गांव में पंप व हैंडपंप नहीं होने से ग्रामीण पहाड़ से निकलने वाले झरने से प्यास बुझाने को मजबूर
जशपुर : हर्रापाठ गांव में लगे हुए सौर उर्जा पंप बंद है और पानी टंकी बिना उपयोग लगी हुई हैं। गांव में पंप व हैंडपंप नहीं होने की वजह से ग्रामीण पहाड़ से निकलने वाले झरने का पानी पी कर प्यास बुझाने के लिए मजबूर हैं। इस झरने तक पहुंचने के लिए ग्रामीणों को पत्थरों से भरी कंटीली झाड़ियां और घने जंगल से होकर 3 किलोमीटर पहाड़ के नीचे उतरना पड़ता है। पानी भरने के बाद फिर पानी लेकर उसी पहाड़ी पर चढ़ कर उन्हें वापस लाैटना पड़ता है। एक एक बाल्टी पानी घर तक लाने के लिए ग्रामीणों को राेजाना काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
मामला जिले के सन्ना तहसील के हर्रापाठ गांव की है। इस पहाड़ी कोरवा बाहुल्य इस गांव में वर्ष 2020 में क्रेडा ने सौर उर्जा चलित बोर और पानी टंकी लगाई थी, लेकिन चंद दिनों के बाद बोर के पंप में आई तकनीकी खराबी से इसे बीते तीन सालों से काम नहीं कर रहा है। इस गांव के रहने वाले रामेश्वर राम ने बताया कि बीते लगभग तीन साल से इस गांव के 40 परिवार भीषण जलसंकट का सामना कर रहें हैं।
गांव में एक भी बोर, हैंडपंप और कुआं तक नहीं हैं। उन्होंने बताया कि गांव में जल स्तर कम होने से कुआं सफल नहीं हो पाता है। गांव की महिला मुखनीबाई ने बताया कि पूरे बस्ती में पेय जल का साधन न होने से दो पहाड़ पार कर। पानी भरने के लिए पहाड़ी झरना जाना पड़ता है। रास्तें में बड़े बड़े चट्टान और पथरीले रास्ते है। मुखनीबाई ने बताया कि बरसात के मौसम में यह तीन किलोमीटर तय कर ताला सिली और पंडरसिली जाना पड़ा है। रास्ता दुर्गम होने के कारण तीन किलोमीटर की दूरी सैकड़ों किलोमीटर के बराबर लगती है।
ग्रामीण बोले- अफसरों को पता है, फिर भी नहीं ली किसी ने उनकी सुधार रामेश्वर राम का कहना है कि खराब पड़े हुए सौर पंप और पानी टंकी को सुधरवाने के लिए ग्रामीणों ने जनचौपाल, गांव में लगने वाले समाधान शिविर के साथ अधिकारियों से मुलाकात कर व्यक्तिगत रूप से जानकारी दे चुके हैं, लेकिन उनकी समस्या का समाधान नहीं हुआ। ग्रामीणों ने बताया कि अफसर आवेदन लेते समय उन्हें पंप मरम्मत कराने का आश्वासन देते तो हैं, लेकिन गांव में काम नहीं होता।
गांव की 90 प्रतिशत आबादी पहाड़ी कोरवा हर्रापाठ गांव में लगभग 40 परिवार निवास करते हैं, इनमें से 90 फीसदी लोग पहाड़ी कोरवा जनजाति से ताल्लुक रखते हैं, जो कि राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र कहे जाते हैं। जिले में लगभग 4 हजार पहाड़ी कोरवा परिवार निवास करते हैं। इनमें से अधिकांश जिले के बगीचा, सन्ना और मनोरा तहसील में ही निवासरत हैं। इन गांव में बुनियादी सुविधा विकसित करने के लिए शासन प्रशासन हर साल करोड़ों रुपए खर्च करती है, लेकिन व्यय किए गए राशि का लाभ हर्रापाठ के ग्रामीणों को नहीं मिल रहा है.