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रायगढ़ - में किसानों ने रवि फसल के रूप में गांजा लगाने की मांग की

आज कलेक्टर जनदर्शन में किसानों ने अजीब मांग कर दी। सरकार ने रवि के सीजन में धान के फसल लगाने पर प्रतिबंध लगाया हुआ है ऐसे में जिले के किसान यह मांग कर रहे हैं कि यदि धान उगाना जुर्म है तो हमें गांजा का फसल उगाने की अनुमति दी जाए। सरकार ने इस सीजन में धान लगाए जाने पर प्रतिबंध लगा दिया है क्योंकि सरकार के अनुसार रवि के धान की सिंचाई में ज्यादा पानी खर्च होता है जिस से भूजल स्तर कम होने का खतरा बना रहता है।
इस जिले में करीब 19 उद्योगों पर भूजल दोहन का आरोप है कई बार उन पर जुर्माना भी लगाया जा चुका है लेकिन उन पर कोई कार्यवाही नहीं होती न ही उन पर किसी तरह का प्रतिबंध लगता है लेकिन सरकार ने किसानों के धान बोने पर प्रतिबंध लगा दिया है। इस आदेश को यहां के किसान गैर जिम्मेदार पूर्ण और तानाशाही से भरा आदेश बता रहे हैं। उनका कहना है कि जो लोग सबसे ज्यादा भूजल दोहन के लिए जिम्मेदार हैं उन पर कार्यवाही करें इसके बाद किसानों के धान बोने पर प्रतिबंध लगाया जाए। उनका यह भी कहना है कि यदि धान लगाने पर प्रतिबंध है तो हमें गांजा ही लगाने दो हम उसी को बेच कर जी लेंगे।

जिले में गर्मी के आगमन के साथ ही भूजल स्तर बहुत नीचे चला जाता है कई बार यह स्तर 300 से 400 फिट के नीचे होता है । ऐसे में कई बार पेयजल के लिए भी लोगों को समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इससे निपटने के लिए सरकार ने यह कदम उठाया है । इसके उलट कई सालों से यहां के कई उद्योग गैरकानूनी तरीके से पंप लगाकर भूजल का लगातार दोहन कर रहे हैं ।कई बार प्रशासन में दबिश देकर उन पर जुर्माना भी लगाया है । कई लोग जुर्माना तो देते हैं और कई लोग नहीं भी देते हैं बावजूद इसके उन पर कोई कार्रवाई नहीं हो पाती है। अधिकारी कहते हैं हम उद्योगों के ऊपर कोई कार्यवाही नहीं कर सकते ऐसे में सवाल यह उठता है कि सरकार क्या सिर्फ किसानों पर कारवाई करने के लिए है । किसानों के ऊपर डंडे चलाना सरकार को सबसे आसान दिखता है।

14 साल में किसान बेहाल
जिले में सबसे ज्यादा भूजल स्तर तमनार और बरमकेला मदन खतरनाक स्थिति में होती है। पहले कहा गया था कि केलो डैम बनने के बाद भूजल स्तर में सुधार होगा लेकिन इसमें अभी समय है। तमनार और आसपास के क्षेत्र में सबसे ज्यादा उद्योग हैं। जिन उद्योगों का सतही जल के लिए सरकार से अनुबंध नही हो सका है वे भारी मोटर लगाकर अपने कारखाने में पानी की कमी पूरी करते है। प्रशासन के बार कागजी खानापूर्ती करती है। इन कारखानों के ऊपर अभी भो करीब 50 करोड़ का जुर्माना बकाया है लेकिन इनके बोर पंप सील नहीं किये जाते हैं। इसका खामियाजा यहां के किसान भुगतते हैं।गर्मी के दिनों में सिंचाई से लेकर पेयजल तक की समस्या से किसान रूबरू होते हैं। लेकिन उद्योगों पर जब कार्रवई की बारी आती है तो प्रशासनिक अधिकारी हाथ खड़े कर देते हैं। वे स्पष्ट कहा देते हैं कि उद्योगों पर कार्रवई का आदेश ही नहीं है। अब बाख जाता है निरीह किसान उर उसपर कोई भी सरकार कैसा भी नियम थोप सकती है।




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