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पितृदोष का भयानक असर, पूर्वजों और कुल परिवार के लोगों से जुड़ा दोष....जानिये लक्षण

यह तय है कि यह हमारे पूर्वजों और कुल परिवार के लोगों से जुड़ा दोष है। पितृदोष के कारण हमारे सांसारिक जीवन में और आध्यात्मिक साधना में बाधाएं उत्पन्न होती हैं। हमारे पूर्वजों का लहू, हमारी नसों में बहता है। हमारे पूर्वज कई प्रकार के होते हैं 

पितृ ऋण कई प्रकार का होता है जैसे हमारे कर्मों का, आत्मा का, पिता का, भाई का, बहन का, मां का, पत्नी का, बेटी और बेटे का। आत्मा का ऋण को स्वयं का ऋण भी कहते हैं। जब कोई जातक अपने जातक पूर्व जन्म में धर्म विरोधी कार्य करता है तो वह इस जन्म में भी अपनी इस आदत को दोहराता है। ऐसे में उस पर यह दोष स्वत: ही निर्मित हो जाता है पितृ ऋण के कारण व्यक्ति को मान प्रतिष्ठा के अभाव से पीड़ित होने के साथ-साथ संतान की ओर से कष्ट, संतानाभाव, संतान का स्वास्थ्य खराब रहने या संतान का सदैव बुरी संगति में रहने से परेशानी झेलना होती है। पितर दोष के और भी दुष्परिणाम देखे गए हैं- जैसे कई असाध्य व गंभीर प्रकार का रोग होना। पीढ़ियों से प्राप्त रोग को भुगतना या ऐसे रोग होना जो पीढ़ी दर पीढ़ी चलता रहे। पितर दोष का प्रभाव घर की स्त्रियों पर भी रहता है। 

इसके अलावा मातृ ऋण से आप कर्ज में दब जाते हो और ऐसे में आपके घर की शांति भंग हो जाती है। मातृ ऋण के कारण व्यक्ति को किसी से किसी भी तरह की मदद नहीं मिलती है। जमा धन बर्बाद हो जाता है। फिजूल खर्जी को वह रोक नहीं पाता है। कर्ज उसका कभी उतरना नहीं।
दूसरी ओर बहन के ऋण से व्यापार-नौकरी कभी भी स्थायी नहीं रहती। जीवन में संघर्ष इतना बढ़ जाता है कि जीने की इच्छा खत्म हो जाती है। बहन के ऋण के कारण 48वें साल तक संकट बना रहता है। ऐसे में संकट काल में कोई भी मित्र या रिश्तेदार साथ नहीं देते भाई के ऋण से हर तरह की सफलता मिलने के बाद अचानक सब कुछ तबाह हो जाता है। 28 से 36 वर्ष की आयु के बीच तमाम तरह की तकलीफ झेलनी पड़ती है।
 
स्त्री के ऋण का अर्थ है कि आपने किसी स्त्री को किसी भी प्रकार से प्रताड़ित किया हो, इस जन्म में या पूर्जजन्म में तो यह ऋण निर्मित होता है। स्त्रि को धोखा देना, हत्या करना, मारपीट करना, किसी स्त्री से विवाह करके उसे प्रताड़ित कर छोड़ देना आदि कार्य करने से यह ऋण लगता है। इसके कारण व्यक्ति को कभी स्त्री और संतान सुख नसीब नहीं होता। घर में हर तरह के मांगलिक कार्य में विघ्न आता है।
इसके अलावा  गुरु का ऋण, शनि का ऋण, राहु और केतु का ऋण भी होता है। इसमें से शनि के ऋण उसे लगता है जो धोके से किसी का मकान, भूमि या संपत्ति आदि हड़ लेता हो, किसी की हत्या करवा देता हो या किसी निर्दोष को जबरन प्रताड़ित करता हो। ऐसे में शनिदेव उसे मृत्यु तुल्य कष्ट देते हैं और उसका परिवार बिखर जाता है।

ब्रह्मा ऋण : पितृ ऋण या दोष के अलावा एक ब्रह्मा दोष भी होता है। इसे भी पितृ के अंर्तगत ही माना जा सकता है। ब्रम्हा ऋण वो ऋण है जिसे हम पर ब्रम्हा का कर्ज कहते हैं। ब्रम्हाजी और उनके पुत्रों ने हमें बनाया तो किसी भी प्रकार के भेदवाव, छुआछूत, जाति आदि में विभाजित करके नहीं बनाया लेकिन पृथ्वी पर आने के बाद हमने ब्रह्मा के कुल को जातियों में बांट दिया। अपने ही भाइयों से अलग होकर उन्हें विभाजित कर दिया। इसका परिणाम यह हुआ की हमें युद्ध, हिंसा और अशांति को भोगना पड़ा और पड़ रहा है। 

ब्रह्मा ऋण से मुक्ति पाने के लिए हमें घृणा, छुआछूत, जातिवाद, प्रांतवाद इत्यादि की भावना से दूर रहकर यह समझना चाहिए की भारत में रहने वाला प्रत्येक व्यक्ति ब्रह्मा की संतान हैं। उसके और मेरे पूर्वज एक ही हैं जिससे में घृणा करता हूं। हिन्दू हैं तो हिन्दू ही बनकर रहें। न तो आप सवर्ण हैं और न दलित। विदेशी आंक्राताओं, अंग्रेजों और भारत के राजनीतिज्ञों ने आपको बांट दिया है

पितृ दोष को ठीक या शांत करने सिर्फ अमावस्या ही नहीं बल्कि अपने प्रतिदिन के दिनचर्या के जरिये भी ठीक किया जा सकता है,एक दिया अपने पितृ के नाम या फिर अपने पितृ के उस दोष को समझना जो आपमें भी है उसे दूर करके, भी अपने पितरों को शान्त व ठीक किया जा सकता है.




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