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वर्मी कम्पोस्ट के नाम से मिल रहा अमानक खाद..वर्मी खाद के नाम से छले जा रहे किसान..! जनप्रतिनिधि हैं मौन तो किसानों की सुनेगा कौन..?

रायगढ़ । केंचुओं की मदद से कचरे को खाद में परिवर्तित करने हेतु केंचुओं को नियंत्रित वातावरण में पाला जाता है। इस क्रिया को वर्मीकल्चर कहते हैं, केंचुओं द्वारा कचरा खाकर जो कास्ट निकलती है उसे एकत्रित रूप से वर्मी कम्पोस्ट कहते हैं।

केंचुआ मिट्टी में पाये जाने वाले जीवों में सबसे प्रमुख है। ये अपने आहार के रूप में मिट्टी तथा कच्चे जीवांश को निगलकर अपनी पाचन नलिका से गुजारते हैं जिससे वह महीन कम्पोस्ट में परिवर्तित हो जाते हैं और अपने शरीर से बाहर छोटी-छोटी कास्टिग्स के रूप में निकालते हैं। इसी कम्पोस्ट को वर्मी कम्पोस्ट कहा जाता है। केंचुओं का प्रयोग कर व्यापारिक स्तर पर खेत पर ही कम्पोस्ट बनाया जाना सम्भव है। इस विधि द्वारा कम्पोस्ट मात्र 45 दिन में तैयार हो जाता है। केंचुओं का पालन ‘कृमि संवर्धन‘ या ‘वर्मी कल्चर’ कहलाता है।

वर्मीकम्पोस्ट में साधारण मृदा की तुलना में 5 गुना अधिक नाइट्रोजन, 7 गुना अधिक फॉस्फेट, 7 गुना अधिक पोटाश, 2 गुना अधिक मैग्नीशियम व कैल्शियम होते हैं। प्रयोगशाला जाँच करने पर विभिन्न पोषक तत्वों की मात्रा इस प्रकार पाई जाती है - नाइट्रोजन 1.0-2.25 प्रतिशतफास्फोरस 1.0-1.50 प्रतिशतनाइट्रोजन 2.5-3.00 प्रतिशत इत्यादि..

सारंगढ़ में वर्मी कम्पोस्ट के नाम पर किसानों को छलावा...!

वर्मी कम्पोस्ट जैविक खाद में सबसे बेहतर है इससे इनकार नही किया जा सकता, लेकिन जिस तरह अमानक खाद को भी केंचुआ खाद के नाम से किसानों को परोस दिया जा रहा है वे भी तो न्यायोचित नही है। क्योंकि अगर ऐसे ही अमानक खाद को किसानों को जबरजस्ती बांटा गया तो किसानों के उपज में भारी कमी की संभावना से इनकार नही किया जा सकता। और अगर एक बार किसानों के मन से जैविक खाद की महत्ता उतर गयी तो किसान अगले वर्ष जैविक खाद से कन्नी काटते नजर आएंगे।

सेवा सहकारी समिति अमझर क्रमांक 283 उपकेंद्र मल्दा(ब) में किसानों को परोसा जा रहा अमानक वर्मी खाद..!

मीडिया को किसान ख़िरसागर पटेल से सूचना मिली कि केंचुआ खाद में भारी मात्रा में रेत मिलावट है और हमे इस खाद को सेवा सहकारी समिति द्वारा जबरजस्ती लेने को मजबूर किया जा रहा है, कृपया आप इस मुद्दे को संज्ञान में लें। मामले की गम्भीरता को देखते हुवे हमारी मीडिया टीम जब सेवा सहकारी समिति मल्दा(ब) पहुंची तो बोरी को कैमरे के सामने खोला गया तो किसानों की शिकायत पूर्णतः सच साबित हुवी। कथित वर्मी खाद में पानी का रिसाव हो रहा था। पूछताछ पर पता चला कि उक्त खाद डोमाडीह(ब) के समूह द्वारा निर्माण किया गया था। 

खाद निर्माता स्व सहायता समूह पर लगा गम्भीर आरोप..

डोमाडीह(ब) के स्वसहायता समूह जो पूर्व में सारंगढ़ अंचल में वर्मी कम्पोस्ट निर्माण में सबसे पिछड़े समूह में आता था। विगत कुछ दिनों में ऐसी कौन सी तकनीकी ज्ञान कृषि विभाग और अन्य जिम्मेदार अधिकारियों ने दे दिया कि आआन-फानन में में इतनी जल्दी और बड़े पैमाने पर वर्मी खाद का निर्माण करने लगे..! इस पर एक ग्रामीण ने बताया कि खाद गढ्ढे से सीधा गोबर को लेकर जिसमे भूसा, पैरा कुटी, चूल्हा का राख सब मौजूद रहता है उसे चलनी में छानकर बोरी में भर दिया जाता है, और वर्मी खाद के नाम से समिति में भेजा जा रहा है।

पहले गलती मानने से इंकार, फिर सफाई पेश, फिर आनन फानन में खाद गायब..

