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क्यों नाखुश हैं सरायपाली विधानसभा के कांग्रेस कार्यकर्ता? क्या आने वाले चुनाव में कांग्रेस को उठाना पड़ेगा खामियाजा...

राहुल गाँधी द्वारा शुरू किया गया जनआन्दोलन भारत जोड़ो यात्रा, जिसके तहत भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के कथित विभाजनकारी राजनीति के खिलाफ देश को एकजुट करना है. लेकिन ठीक इसके विपरीत महासमुंद जिले के सरायपाली विधानसभा में इस आन्दोलन का उलट होता दिखाई दे रहा है. राज्य में सत्ता होने के बावजूद कांग्रेस के कार्यकर्ता एकजुट होना छोड़ बिखरते और पार्टी छोड़ते नज़र आ रहे हैं. अगर यही हाल रहा तो आने वाले समय विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है.

कई कांग्रेस कार्यकर्ता इसकी वजह सीधे तौर पर स्थानीय विधायक किस्मतलाल नन्द को मान रहे हैं. दीवाली से पूर्व, विधायक किस्मतलाल नन्द ने नाराज होकर कांग्रेस के वरिष्ठ कार्यकर्ताओं ने विधानसभा क्षेत्र के भंवरपुर में बैठक आयोजित किया था, जिसमें सैंकड़ों कार्यकर्ता शामिल रहे.

बैठक में शामिल सभी कार्यकर्ताओं ने विधायक किस्मतलाल नन्द की कार्यशैली पर अशंतोष जाहिर किया, कार्यकर्ताओं का कहना है कि जो सम्मान 35 से 40 वर्षों तक जुड़े होने के बावजूद उन्हें नहीं मिल रहा है, उससे कहीं अधिक सम्मान भाजपा समर्थित कार्यकर्ताओं को कांग्रेस में वापसी के बाद दिया जा रहा है. इस बैठक में सैंकड़ों कार्यकर्ता सामूहिक रूप से इस्तीफा देने की बात कर रहे थे.

वहीं सरायपाली के स्थानीय कांग्रेस नेता हरदीप सिंह रैना ने सामूहिक इस्तीफे की बात पर वजह बताते हुए कहा कि कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने बड़े जोर-शोर के साथ कांग्रेस को जिताने के लिए अपना कार्य किया था, जब कार्यकर्ता जीत दिलाता है तो वह इस आशा उम्मीद के साथ रहता है कि सत्ता में हमारी पार्टी आई है, कुछ ना कुछ पार्टी के पदों का लाभ उन्हें मिलेगा. लेकिन अभी सरायपाली विधानसभा में देखने को मिला है कि जो कांग्रेस के निष्ठावान कार्यकर्ता हैं, उन्हें दर-किनार करते हुए बीजेपी से जुड़े लोगों को नियुक्तियां दी गई है. इस बात के नाराजगी कार्यकर्ताओं में हैं जिसे उपर तक पहुँचाया गया है.

कांग्रेस नेता हरदीप सिंह रैना ने कहा कि यह दुर्भाग्य पूर्ण है कि कांग्रेस कार्यकर्ता इस्तीफा दे रहे हैं, हम पूरी बात हाई कमान तक पहुंचाएंगे. उन्होंने कहा कि निश्चित रूप से कार्यकर्ताओं की अनदेखी हुई है, और यदि जल्द ही पार्टी के वरिष्ठ पदाधिकारी इसपर ध्यान नहीं देते हैं तो इसका खामियाजा हमें विधानसभा चुनाव में भुगतना पड़ेगा.




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