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बसना : भारतीय ज्ञान परंपरा में शिक्षण प्रशिक्षण

स.शि.मं. बसना में दिनांक 28 दिसम्बर 2025 आचार्य विकास वर्ग में सर्वप्रथम मां भारती, ओम एवं विद्यादायिनी सरस्वती माता के छायाचित्र की समक्ष दीप प्रज्वलित किया गया | वरिष्ठ आचार्य अभिमन्यु दास ने ब्रह्मनाद करने की विधि बताते हुए कहा - प्रथम नाद को 75% से 25%, द्वितीय नाद को 50% से 50% एवं तृतीय नाद को 25% से 75% किया जाता है, साथ ही गायत्री मंत्र का उचित उच्चारण करना भी सिखाया | 

द्वितीय सत्र में रमेश कुमार कर ने प्रशिक्षण की आवश्यकता क्यों है ? इस पर अपना व्यक्तव्य देते हुए कहा - शिशु से सीधा संपर्क आचार्य का होता है | मनुष्य जीवन की अंतिम सांस तक सिखता है | मैं अर्थात अहंकार की भावना से मानव का पतन निश्चित है | “वादे-वादे प्रति जयते” अर्थात बार-बार देखना, चर्चा करने से स्मरण पटल में चेतना शक्ति बनी रहती है | सभी मानव में सोचने, विचारने की अलग-अलग क्षमता होती है | सभी को संतुष्ट करना संभव नहीं होता है, संतुष्ट करने के लिए विद्या भारती की योजना को समझना पड़ता है तथा आत्मविश्वास को बढ़ाने के लिए प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है | प्रशिक्षण कैसे हो, उसका उदेश्य क्या है ? इस पर उन्होंने कहा कि विद्यालय के कार्य को पूर्ण रूप से संचालित करने के लिए बनाए गए योजना को पूर्ण मनोयोग के साथ पालन करना पड़ता है | वाणी माधुर्य का ध्यान रखते हुए शब्दों की गरिमा का चयन होना चाहिए | “अयोग्य पुरुष: नास्ति” ईश्वर द्वारा बनाये गए कोई भी मनुष्य अयोग्य नहीं होता है | सभी में कुछ न कुछ गुण, कला, प्रतिभा अवश्य होती है | योजक्ता का गुण लाने के लिए स्वयं को परखना पड़ता है |

भारतीय ज्ञान परंपरा में शिक्षण प्रशिक्षण को यूट्यूब के माध्यम से अखिल भारतीय संगठन मंत्री माननीय मुकुल कानिटकर के अमृतवाणी से सीखने को मिला कि - किसी भी कार्य को बार-बार दोहराना कौशल कहलाता है | कला को साधना पड़ता है, प्रकटीकरण करना पड़ता है | कला को साधने के लिए मन को साधना पड़ता है, मनुष्य के अंतर्मन में सुप्त कला, ज्ञान को प्रकट करना ही शिक्षा है | माली बीज को बोकर उसकी देखभाल करता है और अंकुरित होने का इंतजार करता है, उसी प्रकार शिक्षक छात्रों के अंतर्मन में सुप्त ज्ञान को प्रकट करने की कोशिश करता है | शिक्षक प्रेरणा स्रोत होता है, ज्ञान के साक्षात्कार से आनंद की प्राप्ति होती है |

संघ का परिचय कराते हुए सुंदरलाल प्रधान ने कहा कि - संघ का मतलब भीड़ करना नहीं, संघ का उद्देश्य भारत की एकता को बनाए रखते हुए, भारत को विश्व गुरु बनाना, समाज को जोड़ता है, देश हित में कार्य करना, व्यक्ति निर्माण करता है | डॉ बलिराम हेडगेवार ने समाज को एकजुट कर एकता के सूत्र में पिरोने का प्रयास किया | बार-बार के गुलामी से त्रस्त भारत माता को मुक्त कराने के लिए उन्होंने लोगों को जोड़ने का प्रयास किया | “त्याग के समान सुख नहीं, संग्रह के समान दुःख नहीं, ज्ञान के समान तप नहीं” | शास्त्र के इस वाक्य को हेडगेवार ने अपने जीवन में धारण कर उसे सबके जीवन में उतारने का प्रयास किया | अंत में समता एवं संघ प्रार्थना के साथ आवर्ती संपन्न हुआ | प्राचार्य धनुर्जय साहू, प्रधानाचार्य भरोस राम साव के मार्गदर्शन में 54 आचार्य/दीदीयों ने इस आवर्ती का लाभ लिया |


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