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देश में हर साल बढ़ रही करोड़पतियों की संख्या; उसी स्तर से गरीबी भी

हाल में सरकार द्वारा प्रस्तुत अखिल भारतीय ऋण एवं निवेश सर्वेक्षण-2019 की रिपोर्ट ने एक बार फिर देश में लगातार बढ़ती आर्थिक असमानता की ओर ध्यान खींचा है। रिपोर्ट के अनुसार, देश के 10 फीसद अमीरों के पास शहरी क्षेत्र में 55.7 फीसद संपत्ति है, जबकि शीर्ष 10 फीसद ग्रामीण आबादी के पास करीब 132 लाख करोड़ रुपये की संपत्ति है। ग्रामीण आबादी के 50 प्रतिशत गरीब लोगों के पास कुल संपत्ति का केवल 10 फीसद हिस्सा है, शहरी क्षेत्रों में 50 प्रतिशत आबादी के पास केवल 6.2 फीसद हिस्सा है। जनवरी-दिसंबर 2019 के बीच किए गए इस सर्वे में अनुमान लगाया गया था कि ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोगों के पास 274 लाख करोड़ रुपये की संपत्ति थी, जिसमें से करीब 140 करोड़ रुपये की संपत्ति 10 फीसद अमीरों के पास है। हमारे देश में करोड़पतियों की संख्या हर साल बढ़ रही है और आंकड़े बताते हैं कि देश में गरीबी भी उसी स्तर पर बढ़ रही है। वर्ष 2003 में एक सर्वेक्षण के अनुसार देश में करोड़पतियों की संख्या 61 हजार थी, 2004 में यह बढ़कर 70 हजार हो गई। वहीं अनुमान लगाया जा रहा है कि वर्ष 2020 तक भारत में एक लाख करोड़पति हैं। इसके साथ ही यह भी संभावना व्यक्त की जा रही है कि वर्ष 2025 तक भारत में करोड़पतियों की संख्या 30 लाख हो जाएगी। ब्रिटेन के दार्शनिक जान लाक जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार के अतिरिक्त संपत्ति के अधिकार को भी मानव के विकास के लिए अपरिहार्य समझते थे। आज उनके सोच की अभिव्यक्ति के स्पष्ट दर्शन होते हैं।

अल्पविकसित देशों में पूंजी निवेश ने अनिवार्य रूप से संसाधनों को सक्षम देशों की ओर मोड़ दिया है। यही कारण है कि गरीब देशों में आर्थिक कठिनाई बढ़ती जा रही है तो दूसरी ओर पूंजी का केंद्रीकरण। तो क्या अब समय आ गया है कि गरीबी रेखा के बदले अमीरी रेखा तय की जाए? अर्थशास्त्रियों और नीति निर्माताओं को इस पर विचार करना चाहिए। यह काम संभवत: आसानी से हो जाए। अमीरों की संख्या और उनकी संपत्ति का विवरण तो सरकार के पास रहता है। अत: अमीरी रेखा तय की जाए और इस रेखा से अधिक संपत्ति रखने वालों पर टैक्स लगाया जाए तथा इससे प्राप्त राजस्व को गरीबों के कल्याण पर खर्च किया जाए। इस तरह गरीबी दूर करने के लिए अमीरी रेखा तय हो। 

समाज के प्राकृतिक संसाधनों के विशाल भाग का केवल मुट्ठी भर लोगों का मालिक बन जाना पूरे समाज के लिए भयानक खतरे की घंटी बन रहा है। इसलिए व्यापक समाज हित में अमीरी रेखा का बनाया जाना आज समाज की सबसे बड़ी आवश्यकता बन चुकी है। इसलिए न्याय के आधार पर औसत सीमा तक संपत्ति रखने का अधिकार हर नागरिक का मूलभूत संपत्ति अधिकार होना चाहिए और उससे अधिक संपत्ति पर कर लगाया जाना चाहिए।




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