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इन मंत्रों को जपने से मिलता है महादेव का आशीर्वाद, जाने महादेव को प्रसन्न करने का कारगर तरीका.

शिव मंत्र,  महादेव को प्रसन्न करने का सबसे कारगर तरीका है। शिव के मंत्रों को जपने से शिव भक्तों के ऊपर शीघ्र ही उनकी कृपा दृष्टि भी बरसती है। शिव जी के मंत्रों में एक रंक को राजा बनाने,  एक अज्ञानी को महाज्ञानी और एक निर्बल को सबल बनाने की शक्ति निहित है। इस लेख में शिव जी के प्रमुख मंत्रों और स्तोत्रों की चर्चा विस्तार से की गई है।

वैदिक मंत्रों के महत्व को बताते हुए संस्कृत में एक श्लोक लिखा गया है- ‘मन: तारयति इति मंत्र:’ अर्थात मन को तारने वाली ध्वनि ही मंत्र है। हिन्दू पूजा पद्धति के दौरान पढ़े जाने वाले मंत्रों का संकलन यजुर्वेद में मिलता है। इस वेद में गद्य और पद्य दोनों ही रूपों मंत्र लिखे गए हैं। हालाँकि कई मंत्र हैं ऐसे भी हैं जिनका उद्गम यजुर्वेद की परिधि से बाहर है।

मंत्रों में वह ऊर्जा होती है जिसका उच्चारण विधिपूर्वक किया जाए तो व्यक्ति को उसका वास्तविक फल मिलता है। ऐसे ही भगवान शिव से संबंधित मंत्र और स्तोत्र हैं जिनका जप या पाठ करने से आपके ऊपर शिव कृपा बरसेगी। मनुष्यों की भिन्न-भिन्न कामनाएँ होती हैं इसलिए उनकी कामना प्राप्ति के लिए भी अलग-अलग शिव के मंत्र हैं।

भगवान शिव और उनका स्वरूप

शिव को सृष्टि का संहारक माना जाता है। उन्हें कई नामों से जाना जाता है। इसमें महादेव, भोलेनाथ, कैलाशपति, शंकर जी, नीलकंठ आदि नाम शामिल हैं। हिन्दुओं की धार्मिक पुस्तक “शिव पुराण” में भोलेनाथ के बारे में विस्तार से बताया गया है। इस धार्मिक ग्रंथ में शिव की महिमा का संपूर्ण विवरण है।

शिव शंभु का स्वरूप अन्य देवताओं से बहुत भिन्न है। एक ओर ब्रह्मा जी और भगवान विष्णु जी के स्वरूप को देखें और फिर भगवान शिव की वेशभूषा को निहारें तो इसमें बड़ा अंतर नज़र आता है। कैलाश पर्वत में रहने वाले देवों के देव महादेव तन में जानवर की खाल लपेटे हुए हैं। शंकर जी के गले में नाग देवता लिपटे हुए हैं और माथे पर चंद्र विराजमान है।

महादेव हाथ में डमरू और त्रिशूल लिए हुए हैं और नंदी की सवारी करते हैं। हिन्दू मान्यता के अनुसार, भगवान शिव को मनाना अन्य देवताओं की अपेक्षा आसान है। भगवान शिव सबसे जल्दी आशीर्वाद देने वाले देवता हैं और जिस व्यक्ति के ऊपर शिवजी की कृपा हो जाए उस व्यक्ति का कल्याण होना निश्चित है।

सर्वाधिक लोकप्रिय शिव मंत्र - पंचाक्षरी शिव मंत्र

ॐ नमः शिवाय, भगवान शिव का सबसे लोकप्रिय मंत्र है। यह शैव मत के अनुयायियों के लिए महत्वपूर्ण मंत्र है। यह मंत्र केवल पाँच अक्षरों का है। इसलिए इसे शिव का पंचाक्षरी मंत्र भी कहते हैं। यहाँ ॐ को अक्षर के रूप में नहीं गिना जाता है। ॐ नमः शिवाय का अर्थ है भगवान शिव को नमस्कार।

मंत्र

“ॐ नमः शिवाय”

