंजय चंद्रचूड़, एल नागेर राव और श्रीपति रवीन्द्र भट की बेंच ने कोरोना महामारी पर स्वत: संज्ञान के मामले में 31 मई को हुई सुनवाई के दो दिन बाद 32 पेज का विस्तृत आदेश जारी किया। सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र की टीकाकरण नीति पर गंभीर सवाल उठाए। अदालत ने कहा कि पहले दो चरणों में लोगों को मुफ्त टीका दिया गया।

16 जनवरी से हुए टीकाकरण में अग्रिम पंक्ति के लोगों को निशुल्क टीका लगाकर केन्द्र ने सराहनीय कार्य किया। सुप्रीम कोर्ट ने टीकाकरण से संबंधित सभी दस्तावेज, फाइल और नोटिंग तलब किए हैं। साथ ही कोवैक्सीन, कोविशील्ड एवं स्पुतनिक वी समेत सभी टीकों की आज तक की खरीद का ब्योरा पेश करने को कहा।

दूसरे चरण में 45 से अधिक के लोगों को भी मुफ्त टीका दिया गया। लेकिन एक मई से लागू उदार टीकाकरण नीति मुफ्त टीके की नीति से हट गई। एक मई से 18 से 44 वर्ष के बीच के लोगों को टीका लगाना शुरू किया गया था। इन लोगों से टीके की मोटी धनराशि वसूलना संवैधानिक दायरे में नहीं आता। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि नीति निर्धारित करना हमारा काम नहीं है। संविधान में कार्यपालिका को मिले अधिकारों से हम अच्छी तरह परिचित हैं।

लेकिन न्यायिक समीक्षा का अदालतों का अधिकार संविधान ने उसे दिया है। इसलिए कार्यपालिका की नीति के कारण देश की बहुत बड़ी आबादी के संवैधानिक अधिकारों का हनन हो रहा हो तो सुप्रीम कोर्ट मूकदर्शक बनकर नहीं रह सकता।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किस समूह को और किस आयु वर्ग के लोगों को प्राथमिकता के आधार पर टीका लगाना है, इसमें अदालत हस्तक्षेप नहीं करेगी। सरकार ने वैज्ञानिकों से सलाह मशविरे के बाद ही ऐसा किया होगा। लेकिन कोरोना की द्वितीय लहर ने युवा वर्ग को सर्वाधिक प्रभावित किया है। क्या सरकार मानती है कि 18 से 44 आयु वर्ग को लोग आर्थिक रूप से टीके की कीमत वहन करने की हालत में हैं।




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