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आकस्मिक मृत्यु को प्राप्त हुए परिजनों की शांति के लिए बेहद जरूरी है पिशाच मोचन श्राद्ध

जिन लोगों के पूर्वजों की मौत किसी आकस्मिक दुर्घटना या गैर-प्राकृतिक तरीके से हुई हो, उन्हें पिशाच मोचन श्राद्ध पर अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए अवश्य ही प्रयास करने चाहिए. हिन्दू धर्म में व्यक्ति के जन्म के बाद उसके मृत्यु को जीवन का एक चरण बताया गया है. 

वहीं हिन्दू धर्म में मृत्यु के बाद दाह संस्कार और श्राद्ध को भी महत्वपूर्ण बताया जाता है. लोग पितृ पक्ष में लोग अपने पूर्वजों का श्राद्ध करते हैं. माना जाता है कि मृत्यु के बाद लोगों का श्राद्ध करना जरूरी होता है.

मार्गशीर्ष (अगहन) मास में पड़ने वाली पिशाच मोचन श्राद्ध पर भी लोग अपने पितरों का पिंडदान करते हैं. कहते हैं कि जिन लोगों की मृत्यु अकाल होती है उनका श्राद्ध पिशाच मोचन श्राद्ध वाले दिन करने से उन्हें मुक्ति मिलती है. इस साल पिशाच मोचन श्राद्ध शुक्रवार, 17 दिसंबर को पड़ रहा है.

इस दिन शांति के उपाय करने से प्रेत योनि और जिन्हें भूत-प्रेत से भय व्याप्त हो, उन्हें पितर दोष से मुक्ति मिलती है. इस दोष की शांति हेतु शास्त्रों में पिशाच मोचन श्राद्ध को महत्वपूर्ण माना गया है. मार्गशीर्ष माह में आने वाला पिशाच मोचन श्राद्ध काफी महत्वपूर्ण होता है. श्राद्ध के अनेक विधि-विधान बताए गए हैं जिनके द्वारा इनकी शांति व मुक्ति संभव होती है.

पिशाच मोचन श्राद्ध का महत्व
पिशाच मोचन श्राद्ध कर्म द्वारा व्यक्ति अपने पितरों को शांति प्रदान करता है तथा उन्हें प्रेत योनि से मुक्ति दिलाता है. धार्मिक मान्यताओं अनुसार यदि व्यक्ति अपने पितरों की मुक्ति एवं शांति हेतु यदि श्राद्ध कर्म एवं तर्पण न करें तो उसे पितृदोष भुगतना पड़ता है और उसके जीवन में अनेक कष्ट उत्पन्न होने लगते हैं. जो अकाल मृत्यु व किसी दुर्घटना में मारे जाते हैं, उनके लिए यह श्राद्ध महत्वपूर्ण माना जाता है. इस प्रकार इस दिन श्राद्धादि कर्म संपन्न करते हुए जीव मुक्ति पाता है.

यह समय पितरों को अभीष्ट सिद्धि देने वाला होता है. इसलिए इस दिन किया गया श्राद्ध अक्षय होता है और पितर इससे संतुष्ट होते हैं. पिशाच मोचन श्राद्ध करने से वे प्रसन्न होते हैं और सभी कामनाएं पूर्ण होती हैं.

इसके साथ ही परिजनों को पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है. इस दिन तीर्थ, स्नान, जप, तप और व्रत के पुण्य से ऋण और पापों से छुटकारा मिलता है. इसलिए यह संयम, साधना और तप के लिए श्रेष्ठ दिन माना जाता है. भगवान विष्णु की आराधना की जाती है जिससे तन, मन और धन के कष्टों से मुक्ति मिलती है.

पिशाच मोचन श्राद्ध का विधान

इस दिन व्रत, स्नान, दान, जप, होम और पितरों के लिए भोजन, वस्त्र आदि देना उत्तम रहता है. शास्त्रों के हिसाब से इस दिन प्रात:काल स्नान करके संकल्प और उपवास करना चाहिए.कुश अमावस्या के दिन किसी पात्र में जल भर कर कुशा के पास दक्षिण दिशा कि ओर अपना मुख करके बैठ जाएं तथा अपने सभी पितरों को जल दें, अपने घर परिवार, स्वास्थ आदि की शुभता की प्रार्थना करनी चाहिए. तिलक, आचमन के उपरांत पीतल या तांबे के बर्तन में पानी लेकर उसमें दूध, दही, घी, शहद, कुमकुम, अक्षत, तिल, कुश रखते हैं.

हाथ में शुद्ध जल लेकर संकल्प में उक्त व्यक्ति का नाम लिया जाता है जिसके लिए पिशाच मोचन श्राद्ध किया जा रहा होता है. फिर नाम लेते हुए जल को भूमि में छोड़ दिया जाता है. इस प्रकार आगे कि विधि संपूर्ण कि जाती है. 

तर्पण करने के उपरांत शुद्ध जल लेकर सर्व प्रेतात्माओं की सदगति हेतु यह तर्पणकार्य भगवान को अर्पण करते हें व पितर की शांति की कामना करते हैं. पीपल के वृक्ष पर भी जलार्पण किया जाता है तथा भगवत कथा का श्रवण करते हुए शांति की कामना की जाती है.




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