पंचाक्षरी शिव मंत्र की उत्पत्ति

शास्त्रों के अनुसार, पंचाक्षरी शिव मंत्र का वर्णन भी यजुर्वेद में मिलता है। हिन्दू धार्मिक शास्त्रों में ऐसा कहा गया है कि श्री रुद्रम् चमकम् और रुद्राअष्टाध्यायी में ’न’,’ मः’ ‘शि’ ‘वा’ और ‘य’ के रूप में प्रकट हुआ था। श्री रुद्रम चमकम् और रुद्राअष्टाध्यायी क्रमश कृष्ण यजुर्वेद और शुक्ल यजुर्वेद का हिस्सा हैं। शिव पुराण के विद्येश्वर संहिता के अध्याय 1.2.10 और वायवीय संहिता के अध्याय 13 में 'ॐ नमः शिवाय' मंत्र लिखित रूप में है।

मंत्र के लाभ

भगवान शिव का यह मंत्र बड़ा ही प्रभावशाली है। इस मंत्र के जाप से न केवल भगवान शिव की प्रार्थना की जा सकती है। बल्कि इससे परमात्मा प्रेम, करुणा, सत्य और परम सुख जैसे गहन विषयों का अनुभव किया जा सकता है। यदि व्यक्ति इस मंत्र का सही और शुद्ध रूप से उच्चारण करे तो उसे आत्मिक शांति और आध्यात्मिक अंतर्दृष्टि का साक्षात आभास हो जाएगा। मानसिक और दैहिक सुख प्राप्त करने के लिए यह मंत्र बेहद ही कारगर माना जाता है।

मंत्र को जपने की विधि

यह मंत्र के मौखिक या मानसिक रूप से जपा जाता है। मंत्र जाप के समय मन में भगवान शिव ध्यान होना चाहिए। इसे रुद्राक्ष माला पर 108 बार दोहराया जाता है। इसे जप योग कहा जाता है। इसका जाप कोई कर सकता है, परन्तु गुरु द्वारा मंत्र दीक्षा के बाद इस मंत्र का प्रभाव बढ़ जाता है।

शिव बीज मंत्र और उसके लाभ

मंत्र शास्त्र में सभी देवी-देवताओं के लिए बीज मंत्र दिए गये हैं। ईश्वर की स्तुति के लिए बीज मंत्रों का विशेष स्थान है। शास्त्रों में इन मंत्रों को शिरोमणि भी माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि जिस प्रकार बीज से पौधे और वृक्षों की उत्पत्ति होती है, वैसे ही बीज मंत्रों के जाप से ईश्वरीय शक्ति उत्पन्न होती है। इसी प्रकार भगवान शिव का बीज मंत्र ह्रौं" है। भगवान शिव के बीज मंत्र लोगों को अकाल मृत्यु, रोग एवं संकटों से मुक्ति दिलाता है। यदि कोई व्यक्ति इस मंत्र को विधिनुसार करे तो उस व्यक्ति का चहुमुखी विकास होता है और उसकी मोक्ष प्राप्ति की कामना भी पूर्ण होती है।

शिव बीज मंत्र “ह्रौं" मंत्र को जपने की विधि

श्वेत आसन पर उत्तर या पूर्व की ओर मुख करके बैठें। मन में भगवान शिव का ध्यान करें। इसे रुद्राक्ष की माला के साथ नित्य एक हज़ार बार जपें। इस मंत्र को कोई भी जप सकता है।

महामृत्युंजय मंत्र

“ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।

उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥”

महामृत्युंजय मंत्र अर्थात मृत्यु को जीतने वाला मंत्र, यह मंत्र भगवान शिव को समर्पित है। यह मंत्र भगवान शिव की स्तुति के लिए यजुर्वेद के रुद्र अध्याय में है। यह मंत्र शिव के रुद्र अवतार (रौद्र रूप) से संबंध रखता है इसी कारण इसे रुद्र मंत्र अथवा त्रंयम्बकम (तीन नेत्रों वाला) मंत्र भी कहते हैं। वैदिक कालीन ऋषि मुनियों ने महामृत्युंजय मंत्र को वेद का हृदय कहा है। शास्त्रों में कहा गया है कि असुरों के ऋषि शुक्राचार्य ने कठोर तपस्या कर मृत्यु पर विजय पाने वाली इस विद्या को प्राप्त किया था।