उक्त समूह के पहुंच की जानकारी मीडिया को तब हुवी जब वस्तुस्थिति को पता करने जैसे ही उपकेंद्र मल्दा(ब) पहुंचे थे और किसानों के साथ निरीक्षण में अमानक खाद होने की जानकारी मिली सम्बंधित पँचायत के एक जिम्मेदार प्रतिनिधि का फोन आ गया। उधर से कहा गया कि वर्मी खाद बिल्कुल सही है, उसे मैं अपने सामने लोड करवाया हूँ, जो भी शिकायत किया है वो गलत है,ऐसा हो नही सकता ठीक से चेक करो, आपको दिखाई नही दे रहा कि वर्मी कम्पोस्ट है इत्यादि-इत्यादि..जब हमारे मीडिया प्रतिनिधि ने बताया कि की खुले हुवे सभी बोरी मे अमानक स्तर का ही खाद है। सभी मे पानी का रिसाव हो रहा है, और कहीं से भी वर्मी कम्पोस्ट की श्रेणी में नही आ रहा है हम यहीं हैं और आप आके खुद देख सकते हैं या आपको वीडियो भेज दे रहे हैं। तभी कुछ समय बाद महोदय द्वारा सफाई दी जाती है कि हमारे यहां स्व सहायता समूह नही है मैं खुद लेबर लाकर काम करवाता हूँ। ट्रेक्टर में भरने के बाद वर्षा हो गयी तो भीग गया होगा..! मैं सुधरवा दूंगा आप लोग कुछ मत करिये। जब इस बाबत प्रबंधक से उनका पक्ष लेने हमारी मीडिया टीम रवाना हुवी तत्काल अमानक खाद को ट्रैक्टर से वापिस ले जाया गया, जिसकी सूचना हमे ग्रामीणों से मिली।

पूर्व में वर्मीखाद के नाम से अमानक खाद को विरतण किये किसानों का क्या--

आआन फानन में समिति प्रबंधक लाला पटेल से सांठगांठ कर खुद को फंसता देख सभी खाद को वापिस तो ले जाया गया। लेकिन उन किसानों का क्या जो वर्मी खाद के नाम से अमानक खाद को ले गये हैं.? उनका तो पैसे के साथ ही फसल उत्पादन पर भी असर पड़ेगा। किसानों के लिए फसल उनके सन्तान की तरह होती है और उन्हीं फसलों की बदौलत किसान वर्ष भर अपने आर्थिक मदद कर पाता है। ऐसे अमानक खाद पर किसानों को भविष्य में होने वाले नुकसान की भरपाई कौन करेगा सम्बंधित अमानक खाद उत्पादन करने वाला पँचायत का समूह, या उस अमानक खाद को वितरण करने वाला और बिना जांच के वापसी करवाने वाले प्रबंधक लालाराम पटेल या कृषि विभाग..??

कृषि विभाग का है आदेश- उपपंजीयक

जब इस मामले में उप पंजीयक कार्यालय में दूरभाष से सम्पर्क किया गया और उनसे पूछा गया कि किसके आदेश के तहत आप किसानों को ज़बरन वर्मी खाद लेने पर बाध्य कर रहे हैं तो साहब का कहना था की कृषि विभाग के आदेश पर जैविक खेती को बढ़ावा देने के उद्देश्य से वर्मी खाद का वितरण किया जा रहा है। लेकिन अगर अमानक स्तर का खाद है तो किसी भी सूरत में किसानों को नही देना है।

प्रशासनिक दण्ड से बचने और टारगेट पूर्ण करने में लगा कृषि विभाग-

वहीं कृषि अधिकारी भी अपने ऊपर थोपे गए लक्ष्य पूर्ति और कार्यवाही से बचने के लिए जैसे तैसे कर वर्मी खाद में मिले लक्ष्य को पूरा कराने लगे हैं।

लेकिन अमानक स्तर पर बने खाद से कौन से किसानों का भला होगा वो सम्बंधित कृषि कर्मचारी और उनके ऊपर बैठे अधिकारी ललित मोहन भगत ही जानें। क्योंकि कृषि विभाग का कार्य तकनीकी मदद और प्रसार का होता है। अगर ऐसे ही अमानक स्तर के खाद को कृषि विभाग सेवा सहकारी समिति के माध्यम से किसानों को वितरण कराने लगे फिर तो हो गया किसानों का राम-राम...!

विधायक और जनप्रतिनिधियों के लोकप्रियता पर लग सकता है दाग..!--

सारंगढ़ में पहली दफ़ा लगने लगा था कि इतिहास बदलेगा। जिस तरह से विधायक उतरी गणपत जांगड़े और राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले अरुण मालाकार और युवा जोश की तुकबंदी अभी तक काम कर रही थी, अंचल में सभी लोग दबे जुबान में कहने लगे थे कि पुनः एकबार अपने विकास में नाम पर सारंगढ़ विधानसभा चुनाव में कॉंग्रेस अपनी सीट बचाने में कामयाब हो सकती है। लेकिन चाहे सारंगढ़ हो या रायपुर या राजधानी दिल्ली किसानों को छलकर कोई भी शूरमा सिंहासन में काबिज होना तो दूर कुर्सी के आसपास भी नही पहुंच पाई है। क्योंकि छुटभैये नेताओं से चुनाव नही जीता जा सकता आज भी 70 प्रतिशत हिस्से में अन्नदाताओं का ही राज है। और वर्तमान कांग्रेस के नेताओं को भी नही भूलना चाहिए कि उनके 15 वर्ष का वनवास से मुक्ति सिर्फ किसानों की बदौलत ही मिली है। यही वो किसान हैं जो अपने जद में आ जायें तो बड़े बड़े धुरंधर को अर्श से फर्श पर एक झटके में ला सकते हैं। औऱ आज इन किसानों के खून पसीने की कमाई को कुछ तथाकथित नेता और जनप्रतिनिधि के शह में कार्य करने वाले लोग मिलकर चूसने लगे तो फिर किसानों के आक्रोश झेलने को कोई नही बचा सकता। और सबसे अधिक नुकसान होगा सत्ताधारी पार्टी और उनके नेताओं को.. अतः इन वरिष्ठ नेताओं को किसानों के हक में बात करनी पड़ेगी, और विपक्ष को भी इस मामले में हस्तक्षेप कर किसानों के साथ आना होगा.



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