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वन विभाग में बन रहे सड़क,पुल, पुलिया,तालाब कौन बना रहा है, मालूम नही, विभाग के अफसरों को पता नही..

वन विभाग में जंगल विभाग भी कहा जाता है, यह साबित करने में वन विभाग के आला अफसर एड़ी चोटी एक कर देते है। गो पनीयता का कूट कूट कर विभाग के अधिकारियों द्वारा अपने नीचे पदस्थ कर्मचारियों को ट्रेनिग देते है।

ऐसा ही मामला बार अभ्यारण्य क्षेत्र में सामने आया, सेंचुरी क्षेत्र में सड़क निर्माण कार्य प्रारंभ हुआ। भ्रस्टाचार करने के लिए विभाग एकजुट होकर काम विभाग के कर्मचारियों को पाठ पढ़ा दिया, की कोई इस कार्य के बारे किसी मीडिया के सामने जुबान नही खोलना है।

हुआ ऐसा ही मीडिया कर्मचारी पहुचे तो वहां काम की देख रेख कर रहे चरोदा(बार) के वन रक्षक निषाद वहां थे, जहाँ सड़क निर्माण कार्य चल रहा था। कुछ ग्रामीण कार्य कर रहे थे,  उनसे निर्माण कार्य के बारें में पूछा गया तो जवाब में कहा कि मुझे नही मालूम, आप डिप्टीरेंजर सालिकराम डड़सेना ही कुछ बता पायेगा, डड़सेना से पूछने पर उन्होंने भी हमारे रेंजर साहब बतायेगा कह कर टालमटोल जवाब दिया, रेंजर से बात करने पर कहा कि मुझे काम के बारे में कुछ पता नही आप जनसंपर्क कार्यालय से पूछ सकते है।

तो यहां सवाल उठता है, बार रेंज में जवाबदार अधिकारी कौन है, यहां इतना बड़ा अभ्यारण्य क्षेत्र का कोई माई बाप नही, जंगल क्षेत्र में क्या हो रहा सब अधिकारी जानते है, पर कोई नही बताता जिससे साफ जाहिर होता है भ्रस्टाचार कर बंदरबाट करने के लिए वन विभाग के कर्मचारी अधिकारी मौन धारण कर लेते है। लाखो करोड़ो का कार्य का स्वीकृति कर बिना सूचना बोर्ड लगाए कार्य किया जाता है और कार्य समाप्ति पर बोर्ड लगाया जाता है।

इसका मतलब तो साफ है कार्य की जानकारी किसी को न हो, क्योकि जानकारी हो जाने पर विभाग की पोल खोल जाएगी इस कारण किसी भी कार्य का खुलासा नही करते ।

विभाग जब जनहित के कार्य कर रही है तो उसे बताने में मीडिया के सामने क्यो कतराती है? वन विभाग की निर्माण कार्य की बात करे तो जिस कार्य की पंचायत 50 हजार में करती है । उसी कार्य को वन विभाग 5 लाख में करती है, ऐसा क्यों । इसकी छानबीन उच्चस्तरीय करने से सारे भ्रस्टाचार खुलकर सामने आ सकती है।




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