महामृत्युंजय मंत्र के लाभ

शास्त्रों के अनुसार कलयुग में भगवान शिव का अधिक प्रभाव बताया गया है। भगवान शिव के महामृत्युंजय मंत्र के जाप से व्यक्ति को अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है। इसका जाप व्यक्ति को समस्त पापं एवं दुख भय शोक से मुक्ति दिलाता है। निःसंतान दंपत्ति यदि महामृत्यंजमंत्र का सच्चे हृदय से जाप करें तो उन्हें संतान प्राप्ति होती है। यह मंत्र नौकरी/व्यवसाय में आ रही बाधाओं को भी दूर करता है।

मंत्र को जपने की विधि

मंत्र के शुद्ध उच्चारण पर विशेष ध्यान दें। मंत्र जाप के लिए एक निश्चित संख्या निर्धारित करें। मंत्र जाप से पूर्व आसन बिछाएँ और उस पर उत्तर/पूर्व की ओर मुख करके बैठें। भगवान शिव का ध्यान कर मंत्र का जाप करें। मंत्र का जाप रुद्राक्ष माला के साथ करें।

शिव गायत्री मंत्र

वैदिक ज्योतिष शास्त्र में शिव गायत्री का बड़ा महत्व है। जिस व्यक्ति की जन्म कुंडली में काल सर्प दोष हो तो उस व्यक्ति के लिए शिव गायत्री मंत्र का जाप वरदान होता है। काल सर्प दोष जन्म कुण्डली में स्थित एक ऐसा दोष है जिसके कारण पीड़ित व्यक्ति को आर्थिक हानि, शारीरिक कष्ट और संतान संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इस दोष के प्रभाव से जातक या तो निःसंतान रहता है या फिर उसकी संतान शारीरिक रूप से बहुत ज़्यादा कमज़ोर होती है। इस दोष से बचने के लिए शिव गायत्री मंत्र अचूक उपाय है।

शिव गायत्री मंत्र

‘ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्र: प्रचोदयात।’

मंत्र को जपने की विधि इस मंत्र को सोमवार के दिन जपना चाहिए। मंत्र का शुद्ध उच्चारण करें। मंत्र जाप से पूर्व आसन बिछाएँ और उस पर उत्तर/पूर्व की ओर मुख करके बैठें। भगवान शिव का ध्यान कर मंत्र का जाप 108 बार करें।

मंत्र का जाप रुद्राक्ष माला के साथ करें। इस मंत्र को कोई भी जप सकता है। मनोवांछित फल पाने के लिए जपें श्री शिव पंचाक्षर स्तोत्र श्री शिव पंचाक्षर स्तोत्र के जाप से व्यक्ति की मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। यह शिव स्तोत्र शिव का पंचाक्षरी मंत्र ॐ नमः शिवाय पर आधारित है। परमपूज्य श्री आदि गुरु शंकराचार्य ने शिव जी की स्तुति के लिए इस स्तोत्र की रचना की थी। कहते हैं कि इस मंत्र को जपने से शिव जी शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं और जपने वाले व्यक्ति को तीर्थों में किया जाने वाला स्नान के समान पुण्य की प्राप्ति होती है।

श्री शिव पंचाक्षर स्तोत्र

नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांग रागाय महेश्वराय

नित्याय शुद्धाय दिगंबराय तस्मै न काराय नम: शिवाय:॥

मंदाकिनी सलिल चंदन चर्चिताय नंदीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय

मंदारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय तस्मै म काराय नम: शिवाय:॥

शिवाय गौरी वदनाब्जवृंद सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय

श्री नीलकंठाय वृषभद्धजाय तस्मै शि काराय नम: शिवाय:॥

अवन्तिकायां विहितावतारं मुक्तिप्रदानाय च सज्जनानाम्।

अकालमृत्यो: परिरक्षणार्थं वन्दे महाकालमहासुरेशम्।।

मंत्र की उच्चारण विधि

इस मंत्र का उच्चारण सही होना चाहिए। भगवान शिव का स्मरण करते समय आप एक रुद्राक्ष की माला के साथ लें। इस मंत्र को 11 या फिर 21 बार उच्चारण कर सकते हैं। मंत्र जाप करते समय पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख होना चाहिए। जप के पूर्व शिवजी को बिल्व पत्र अर्पित करना चाहिए और उनका जलाभिषेक करना चाहिए।



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