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बसना : नाग सांप काटने के बाद जिंदगी और मौत से लड़ रहा था बच्चा, सुझबुझ दिखाकर परिजन ले गए अस्पताल, बची जान

वनांचल क्षेत्र के सांप काटने के पश्चात् अक्सर लोग झाड़ फूंक के चक्कर में जींदगी गवां बैठते हैं, लेकिन समय के रहते अगर सांप काटने से आप किसी को अस्पताल लेकर उसका उचित ईलाज करवाते हैं, तो उसकी जिंदगी बच सकती है.

घटना 19 अप्रैल 2025 की है, जब बसना के अग्रवाल नर्सिंग होम में सुबह करीब 7:30 बजे एक 12 वर्ष का बच्चा अपने परिजनों के साथ जींदगी और मौत से लड़ता हुआ पहुंचा, बच्चे की स्थिति अत्यंत खराब थी, साँसे तेज और धड़कन ना के बराबर चल रही थी. बच्चे के परिजनों ने डॉ. से सांप काटने की संभावना व्यक्त की.

इधर बच्चे की स्थिति को देखते हुए डॉ. उसे तुरंत वेंटीलेटर पर ले गए और उसका तात्कालिक इलाज शुरू किया.  डॉ. अमित अग्रवाल ने बताया कि सांप काटने की संभावना और लक्षण को देखते हुए बच्चे का ईलाज किया गया, संभावना थी कि बच्चे को शायद नाग सांप ने काटा है क्योकि बच्चे में नाग सांप काटने के न्यूरोटॉक्सिक लक्षण दिख रहे थे जो मस्तिष्क और मांसपेशियों को पूरी तरह से प्रभावित होती हैं, इसके उपचार के लिए डॉक्टरों ने एंटीस्नेक वेनम का उपयोग किया.

डॉ. अमित अग्रवाल ने बताया कि एंटीस्नेक वेनम सांप के जहर को न्यूट्रल करने के लिए किया जाता है, जिसे बच्चे को मात्र के अनुसार निगरानी में करीब 20 बार देना पड़ा, और फिर वेंटीलेटर की मदद से बच्चे की स्थिति ठीक होती गई, मांसपेशियों में ताकत आई जिसके बाद बच्चे ने खांसना शुरू किया और फिर उसे वेंटीलेटर से बाहर निकाला गया.

बच्चे की स्थिति अब पूरी तरह ठीक हो चुकी है, जिसके लिए परिजनों की सुझबुझ, अग्रवाल नर्सिंग होम के टीम की महत्वपूर्ण भूमिका है. डॉ अमित अग्रवाल ने बताया कि देश में सांप की 300 से भी अधिक प्रजातियाँ हैं, इसमे से तीन-चार सांप अत्यंत ही जहरीले होते हैं, जो कि कोबरा अथवा नाग सांप, दूसरा करैत या करात, रसेल वाइपर, डॉ. ने बताया कि वाइपर क्षेत्र में उतनी अधिक मात्र में नही हैं, लेकिन करैत और नाग सांप काफी मात्रा में क्षेत्र में हैं, इनसे बचने के लिए ही एंटीस्नेक वेनम बनाया गया है, जो कि शासकीय अस्पतालों में भी उपलब्ध होता है. 

यहाँ तारीफ करनी होगी बच्चे के परिजनों की जिन्हें झाड़ फूंक की सलाह मिलने के बाद भी वो इसके चक्कर ने ना पड़कर सीधे अग्रवाल नर्सिंग होम पहुंचे क्योकि पहले भी इनके परिवार का एक सदस्य झाड़ फूंक के चक्कर में जान गवां चूका था. जिसके बाद वे इसके चक्कर में ना पड़कर सीधे अस्पताल पहुंचे और अपने बच्चे की जान बचा पाई. 

इस उपचार में अग्रवाल नर्सिंग होम बसना टीम, डॉ. अमित अग्रवाल शिशु रोग विशेषज्ञ, तथा डॉ. किरण का महत्वपूर्ण योगदान रही.


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