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बसना : कार्तिक महीने में भक्ति की गूंज से गूंजा लमकेनी

राधा-माधव संकीर्तन मंडली ने निभाई तीन दशक पुरानी परंपरा

सी डी बघेल। सांस्कृतिक संगीत और कला के लिए प्रसिद्ध ग्राम लमकेनी कार्तिक महीने में भक्ति और संकीर्तन की सुरलहरियों से पूरी तरह गुंजायमान हो जाता है। लगभग तीस वर्ष पूर्व स्थापित राधा-माधव संकीर्तन मंडली द्वारा प्रारंभ किया गया प्रभाती नगर कीर्तन आज भी उसी निष्ठा और श्रद्धा के साथ निरंतर आयोजित किया जा रहा है।

भोर की बेला में जब आकाश में अरुणिमा फैलती है, तब ग्राम लमकेनी के गलियों में भक्तों की मधुर स्वर लहरियाँ गूंज उठती हैं। श्री कृष्ण चैतन्य प्रभु नित्यानंद, हरे कृष्ण हरे राम, श्री राधे गोविन्द।”

सुबह 4 से 5 बजे तक संकीर्तन मंडली के सदस्य स्नान कर पारंपरिक वेशभूषा धारण करते हैं। शंख, घंट और मंजीरों की पवित्र ध्वनि के साथ पूजन प्रारंभ होता है। इसके पश्चात पूरी मंडली भक्ति मंत्रों का जाप करते हुए पूरे गांव का भ्रमण करती है। इस दौरान वातावरण पूर्णतः भक्तिमय हो उठता है, मानो हर घर से भक्ति रस प्रवाहित हो रहा हो। शरद पूर्णिमा से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक प्रतिदिन प्रातः यह नगर कीर्तन संपन्न होता है। मृदंग और मंजीरों की ताल पर कीर्तन के स्वर न केवल ग्रामवासियों को आध्यात्मिक अनुभूति कराते हैं, बल्कि पूरे क्षेत्र में भक्ति का संदेश फैलाते हैं। 

आज के समय में जब संकीर्तन और नामयज्ञों की परंपरा धीरे-धीरे कम होती जा रही है, तब लमकेनी ग्राम में यह अनूठी पहल भक्ति और परंपरा के संरक्षण का उत्कृष्ट उदाहरण बन गई है। गौरतलब है कि चैतन्य महाप्रभु ने स्वयं “नगर कीर्तन” को भक्ति का सर्वोच्च साधन बताया था, और लमकेनी के ग्रामवासी उसी परंपरा का पालन करते हुए इसे आज भी जीवंत रखे हुए हैं। कार्तिक पूर्णिमा के अंतिम दिन विशेष संकीर्तन और खीर-प्रसाद वितरण का आयोजन किया गया।

इस अवसर पर ग्राम सरपंच जगदीश सिदार ने भी उपस्थिति दर्ज कराई और मंडली के सदस्यों को धन्यवाद देते हुए कहा कि ऐसे भक्तिमय आयोजनों से न केवल गांव का वातावरण पवित्र होता है, बल्कि यह हमारी आत्मा को भी शुद्ध करता है। सुबह का संकीर्तन, स्नान और ध्यान मन को एक नई ऊर्जा और शांति प्रदान करता है। उन्होंने स्व. गुरु राधाचरण पसायत और स्व. गुरु प्रफुल्ल प्रधान के पुण्य स्मरण के साथ उनके द्वारा स्थापित भक्ति परंपरा को आगे बढ़ाने का संकल्प दोहराया । कार्यक्रम के अंत में मंडली सदस्यों एवं ग्रामीणों ने एक स्वर में संकल्प लिया कि इस प्रभाती नगर कीर्तन की परंपरा को अनवरत जारी रखा जाएगा, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भी इस भक्ति और संस्कृति से जुड़े रहें।



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