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सुप्रीम कोर्ट में नोटबंदी पर हुई सुनवाई, पी. चिदंबरम ने केंद्र सरकार पर लगाए गंभीर आरोप

 वरिष्ठ वकील और कांग्रेस नेता पी चिदंबरम ने साल 2016 में मोदी सरकार द्वारा की गई नोटबंदी को गंभीर रूप से गलत निर्णय बताया है। उन्होंने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में कहा कि केंद्र सरकार अपने आप मुद्रा नोटों से संबंधित कोई प्रस्ताव शुरू नहीं कर सकती है। यह केवल केंद्रीय बोर्ड की सिफारिश पर हो सकता है। इस निर्णय लेने की प्रक्रिया को रद्द कर दिया जाना चाहिए। सुनवाई के दौरान, केंद्र के 2016 के फैसले का विरोध करने वाले याचिकाकर्ताओं में से एक चिदंबरम ने न्यायमूर्ति एस ए नजीर की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ से कहा कि बैंक नोटों के मुद्दे को विनियमित करने का अधिकार पूरी तरह से भारतीय रिजर्व बैंक के पास है। केंद्र सरकार अपने आप कानूनी निविदा से संबंधित कोई भी प्रस्ताव शुरू नहीं कर सकती है। आरबीआई के केंद्रीय बोर्ड की सिफारिश पर ही किया जा सकता है।


पी चिदंबरम ने पीठ से यह भी कहा कि यह सबसे अपमानजनक निर्णय लेने की प्रक्रिया है जो कानून के शासन का मखौल उड़ाती है। इस प्रक्रिया को गंभीर रूप से दोषपूर्ण होने के कारण खत्म किया जाना चाहिए। नोटबंदी एक प्रमुख आर्थिक निर्णय था, जिसके कारण देश का प्रत्येक नागरिक प्रभावित हुआ। उन्होंने नोटों को विमुद्रीकृत करने के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम की धारा 26 को लागू करने के लिए केंद्र सरकार की शक्ति पर सवाल भी उठाया। उन्होंने कहा कि धारा 26 (2) केंद्र को करेंसी नोटों की केवल कुछ श्रृंखलाओं को रद्द करने की शक्ति देती है ना कि एक मूल्यवर्ग के संपूर्ण नोटों रद्द करने की।

इस दौरान वरिष्ठ वकील चिदंबरम ने अन्य भी कई गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि नोटबंदी के संभावित भयानक परिणामों” का आकलन, शोध या दस्तावेजीकरण नहीं किया गया था। इस मामले में सुनवाई अगले हफ्ते जारी रहेगी। पीठ केंद्र के 8 नवंबर, 2016 के दो नोटों के विमुद्रीकरण के फैसले को चुनौती देने वाली 58 याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। गौरतलब है कि 16 दिसंबर, 2016 को तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली पीठ ने फैसले की वैधता और अन्य संबंधित मामलों को एक आधिकारिक फैसले के लिए पांच न्यायाधीशों की एक बड़ी बेंच को भेजा था।






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